बिलासपुर मेयर पूजा विधानी को कोर्ट से नोटिस, जाति प्रमाण पत्र और चुनाव खर्च को लेकर बढ़ी मुश्किलें

राजेन्द्र देवांगन
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बिलासपुर: नगर निगम चुनाव में निर्वाचित मेयर एल. पद्मजा उर्फ पूजा विधानी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। कांग्रेस के पूर्व मेयर प्रत्याशी प्रमोद नायक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जिला न्यायालय बिलासपुर के न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी ने मेयर सहित कुल 11 लोगों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

न्यायालय ने पूजा विधानी के जाति प्रमाण पत्र की वैधता और चुनाव खर्च की तय सीमा से अधिक खर्च करने के मामले को गंभीर मानते हुए कलेक्टर अवनीश शरण, निर्वाचन आयुक्त अजय सिंह, चुनाव पर्यवेक्षक विनीत नंदनवार, अपर कलेक्टर आरए कुरुवंशी सहित अन्य मेयर प्रत्याशियों को भी नोटिस भेजा है।


क्या है पूरा मामला?

वर्ष 2022 में हुए नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पूजा विधानी को अपना उम्मीदवार बनाया था। नामांकन के दौरान दिए गए दस्तावेजों में जाति प्रमाण पत्र को लेकर संदेह जताया गया था। साथ ही यह आरोप भी लगा कि चुनाव में निर्धारित 25 लाख की सीमा से ज्यादा खर्च किया गया।

इस पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद नायक ने जिला न्यायालय में याचिका दायर करते हुए कहा कि न केवल नियमों की अवहेलना हुई है, बल्कि अधिकारियों ने जानबूझकर इस पर कार्यवाही नहीं की और चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ा दी।


याचिका में क्या मांग की गई है?

प्रमोद नायक ने अदालत से मांग की है कि मेयर का निर्वाचन शून्य घोषित किया जाए, इस मामले में संलिप्त अधिकारियों पर कार्रवाई हो और याचिका से जुड़े खर्चों की भरपाई की जाए।


जाति प्रमाण पत्र का मामला हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है

गौरतलब है कि इससे पहले बसपा उम्मीदवार द्वारा मेयर पूजा विधानी के जाति प्रमाण पत्र को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने इसे छानबीन समिति का विषय मानते हुए और चुनाव प्रक्रिया जारी रहने की दलील पर याचिका खारिज कर दी थी।


रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज किया था आरोप

याचिका में जिन तथ्यों का ज़िक्र है, उन्हें रिटर्निंग ऑफिसर आरए कुरुवंशी ने पहले ही खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि जाति से जुड़ी आपत्तियों के साथ कोई वैध दस्तावेज पेश नहीं किए गए, इसलिए उन्हें खारिज कर दिया गया।


कांग्रेस ने उठाया था पक्षपात का मुद्दा

कांग्रेस की ओर से अधिवक्ता प्रदीप राजगीर ने आरोप लगाया कि चुनाव अधिकारी की कुर्सी पर भाजपा पदाधिकारी जैसा व्यवहार किया गया। उन्होंने दावा किया कि अधिकारियों की भूमिका निष्पक्ष नहीं थी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हुई।


अब अदालत के फैसले पर टिकी निगाहें

कोर्ट से भेजे गए नोटिस के बाद अब सभी पक्षों को जवाब देना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मेयर का पद बरकरार रहता है या न्यायालय द्वारा कोई बड़ा फैसला सामने आता है। इस केस का असर आने वाले निकाय चुनावों की पारदर्शिता पर भी पड़ेगा।


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