ऐतिहासिक लूतरा शरीफ दरगाह “बाबा इंसान अली के मजार की पूरी दास्तान …!
बाबा सैय्यद इंसान अली शाह की दरगाह के रूप में प्रसिद्ध “लुतरा शरीफ” बिलासपुर में स्थित है। जो पुरे छत्तीसगढ़ में धार्मिक सौहार्द्र, श्रध्दा और आस्था का पावन स्थल तथा प्रमुख केंद्र माना जाता है। प्रसिद्ध -लुतरा बाबा के दरगाह से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता, ऐसी मान्यता है कि बाबा के मजार में मत्था टेकने वालो की मनौतिया अवश्य पूरी होती है। सभी धर्मो के अनुयायी यहाँ आकर अपनी मनौतिया के लिए चादर चढ़ाते है । इस कारण यह लुतरा शरीफ अंचल में आस्था के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है ।बिलासपुर से सीपत बलौदा मार्ग पर ग्राम लुतरा स्थित है। कहा जाता है हजरत शाह बाबा सैय्यद इंसान अली अलैह रहमतुल्ला का जन्म सन 1845 में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम सैय्यद मरदान अली था, वंशावली के अनुसार बाबा इंसान अली के दादा का ना जौहर अली था तथा इनके परदादा सैय्यद हैदर अली साहब हुए। बाबा इंसान अली की माँ का नाम बेगम जान और उनके नाना के नाम ताहिर अली साहब था । बाबा इंसान अली के नाना ताहिर अली धार्मिक प्रवृत्ति के इंसान थे। वे धर्म के प्रति गहरी आस्था रखते थे । उन्हें जीवन में पैदल हज यात्रा करने का गौरव प्राप्त हुआ था। सैय्यद इंसान अली पर उनके नाना के विचारधारा का पड़ना स्वाभाविक था क्योंकि इनका ज्यादा समय ननिहाल में बता था और यही बालक आगे चल के हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली के नाम से लुतरा शरीफ में प्रसिद्ध हुए ।
हजरत शाह बाबा सैय्यद इंसान अली अलैह रहमतुल्ला के पूर्वज छत्तीसगढ़ में कब आये इसी कोई एतिहासिक जानकारी सही रूप प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि सबसे पहले खानदान का काफिला (सैय्यद हैदर अली) दिल्ली से भोपाल होते हुए सरगुजा आये और यहाँ से बिलासपुर के रतनपुर गांव पहुंचे फिर रतनपुर छोड़ के बछौद गांव को अपनी कर्मस्थली बनाया । कुछ लोगो का कहना है कि हजरत बाबा इंसान के दादा सय्यद जौहर अली साहब पुरे खानदान के साथ बिलासपुर में रहते थे । कुछ लोगों के मुताबिक रतनपुर में कुछ अर्सा बिलासपुर पूरी तरह बछौद गांव में बस गए जहां आपके पिता माजिद सैय्यद मरदान अली साहब और खुद आपका भी इसी स्थान में जन्म हुआ था, यहाँ यह उल्लेखनीय है की खमरिया गाँव के गौटिया खानदान में जनाब माहिउनुद्ददीन साहब की बेटी उमेद बी से हजरत शाह बाबा सैय्यद इंसान अली अल्लैह रहमतुल्ला का निकाह हुआ था, जहा जमींदारी से बहुत सारी जमीन उन्हें लुतरा गाँव में मिली थी और यही स्थल बाबा की कर्मस्थली थी।कहा जाता है की हजरत इंसान अली का पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा, उनके घर में बेटी पैदा हुई एवं कम उम्र में ही उनका इंतकाल हो गया बेटी काम माँ बर्दाश्त नहीं कर पाई और वह भी अल्लाह को प्यारी हो गई । किन्तु बाबा इंसान अली के जीवन में दुखो का पहाड़ टूट पड़ा, किन्तु बाबा विचलित नही हुए। शांत स्वाभाव होने के कारण पुरे ग़म हो हृदय में समा लिए। इन विषम परिस्थितियों में उनके जीवन में बदलाव आ गया। हजरत शाह बाबा सैय्यद इंसान अली अल्लैह रहमतुल्ला अपनी हयात में एकदम में ही फक्कड़ मिजाज के थे। उन्हें खानपान की कोई सुध-बुध नहीं रहती थी । कपड़ो का कोई ख्याल नहीं रहता था । अजब कैफियत, अजब ही रंग-ढंग | कभी-कभी तो बाते एकदम बेतुका करते जो आम आदमी के समझ से परे होती है और वे दीन दुनिया से दूर रहकर अपने को अकेले में रहना पसंद करने लगे । परिणामस्वरुप धीरे-धीरे उन्हें धर्म से लगाव हो गया । कभी-कभी रात की तन्हाई में, किसी उंची पहाड़ी पर, तो कभी जंगलो के सन्नाटे में या कभी तलाब के समीप पहुचकर खुदा के इबाबत में मग्न हो जाते थे। धीरे-धीरे उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई और पीर (संत) कहलाने लगे । उनके निरंतर संपर्क में आने पर आपका नागपुर उनके दरबार में आने जाने लगा रहा । इस प्रकार रूहानियत दौलत आपको हासिल हुई । नागपुर से प्रकाशित धर्म ग्रंथो में बाबा इंसान अली का जिक्र सबसे पहले आता है। हजरत बाबा सय्यद अली हमेशा छत्तीसगढ़ी बोली में बात किया करते थे । उनका छत्तीसगढ़ी प्रेम अंचल में ज्यादा प्रसिद्धि का कारण बना। लोग दूर-दूर से आते, बाबा उनसे भी छत्तीसगढ़ी में बाते करते थे । हजारो लोग उनके मुराद हो गये । बाबा के दरबार में दूर-दूर से दीन-दुखियारे अपनी समस्याएं लेकर आते है और बाबा से आशीर्वाद लेकर ख़ुशी – ख़ुशी लौट जाते । बाबा एक चमत्कारिक पुरुष भी थे। उन्होंने कई अवसर पर चमत्कार कर लोक कल्याणकारी कार्य किये जिनका बखान आज भी लोग करते है। बाबा के चमत्कारी कार्य ने उन्हें इंसान अली से एक रूहानियत ताकत में तब्दील के दिया था । बाबा की शोहरत धीरे-धीरे दूर-दूर तक फैल गई । बाबा के कई चमत्कारिक किस्से लुतरा शरीफ में चर्चित है। बाबा ने हमेशा जन कल्याणकारी कार्य के लिए चमत्कार किये थे । इस कारण बाबा अंचल में प्रसिद्ध हुए शतायु जीवन जीने वाले यह बाबा एकाएक अस्वस्थ हो गये, उनके बीमार रहने से श्रद्धालुओं की चिंता बढ़ गई। काफी समय बीमार रहने के बाद इतवार के दीन 28 दिसम्बर 1960 को हजरत बाबा के होठो में अजीब सी मुस्कराहट थी। बाबा के चेहरे में उस दीन अजीब सा नूर टपक रहा था । बाबा कभी हँसते, कभी मुस्कुराते और खुद अपने आप में मग्न हो जाते । लोग इस वयव्हार को देखकर उनके भले चंगे होने की उम्मीद करने लगे । किन्तु किसी को क्या मालूम था की यह बुझते दीपक की अंतिम चमक थी, या बाबा की अंतिम मुस्कराहट थी। धीरे-धीरे शाम का सूरज ढला और पूरा आसमान सुर्खी में डूबा, स्याह हो गया, देखते ही देखते बाबा सबको अलविदा कह गये। 29 दिसम्बर 1960 को हजारो लोगो की गमगीन आँखों ने सुबकते हुए अपने प्रिय बाबा को सुपुर्दे खाक कर दिया । आज भी बाबा के दरगाह में अनेक दीन-दुखियारे दूर-दूर से आते है। उनकी मन्नते पूरी होती है । वे खली हाथ कभी नहीं लौटते। हजरत बाबा का पवित्र स्थल लुतरा शरीफ छत्तीसगढ़ में एक पवित्र और चमत्कारिक दरगाह के रूप में विख्यात है । यहाँ दूर-दूर से श्रद्धालुगण अपनी मनौतिया लेकर आते है । यही कारण है की लुतरा शरीफ दरगाह आज भी आस्था का केंद्र है। इसी दरगाह की विशेषता है की सभी धर्म के लोग आस्था पूर्वक यहाँ आ कर माथा टेकते है मनौतियो के लिए चादर चढाते है । और बाबा उनकी मनौतियां पूर्ण करते है । इसी प्रसिद्धी के कारण दरगाह में वर्ष भर मनौतियां मानने वालो का मेला लगा रहता है । यह दरगाह एक धर्म विशेष से ऊपर उठकर कल्याणकारी होने का जीवंत उदहारण है। यह पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध है ।
श्रद्धालु, पर्यटकों के लिए यह पवित्र दर्शनीय स्थल है। बिलासपुर क्षेत्र में धार्मिक आस्था केंद्र के रूप में विख्यात लुतरा शरीफ दरगाह में माथा टेकने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पर्यटक आते है।
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