We are not a only sex object ,,,
पोड़ीभाटा हत्याकांड पर.एक चिंतन
नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग-पगतल में
पीयुष स्त्रोत सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में
एक तरफ हम महिलाओ.को श्रद्धा की पात्र बताया जा रहा है दूसरी ओर कई घृणित जानवर हमें केवल और.केवल sex object के रूप में देख रहे है । अकलतरा के पोडी़भाटा में हुई घटना में आरोपी रिपोर्ट दर्ज होने के कुछ घंटों में पकड़ा गया है । यह पुलिस प्रशासन और खासकर अकलतरा पुलिस के लिए राहत की बात है क्योंकि इस क्षेत्र में इस तरह की घटना शायद नही हुई है इस घटना में एक बाइस से तेइस वर्ष का युवक अपनी मां नही बल्कि दादी की उम्र की महिला से दुष्कर्म की कोशिश करता है और असफल होने पर बड़ी ही बेरहमी से उसकी हत्या करता है । हत्याकांड के पहले जिस तरह महिला के नाजुक अंगों को चोट पहुंचाई गई थी वह राक्षसी प्रवृत्ति से भी बदतर है उस गरीब , बेबस और वृद्ध महिला की तकलीफ कल्पना से भी बाहर है उसके बाद जिस तरह से छाती और गले को पैरो मे मच-मच कर (दबा-दबाकर) मारा गया वह हैवानों को भी शर्मसार कर देगा ।इस.घटना से सब सहमे है खासकर अकलतरा और पोडी़भाटा के आगे गांवो में रहने वाले.वे ग्रामीण जो.पोडी़भाटा पार करके रात्रि मे.अपने घरो को वापस जाते है.। अकलतरा का यह क्षेत्र लंबे समय से हर तरह के अपराध के लिए जाना जाता है ।
आज अकलतरा में भाजपा मंडल द्वारा कैंडल मार्च का आयोजन किया गया जिसमे हत्यारे को फांसी की मांग की जायेगी और उस गरीब विधवा के लिए प्रार्थना की गयी । अब सवाल यह उठता है कि इस दूर्लभ और नृशंस हत्या के बाद हमारी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए क्योंकि इस हत्याकांड के कुछ घंटों मे हत्यारे को पकड़ लिया गया है इसलिए अकलतरा पुलिस को कोसने का कारण तो हमारे पास नहीं है । क्या यह विषय केवल शासन और पुलिस का विषय है ? यह मामला अलग इसलिए भी है कि इस दुष्कर्म की कोशिश में मृत विधवा आरोपी की मां की नही दादी की उम्र की थी इसलिए हमे इस मामले में समाजशास्त्रीय ढंग से विचार करना होगा । आज वे लोग जिन्हे इस कांड की पीड़ा ने झकझोर दिया है वे क्या आगे इस तरह की घटना ना हो , ऐसा कोई जमीनी प्रयास करेंगें । सबसे बड़ी बात यह एरिया आपराधिक मामलों का गढ रहा है इस एरिया के लिए कोई संगठन कोई प्रयास जैसे नशा मुक्ति , शिक्षा , विधिक जानकारी जैसे कार्यक्रम क्यो आयोजित नही करता है । निर्भया कांड के बाद कानून कड़े किये गये पर फिर भी ऐसे मामले नही रुके क्योंकि हमारे सामाजिक
पारिवारिक और नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है इसलिए ऐसे मामलो में हमें केवल शासन और प्रशासन को कोसने के बजाय समस्या की जड़.को समझ कर काम करना चाहिए । अब हम आगे देंखेंगे कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसलिए ये संगठन और.संस्थाएं कुछ करती है या यह केवल राजनीतिक चश्मे से देखकर हर ओर काला ही काला देखने की कोशिश है ।
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