रायपुर विवेकानंद नगर स्थित संभवनाथ जैन मंदिर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचन माला जारी है। शनिवार को रायपुर के कुलदीपक तपस्वी रत्न मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने आज नेमिनाथ प्रभु के दीक्षा कल्याणक के दिन मुनिश्री ने परमात्मा के दीक्षा जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परमात्मा ने संयम का स्वीकार करके अपने जीवन को साधनामय बना दिया।
परमात्मा का साधना काल तीन स्टेज में बंटा हुआ था। (1) आरोहण अर्थात पक्षी जिस तरह धरती से ऊपर आकाश में जाकर उड़ने का प्रयास करता है, इस तरह साधक को भी निम्न भूमिका से ऊपर उठकर गुणों की ऊंचाई को प्राप्त करना मोक्ष मार्ग के लिए जरूरी है। जो साधक होता है उसके लिए मात्र आत्मा का चिंतन आत्मा रमणता वह ज्यादा जरूरी है। संसार की फिजूल बातों में उसे मन नहीं लगाना चाहिए।
परमात्मा अपने साधना काल में एकांत में रहकर मात्र आत्म तत्व का चिंतन करते थे। (2) विस्तरण अर्थात जिस तरह से पक्षी आकाश में ऊपर उठकर अपनी पंखों को विस्तृत करके अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचता है इस तरह परमात्मा ने भी अपनी साधना एकदम विस्तार वाली बनाकर मोक्ष मार्ग को प्रशस्त किया। (3) निस्तारण अर्थात साधक अपनी मुक्ति की यात्रा के लिए अपने मन से एकदम प्रतिबद्ध होकर आगे बढ़ता है
21वीं सदी विचारों के वायरस की सदी है : तीर्थप्रेम विजयजीओजस्वी प्रवचनकार मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी म.सा.ने आज की प्रवचन माला में कहा कि 21वीं सदी है और हम ऐसा मान रहे कि विकास की सदी है लेकिन यह विकास के साथ-साथ वायरस की भी सदी है। यहां वायरस से मेरा अभिप्राय है कोरोना,स्वाइनफ्लू आदि नहीं बल्कि यह विचारों के वायरस की सदी है। हर एक बात में हम सवाल खड़ा करते हैं,
अपने परंपरा और संस्कार आदि में प्रश्न पूछना खराब बात नहीं है लेकिन विनम्रता और निष्ठा के साथ किया गया सवाल हो तो ठीक है लेकिन कुटिलता से किया गया सवाल गलत है।मुनिश्री ने कहा कि कितने कितने जीवों की हत्या सिर्फ खाने के लिए होती है। रसना में किसी का कंट्रोल नहीं है जबकि अन्य कर्म के लिए जो जीवों की हत्या होती है वह अलग है।
विचारों के वायरस की सदी में कितने कुतर्क है,जैसे लोग कहते हैं कि अगर मांसाहार का सेवन नहीं किया तो ऐसे जीवों की संख्या बहुत बढ़ जाएगी। इस दुनिया में बुद्धिशाली तो बहुत है लेकिन अभय कुमार जैसे सद्बुद्धिशाली कम है।
अभय कुमार ने अपनी सद्बुद्धि से धर्म की रक्षा की,संस्कृति की रक्षा की इसके साथ ही उन्होंने अपना आत्म कल्याण भी किया,आत्म कल्याण करना भी उतना ही आवश्यक है। आपने धर्म की रक्षा की,संस्कृति की रक्षा की न जाने कितने अच्छे कार्य किए लेकिन आत्म कल्याण नहीं किया तो फिर कुछ नहीं किया।
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