सरेंडर नक्सलियों की निगरानी में बनेगी सड़क ,,, कोंटा-गोलापल्ली स्टेट हाइवे ,,, रमन्ना और नक्सलियों की आर्मी बटालियन यहां हैं सक्रिय

राजेन्द्र देवांगन
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सरेंडर नक्सलियों की निगरानी में बनेगी सड़क ,,, कोंटा-गोलापल्ली स्टेट हाईवे ,,, रमन्ना और नक्सलियों की आर्मी बटालियन यहां हैं सक्रिय

दक्षिण बस्तर के धुर नक्सल प्रभावित और दुर्गम जंगलों में सड़कों का काम चल रहा है। अरनपुर-जगरगुंडा के बाद अब कोंटा से गोलापल्ली तक 42 किमी ऐसी सड़क का काम 10 जून से शुरू होने वाला है, जो पिछले 40 साल से स्टेट हाईवे के तौर पर कागजों में ही रही।इस वजह से छत्तीसगढ़ के गोलापल्ली थाने तक पहुंचने के लिए फोर्स को तेलंगाना में भद्राचलम जाकर वहां से मरईगुड़ा होते हुए 125 किमी की दूरी अब भी तय करनी पड़ रही है। राज्य बनने के बाद से अब तक इसी दूरी को सड़क बनाकर घटाने के लिए 17 टेंडर हुए पर कोई ठेकेदार नहीं आया।

अब जाकर सड़क बनेगी लेकिन यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए 6 हजार सशस्त्र जवानों की पूरी सड़क पर ड्यूटी लगाई जाएगी, जिनमें बड़ी संख्या में सरेंडर नक्सली हैं। बरसात से बाद कच्ची सड़क पर मुरुम-गिट्टी बिछेगी। सड़क बनने से कोंटा, गोलापल्ली, मरईगुड़ा और आसपास के लगभग 30 गांवों के 25 हजार लोगों को न सिर्फ कनेक्टिविटी मिलेगी, बल्कि राशन पहुंचाने से लेकर एंबुलेंस तक का रास्ता साफ हो जाएगा।

गोलापल्ली और मरईगुड़ा करीब 50 साल पुराने थाने हैं। कोंटा-गोलापल्ली-मरईगुड़ा स्टेट हाइवे है। अभी कोंटा से गोलापल्ली जाने के लिए 70 किमी दूर तेलंगाना में भद्राचलम जाना पड़ता है। वहां से सिंगल रोड है, जिस पर 40 किमी में नालापल्ली, वहां से 20 किमी में फायदागुड़ा और फिर 12 किमी दूर गोलापल्ली है।

यहां से मरईगुड़ा 28 किमी दूर है, वह रास्ता भी कच्चा है। 22 साल पहले जब राज्य बना, तब यहां सड़क बनाने का प्रस्ताव आया, लेकिन काम शुरू नहीं हुआ। 2005 में सलवा जुडूम आंदोलन शुरू हुआ तो इस इलाके में लोगों ने आना-जाना ही बंद कर दिया, क्योंकि यह नक्सलियों का कोर एरिया बन गया।

2010 में केंद्र सरकार ने इस सड़क के लिए फंड जारी कर दिया। तब नक्सलियों के प्रमुख कमांडर रमन्ना का गढ़ यही था और इसे रेड काॅरीडोर में रखा गया था। अब भी यहां नक्सलियों की आर्मी बटालियन तैनात है, जिसे एक और प्रमुख कमांडर हिड़मा लीड कर रहा है। 2010 में केंद्र सरकार ने इस सड़क को बनाने के लिए फंड जारी किया, लेकिन सड़क नहीं बन पाई।

118 करोड़ लागत, तीन ठेकेदार बनाएंगे
कोंटा से गोलापल्ली की दूरी 42 किलोमीटर है। इसमें 6 किलोमीटर की सड़क बन गई है। 42 किलोमीटर में सिर्फ एक थाना और फोर्स का एक कैंप है। इस सड़क को बनाने के लिए 17 बार टेंडर जारी किया गया, लेकिन नक्सली खौफ के कारण कोई भी सामने नहीं आया।

इस बार तीन ठेकेदारों ने काम लिया है। इस सड़क को बनाने में करीब 118 करोड़ की लागत आएगी। जंगल के बीच पगडंडियों में मिट्‌ठी बिछाने का काम चल रहा है। जल्द ही मुरुम और गिट्‌टी बिछाई जाएगी। उसके बाद डामरीकरण किया जाएगा।

200 सुरंगें निकल चुकीं, अक्सर मुठभेड़ें
यह सड़क लगभग छत्तीसगढ़-तेलंगाना की सीमा पर चलेगी। यह गोलापल्ली ही नहीं, वहां से जगरगुंडा, किस्टारम से सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर व नारायणपुर जाने का रास्ता है। इस इलाके में नक्सलियों का जंगल के भीतर कच्चे रास्तों पर मूवमेंट है, क्योंकि यहां पक्की सड़कें नहीं हैं। कुछ अरसा पहले कोंटा से गोलापल्ली तक की कच्ची सड़क से 200 से ज्यादा बारूदी सुरंगें फोर्स ने निकाली थीं, लेकिन इस अभियान में एक दर्जन से ज्यादा जवानों की शहादत हुई, क्योंकि फोर्स का मूवमेंट होते ही नक्सलियों से मुठभेड़ हो जाती है।

अब बस्तर का विकास मार्ग
सुकमा एसपी सुनील शर्मा और सीआरपीएफ के डीआईजी योज्ञान सिंह ने बताया कि उनकी टीम जंगलों के भीतर सड़क बनाने पर फोकस है। ये काम इसलिए प्राथमिकता में है क्योंकि इनसे विकास के रास्ते खुलेंगे और नक्सली भी पीछे हटेंगे।

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