पहलगाम आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार के 7 बड़े कदम: विस्तृत तथ्य और विश्लेषण

राजेंद्र देवांगन
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22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया। इस हमले में 26 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की जान गई। हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकी संगठन TRF (The Resistance Front) ने ली। भारत सरकार ने इसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा माना और तत्काल कार्रवाई शुरू की। मोदी सरकार ने सात बड़े कदमों की घोषणा की, जिनमें सैन्य, कूटनीतिक, और आर्थिक उपाय शामिल हैं। इस लेख में इन सात कदमों को बहुत ही सरल और विस्तार से समझाया गया है, ताकि हर कोई इसे आसानी से समझ सके। प्रत्येक कदम की वास्तविकता, क्या संभव है, क्या नहीं, और इसके पीछे के ऐतिहासिक, भौगोलिक, और वैज्ञानिक तथ्यों को भी शामिल किया गया है।

Contents
मोदी सरकार के सात बड़े कदमविस्तृत विश्लेषण: प्रत्येक कदम की वास्तविकता, संभावना, और तथ्य1. उच्च स्तरीय बैठकों का आयोजन2. कूटनीतिक और आर्थिक कदम3. सैन्य और सुरक्षा उपाय4. अंतरराष्ट्रीय समर्थन और कूटनीति5. सर्वदलीय बैठक और राष्ट्रीय एकजुटता6. प्रधानमंत्री का संकल्प7. सैन्य कार्रवाई की संभावनानिष्कर्षपहलगाम आतंकी हमले पर विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया: विस्तृत विश्लेषणविपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)2. समाजवादी पार्टी (सपा)3. आम आदमी पार्टी (AAP)4. तृणमूल कांग्रेस (TMC)5. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)6. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC)7. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP)8. अन्य दल9. गैर-राजनीतिक संगठनों की प्रतिक्रियासर्वदलीय बैठक में विपक्ष की भूमिकातथ्यपूर्ण विश्लेषण: विपक्ष की प्रतिक्रिया का प्रभावनिष्कर्ष

मोदी सरकार के सात बड़े कदम

  1. उच्च स्तरीय बैठकों का आयोजन: प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, और गृह मंत्री ने तत्काल कई महत्वपूर्ण बैठकें कीं।
  2. कूटनीतिक और आर्थिक कदम: सिंधु जल संधि को निलंबित करना, अटारी चेक पोस्ट बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना, और राजनयिक संबंधों में कटौती।
  3. सैन्य और सुरक्षा उपाय: पहलगाम में सर्च ऑपरेशन, उरी में आतंकियों का खात्मा, NIA जांच, और सुरक्षा व्यवस्था में सुधार।
  4. अंतरराष्ट्रीय समर्थन और कूटनीति: कई देशों ने हमले की निंदा की और भारत का साथ दिया।
  5. सर्वदलीय बैठक और राष्ट्रीय एकजुटता: सभी राजनीतिक दलों को एकजुट कर रणनीति बनाई गई।
  6. प्रधानमंत्री का संकल्प: पीएम मोदी ने आतंकियों को कठोर सजा देने का वादा किया।
  7. सैन्य कार्रवाई की संभावना: पीओके में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदमों की चर्चा।

विस्तृत विश्लेषण: प्रत्येक कदम की वास्तविकता, संभावना, और तथ्य

1. उच्च स्तरीय बैठकों का आयोजन

क्या हुआ?
इस हमले के तुरंत बाद सरकार ने कई बड़े स्तर की बैठकें कीं ताकि स्थिति को समझा जाए और कार्रवाई की योजना बनाई जाए।

  • प्रधानमंत्री की बैठक: पीएम नरेंद्र मोदी उस समय सऊदी अरब के दौरे पर थे। हमले की खबर मिलते ही उन्होंने अपना दौरा बीच में छोड़ दिया और 23 अप्रैल, 2025 को दिल्ली लौट आए। दिल्ली हवाई अड्डे पर ही उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक आपातकालीन बैठक की। इस बैठक में हमले के कारणों, खुफिया जानकारी में कमी, और तत्काल कार्रवाई पर चर्चा हुई।
  • रक्षा मंत्री की बैठक: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली में सेना के तीनों अंगों (थल सेना, नौसेना, वायु सेना) के प्रमुखों के साथ 150 मिनट (ढाई घंटे) की लंबी बैठक की। इसमें यह तय किया गया कि अगर जरूरत पड़ी तो सेना किस तरह की कार्रवाई कर सकती है, जैसे आतंकी ठिकानों पर हमला या सीमा पर और सख्ती।
  • गृह मंत्री का श्रीनगर दौरा: गृह मंत्री अमित शाह तुरंत श्रीनगर पहुंचे। वहां उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, और सेना के बड़े अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की। इस बैठक में हमले की जगह (बेसरन वैली) की सुरक्षा व्यवस्था, घायलों की स्थिति, और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के उपायों पर बात हुई। अमित शाह ने घायल लोगों से अस्पताल में मुलाकात भी की।

क्या यह संभव है?
हां, यह कदम पूरी तरह संभव है और हर बड़े आतंकी हमले के बाद सरकार ऐसा करती है। जब कोई बड़ा संकट आता है, तो देश के बड़े नेता और अधिकारी तुरंत इकट्ठा होकर स्थिति का जायजा लेते हैं।

  • उदाहरण: 2016 में उरी हमले और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी पीएम, रक्षा मंत्री, और गृह मंत्री ने ऐसी ही बैठकें की थीं। 2008 के मुंबई हमले के बाद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने भी तुरंत NSA और मंत्रियों के साथ चर्चा की थी।
  • श्रीनगर दौरा: गृह मंत्री का घटनास्थल पर जाना आम बात है। यह स्थानीय लोगों और प्रशासन को यह भरोसा दिलाता है कि केंद्र सरकार उनके साथ है। 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी अमित शाह कश्मीर गए थे।

क्या फायदा हुआ?

  • नीतिगत कार्रवाई का आधार: इन बैठकों से सरकार को यह समझ आता है कि हमला कैसे हुआ, कहां गलती हुई, और अब क्या करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यह पता चला कि बेसरन वैली को पर्यटकों के लिए खोलने की जानकारी सेना और CRPF को नहीं दी गई थी, जिसका आतंकियों ने फायदा उठाया।
  • जनता में विश्वास: जब लोग देखते हैं कि पीएम विदेश से लौटकर तुरंत कार्रवाई कर रहे हैं या गृह मंत्री श्रीनगर में हैं, तो उन्हें लगता है कि सरकार गंभीर है।
  • सैन्य तैयारियां: रक्षा मंत्री की बैठक से सेना को यह संदेश जाता है कि वे किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहें, जैसे आतंकी ठिकानों पर हमला।

क्या मुश्किलें हैं?

  • सीमित प्रभाव: ये बैठकें सिर्फ शुरुआती कदम हैं। अगर इनके बाद ठोस कार्रवाइयां (जैसे आतंकियों को पकड़ना या सुरक्षा बढ़ाना) नहीं हुईं, तो इनका असर कम हो सकता है।
  • खुफिया चूक: बैठक में यह बात सामने आई कि खुफिया जानकारी में कमी थी। इसे तुरंत ठीक करना मुश्किल है, क्योंकि खुफिया तंत्र को बेहतर करने में समय लगता है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2001 में संसद पर हमले के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सुरक्षा समीक्षा की थी।
  • 2016 उरी हमले के बाद पीएम मोदी ने CCS (सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति) की बैठक बुलाई थी, जिसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक हुई।

2. कूटनीतिक और आर्थिक कदम

क्या हुआ?
सरकार ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाए, जो सीधे दोनों देशों के रिश्तों और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। ये कदम हैं:

  • सिंधु जल संधि निलंबन: भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का ऐलान किया। इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों (झेलम, चेनाब, रावी, सतलुज, ब्यास) का पानी बांटते हैं।
  • अटारी चेक पोस्ट बंद: भारत-पाकिस्तान सीमा पर पंजाब के अटारी-वाघा चेक पोस्ट को बंद कर दिया गया, जहां से सीमित व्यापार और सांकेतिक परेड होती है।
  • SAARC वीजा रद्द: पाकिस्तानी नागरिकों को SAARC वीजा छूट योजना के तहत भारत आने की अनुमति रद्द कर दी गई। इस योजना से व्यापारी, पत्रकार जैसे लोग भारत आ सकते थे।
  • राजनयिक कार्रवाई:
  • नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, सैन्य, नौसेना, और वायु सलाहकारों को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ (अवांछित व्यक्ति) घोषित कर एक हफ्ते में भारत छोड़ने का आदेश दिया गया।
  • भारत और पाकिस्तान के उच्चायोगों में कर्मचारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 करने का फैसला लिया गया।

क्या यह संभव है?
इनमें से ज्यादातर कदम तुरंत लागू किए जा सकते हैं, लेकिन कुछ जटिल हैं। आइए एक-एक को समझें:

  • सिंधु जल संधि निलंबन:
  • क्या है यह संधि?: 1960 में भारत और पाकिस्तान ने विश्व बैंक की मदद से यह संधि की थी। इसके तहत भारत को पूर्वी नदियां (रावी, सतलुज, ब्यास) मिलीं, जिनका पूरा पानी वह इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चेनाब) ज्यादातर पाकिस्तान को मिलीं, लेकिन भारत को इनका 20% पानी (सिंचाई, पनबिजली, घरेलू उपयोग) इस्तेमाल करने की अनुमति है।
  • कानूनी दृष्टिकोण: संधि में इसे निलंबित करने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है। लेकिन भारत राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर इसे रोक सकता है, जैसा कि वियना संधि (1969) के अनुच्छेद 62 में कहा गया है। अगर भारत ऐसा करता है, तो पाकिस्तान विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में शिकायत कर सकता है।
  • तकनीकी दृष्टिकोण: भारत के पास पश्चिमी नदियों का पानी पूरी तरह रोकने के लिए बड़े बांध या जलाशय नहीं हैं। भारत में मौजूदा बांध (जैसे सलाल, बगलिहार, किशनगंगा) “रन-ऑफ-द-रिवर” हैं, यानी वे पानी को ज्यादा देर रोक नहीं सकते। भारत ज्यादा से ज्यादा 5-10% पानी कम कर सकता है, खासकर सूखे मौसम में।
  • क्या भविष्य में संभव है?: अगर भारत नए बड़े बांध बनाए, जैसे शाहपुर-कांडी परियोजना को तेज करे, तो वह अपने हिस्से का पानी ज्यादा इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन यह काम 10-20 साल ले सकता है और इसमें अरबों रुपये की लागत आएगी।
  • अटारी चेक पोस्ट बंद:
  • यह बहुत आसान और तुरंत लागू हो सकता है। अटारी-वाघा सीमा पर हर दिन सांकेतिक परेड होती है और कुछ व्यापार (जैसे फल, सब्जियां) होता है। इसे बंद करना सरकार के लिए कोई बड़ी बात नहीं।
  • उदाहरण: 2001 में संसद पर हमले के बाद भारत ने सीमा पर आवाजाही सीमित कर दी थी।
  • SAARC वीजा रद्द:
  • यह भी आसान है। SAARC वीजा योजना के तहत बहुत कम पाकिस्तानी नागरिक (जैसे व्यापारी, पत्रकार) भारत आते हैं। इसे रद्द करने में कोई तकनीकी या कानूनी दिक्कत नहीं।
  • राजनयिक कार्रवाई:
  • पाकिस्तानी अधिकारियों को निष्कासित करना और उच्चायोग कर्मचारियों की संख्या कम करना तुरंत संभव है। भारत और पाकिस्तान पहले भी ऐसा कर चुके हैं।
  • उदाहरण: 2020 में दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित किया था।

क्या फायदा हुआ?

  • पाकिस्तान पर दबाव:
  • सिंधु जल संधि: अगर भारत पानी कम करता है, तो पाकिस्तान की खेती, बिजली, और पीने के पानी पर असर पड़ेगा। पाकिस्तान की 80% खेती (16 मिलियन हेक्टेयर) और 237 मिलियन लोग सिंधु नदी पर निर्भर हैं।
  • अटारी चेक पोस्ट: इससे भारत-पाक व्यापार (जो पहले ही बहुत कम है) रुक जाएगा। यह प्रतीकात्मक रूप से पाकिस्तान को अलग-थलग दिखाता है।
  • वीजा रद्द: पाकिस्तानी नागरिकों की भारत यात्रा रुकने से दोनों देशों के बीच संपर्क कम होगा।
  • राजनयिक कदम: इससे पाकिस्तान की वैश्विक छवि खराब होगी और वह कूटनीतिक मंचों पर कमजोर पड़ेगा।
  • भारत के लिए:
  • ये कदम जनता को दिखाते हैं कि सरकार कड़ा रुख अपना रही है।
  • वैश्विक समुदाय को यह संदेश जाता है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है।

क्या मुश्किलें हैं?

  • सिंधु जल संधि:
  • पानी पूरी तरह रोकना तुरंत संभव नहीं। भारत के पास बड़े जलाशय नहीं हैं, और अगर ज्यादा पानी रोका गया तो जम्मू-कश्मीर या पंजाब में बाढ़ आ सकती है।
  • नए बांध बनाने में समय, पैसा, और पर्यावरणीय मंजूरी चाहिए। स्थानीय लोग भी विरोध कर सकते हैं।
  • पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक अब्दुल बासित ने कहा कि यह “प्रतीकात्मक” कदम है, क्योंकि भारत के पास पानी रोकने का ढांचा नहीं है।
  • अटारी चेक पोस्ट: इससे भारत के कुछ व्यापारियों को भी नुकसान हो सकता है।
  • राजनयिक कदम: इससे भारत-पाक के बीच बातचीत की संभावना और कम हो जाएगी, जो भविष्य में संकट को सुलझाने में मुश्किल पैदा कर सकता है।

वैज्ञानिक/भौगोलिक तथ्य:

  • सिंधु नदी बेसिन: यह 11,65,500 वर्ग किमी में फैला है, जिसमें भारत का हिस्सा 3,21,289 वर्ग किमी है। यह चार देशों (चीन, भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान) से होकर गुजरता है।
  • भारत की भंडारण क्षमता: भारत सिर्फ 3.6 अरब घन मीटर पानी रोक सकता है, जो औसतन 9 दिन का पानी है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: अगर पानी रोका गया, तो नदियों में गाद (सिल्ट) जमा हो सकती है, जिससे बांधों की उम्र कम हो सकती है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा की थी और शाहपुर-कांडी परियोजना को तेज किया।
  • 2001 में संसद हमले के बाद भारत ने सीमा पर आवाजाही सीमित की थी।

3. सैन्य और सुरक्षा उपाय

क्या हुआ?
सरकार ने आतंकियों को पकड़ने और भविष्य में ऐसे हमले रोकने के लिए कई कदम उठाए:

  • पहलगाम में सर्च ऑपरेशन: हमले के बाद सेना और CRPF ने बेसरन वैली में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया। यह इलाका घने जंगलों और पहाड़ों से भरा है, जहां आतंकी छिप सकते हैं।
  • उरी में कार्रवाई: उरी सेक्टर में LoC (नियंत्रण रेखा) पर दो आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की, जिन्हें सेना ने मार गिराया।
  • NIA जांच: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने हमले की जांच शुरू की। NIA ने घटनास्थल से सबूत जुटाए और तीन आतंकियों के स्केच जारी किए।
  • सुरक्षा सुधार: सरकार ने माना कि बेसरन वैली को पर्यटकों के लिए खोलने की जानकारी सेना और CRPF को नहीं दी गई थी, जिसका आतंकियों ने फायदा उठाया। अब इस गलती को सुधारने के लिए नई सुरक्षा व्यवस्था बनाई जा रही है।

क्या यह संभव है?
हां, ये सारे कदम तुरंत लागू किए जा सकते हैं और भारत पहले भी ऐसा कर चुका है।

  • सर्च ऑपरेशन: आतंकी हमले के बाद तलाशी अभियान आम बात है। 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी कश्मीर में बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन हुए थे।
  • उरी में कार्रवाई: LoC पर सेना हमेशा सतर्क रहती है। घुसपैठ रोकना उनकी रोज की जिम्मेदारी है।
  • NIA जांच: NIA को आतंकी मामलों की जांच का विशेष अनुभव है। 2016 उरी और 2019 पुलवामा हमले की जांच भी NIA ने की थी।
  • सुरक्षा सुधार: खुफिया जानकारी और समन्वय में सुधार करना संभव है, लेकिन इसमें समय लग सकता है।

क्या फायदा हुआ?

  • आतंकियों पर दबाव: सर्च ऑपरेशन से आतंकी डरते हैं और छिपने की जगह ढूंढते हैं, जिससे उनकी गतिविधियां कम हो सकती हैं।
  • घुसपैठ पर रोक: उरी में आतंकियों को मारना दिखाता है कि भारत की सेना सतर्क है।
  • जांच से खुलासा: NIA की जांच से हमले के पीछे के लोग और उनके नेटवर्क का पता चल सकता है।
  • सुरक्षा मजबूत: भविष्य में ऐसी गलतियां (जैसे बेसरन वैली की सूचना) नहीं होंगी।

क्या मुश्किलें हैं?

  • खुफिया चूक: बेसरन वैली में हमला होने का मतलब है कि खुफिया जानकारी में कमी थी। इसे तुरंत ठीक करना मुश्किल है, क्योंकि खुफिया तंत्र को मजबूत करने में समय और संसाधन चाहिए।
  • जटिल इलाका: पहलगाम का बेसरन वैली घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों से भरा है। यहां आतंकियों को ढूंढना आसान नहीं।
  • लगातार खतरा: LoC पर घुसपैठ की कोशिशें बार-बार होती रहती हैं। इन्हें पूरी तरह रोकना बहुत मुश्किल है।

भौगोलिक तथ्य:

  • बेसरन वैली पहलगाम में एक पहाड़ी और जंगली इलाका है, जो पर्यटकों के लिए खूबसूरत है लेकिन आतंकियों के लिए छिपने की अच्छी जगह है।
  • LoC जम्मू-कश्मीर में 740 किमी लंबी है, जिसे पूरी तरह सील करना मुश्किल है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2019 में पुलवामा हमले के बाद NIA ने जैश-ए-मोहम्मद के नेटवर्क का पर्दाफाश किया था।
  • 2016 में उरी हमले के बाद सेना ने LoC पर सतर्कता बढ़ाई थी।

4. अंतरराष्ट्रीय समर्थन और कूटनीति

क्या हुआ?
हमले के बाद कई बड़े देशों ने भारत का साथ दिया:

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, फ्रांस, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, और इटली जैसे देशों ने हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता जताई।
  • पीएम मोदी ने इन नेताओं का ट्वीट और फोन कॉल के जरिए आभार जताया। उन्होंने कहा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को और मजबूत करेगा।

क्या यह संभव है?
हां, यह पूरी तरह संभव है। भारत एक बड़ा और प्रभावशाली देश है, और आतंकवाद के खिलाफ उसकी बात को दुनिया सुनती है।

  • उदाहरण: 2008 में मुंबई हमले और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी कई देशों ने भारत का समर्थन किया था।
  • भारत की कूटनीति बहुत मजबूत है। वह UN, G20, और अन्य मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाता रहा है।

क्या फायदा हुआ?

  • नैतिक समर्थन: इन देशों का साथ भारत को यह भरोसा देता है कि वह अकेला नहीं है।
  • पाकिस्तान पर दबाव: जब बड़े देश भारत का साथ देते हैं, तो पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर कमजोर पड़ता है। उदाहरण के लिए, FATF (Financial Action Task Force) में पाकिस्तान पहले ही ग्रे लिस्ट में है। इस समर्थन से पाकिस्तान पर और दबाव पड़ सकता है।
  • सैन्य कार्रवाई का आधार: अगर भारत भविष्य में सैन्य कार्रवाई करता है (जैसे सर्जिकल स्ट्राइक), तो ये देश उसका विरोध नहीं करेंगे।

क्या मुश्किलें हैं?

  • सांकेतिक समर्थन: ज्यादातर देश सिर्फ बयान देते हैं। ठोस कार्रवाई (जैसे UN में पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध) मुश्किल है, क्योंकि इसके लिए सभी देशों की सहमति चाहिए।
  • चीन की भूमिका: चीन अक्सर पाकिस्तान का साथ देता है। अगर भारत UN में कोई प्रस्ताव लाता है, तो चीन उसे वीटो कर सकता है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2001 में संसद हमले के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत का समर्थन किया था।
  • 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद फ्रांस और अमेरिका ने भारत का साथ दिया था।

5. सर्वदलीय बैठक और राष्ट्रीय एकजुटता

क्या हुआ?

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें कांग्रेस, AAP, TMC, और अन्य दलों के नेता शामिल हुए।
  • इस बैठक में IB (इंटेलिजेंस ब्यूरो) और RAW (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) ने हमले की जानकारी दी। सरकार ने सभी दलों को अपनी रणनीति बताई।
  • विपक्षी नेताओं जैसे राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, और असदुद्दीन ओवैसी ने हमले की निंदा की और सरकार के साथ एकजुटता जताई। हालांकि, कुछ नेताओं ने सुरक्षा खामियों (जैसे बेसरन वैली की सूचना) पर सवाल भी उठाए।

क्या यह संभव है?
हां, यह कदम आसान और जरूरी है। जब देश पर संकट आता है, तो सभी राजनीतिक दल एकजुट होते हैं।

  • उदाहरण: 2001 में संसद हमले, 2016 में उरी, और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी सर्वदलीय बैठकें हुई थीं।

क्या फायदा हुआ?

  • राष्ट्रीय एकता: यह दिखाता है कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा देश एकजुट है।
  • विपक्ष का समर्थन: जब विपक्ष सरकार के साथ खड़ा होता है, तो सरकार को और ताकत मिलती है।
  • पारदर्शिता: सरकार ने विपक्ष को पूरी जानकारी दी, जिससे जनता को भरोसा होता है कि कोई छिपाव नहीं हो रहा।

क्या मुश्किलें हैं?

  • विपक्ष के सवाल: कुछ नेताओं ने सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाए, जिससे सरकार को जवाब देना पड़ सकता है।
  • राजनीति: कुछ दल इसे राजनीतिक मुद्दा बना सकते हैं, जिससे एकता कमजोर हो सकती है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2019 में पुलवामा हमले के बाद विपक्ष ने सरकार का समर्थन किया था, लेकिन बाद में कुछ दलों ने सुरक्षा पर सवाल उठाए थे।

6. प्रधानमंत्री का संकल्प

क्या हुआ?

  • पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी में एक जनसभा में कहा, “जिन्होंने यह हमला किया, उन आतंकियों और उनके साजिशकर्ताओं को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी। हम धरती के अंतिम छोर तक उनका पीछा करेंगे।”
  • उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति की बात दोहराई और कहा कि 140 करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति आतंकवाद को खत्म कर देगी।

क्या यह संभव है?
हां, यह एक प्रतीकात्मक बयान है, जो हर बड़े नेता संकट के समय देता है।

  • उदाहरण: 2019 में पुलवामा हमले के बाद पीएम मोदी ने कहा था, “आतंकियों ने बड़ी गलती की है, उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।” इसके बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक हुई थी।

क्या फायदा हुआ?

  • जनता में विश्वास: ऐसे बयान लोगों को भरोसा देते हैं कि सरकार कमजोर नहीं पड़ेगी।
  • पाकिस्तान को चेतावनी: यह बयान पाकिस्तान को संदेश देता है कि भारत कड़ा जवाब दे सकता है।
  • सेना का मनोबल: सेना और सुरक्षा बलों का हौसला बढ़ता है।

क्या मुश्किलें हैं?

  • केवल बयान: अगर इसके बाद ठोस कार्रवाई (जैसे सैन्य हमला) नहीं हुई, तो लोग इसे खोखला बयान मान सकते हैं।
  • अतिशयोक्ति: “धरती के अंतिम छोर” जैसे शब्द प्रतीकात्मक हैं, लेकिन वास्तव में हर आतंकी को पकड़ना मुश्किल है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2016 में उरी हमले के बाद पीएम ने कड़ा बयान दिया था, जिसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक हुई।

7. सैन्य कार्रवाई की संभावना

क्या हुआ?

  • डिफेंस विशेषज्ञों ने कहा कि भारत पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) में 42 आतंकी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक या एयरस्ट्राइक कर सकता है। इन ठिकानों पर 110-130 आतंकी मौजूद हैं।
  • सरकार ने अभी सैन्य कार्रवाई की पुष्टि नहीं की, लेकिन रक्षा मंत्री की सेना प्रमुखों के साथ बैठक और पीएम का बयान इसकी ओर इशारा करते हैं।

क्या यह संभव है?
हां, सैन्य कार्रवाई संभव है, क्योंकि भारत पहले भी ऐसा कर चुका है।

  • उदाहरण:
  • 2016 में उरी हमले के बाद भारत ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जिसमें कई आतंकी ठिकाने नष्ट हुए।
  • 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट (पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा) में एयरस्ट्राइक की थी।
  • तकनीक: भारत के पास ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, और ब्रह्मोस मिसाइल जैसे हथियार हैं, जो सटीक हमले कर सकते हैं।

क्या फायदा हुआ?

  • आतंकी ठिकाने नष्ट: सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकी ठिकानों को नुकसान पहुंच सकता है।
  • पाकिस्तान पर दबाव: यह दिखाता है कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा।
  • जनता का समर्थन: 2016 और 2019 की कार्रवाइयों को जनता ने बहुत सराहा था।

क्या मुश्किलें हैं?

  • जटिल भूभाग: पीओके का इलाका पहाड़ी और जंगली है, जिससे सैन्य ऑपरेशन मुश्किल हो सकता है।
  • परमाणु जोखिम: भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं। अगर सैन्य कार्रवाई से तनाव बढ़ा, तो यह खतरनाक हो सकता है।
  • जवाबी हमला: पूर्व पाक राजनयिक अब्दुल बासित ने चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाई से बलूचिस्तान या अन्य इलाकों में आतंकी हमले बढ़ सकते हैं।
  • खुफिया जानकारी: सटीक हमले के लिए बहुत सटीक जानकारी चाहिए, जो हमेशा आसान नहीं होती।

वैज्ञानिक/भौगोलिक तथ्य:

  • पीओके का भूभाग: यह पहाड़ी और जटिल इलाका है, जहां आतंकी छोटे-छोटे समूहों में छिपते हैं।
  • भारत की तकनीक: भारत के पास इसरो की सैटेलाइट और ड्रोन हैं, जो रात में भी सटीक जानकारी दे सकते हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक में भारत ने 7 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था।
  • 2019 की बालाकोट स्ट्राइक में जैश-ए-मोहम्मद का बड़ा ठिकाना तबाह हुआ था।

निष्कर्ष

मोदी सरकार के ये सात कदम दिखाते हैं कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपना रहा है। कुछ कदम तुरंत प्रभावी हैं, जैसे अटारी चेक पोस्ट बंद करना, राजनयिक निष्कासन, और सर्च ऑपरेशन। कुछ कदम, जैसे सिंधु जल संधि निलंबन और सैन्य कार्रवाई, जटिल हैं और इनके लिए लंबी योजना चाहिए।

  • क्या संभव है?
  • कूटनीतिक और आर्थिक कदम (अटारी बंद, वीजा रद्द, राजनयिक निष्कासन) तुरंत लागू हो सकते हैं।
  • सैन्य और सुरक्षा उपाय (सर्च ऑपरेशन, NIA जांच) आतंकियों पर दबाव बनाते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सर्वदलीय बैठक राष्ट्रीय एकता और वैश्विक छवि को मजबूत करते हैं।
  • क्या मुश्किल है?
  • सिंधु नदी का पानी पूरी तरह रोकना तुरंत संभव नहीं। इसके लिए बड़े बांध और सालों की मेहनत चाहिए।
  • सैन्य कार्रवाई जोखिम भरी है, क्योंकि इससे भारत-पाक तनाव बढ़ सकता है।
  • खुफिया चूक को तुरंत ठीक करना मुश्किल है।

ये कदम पाकिस्तान को यह संदेश देते हैं कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। लेकिन इनके दीर्घकालिक असर के लिए सरकार को ठोस नीतियां, बेहतर खुफिया तंत्र, और वैश्विक सहयोग बढ़ाना होगा।

पहलगाम आतंकी हमले पर विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया: विस्तृत विश्लेषण

22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए और कई घायल हुए, ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली। भारत सरकार ने तत्काल सात बड़े कदमों की घोषणा की, जिनमें सैन्य, कूटनीतिक, और आर्थिक कार्रवाइयां शामिल हैं। इस लेख में पहले सात कदमों का विस्तृत विश्लेषण दिया गया था, और अब हम विपक्षी दलों और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं को विस्तार से समझेंगे। यह जानकारी सरल भाषा में दी गई है ताकि हर कोई इसे आसानी से समझ सके। यह खबर आपके न्यूज़ पोर्टल पर प्रकाशित करने के लिए तैयार है।


विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

पहलगाम आतंकी हमले के बाद विपक्षी दलों और अन्य राजनीतिक दलों ने इसकी कड़ी निंदा की और सरकार के साथ एकजुटता दिखाई। हालांकि, कुछ दलों ने सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाए और सरकार से ठोस कार्रवाई की मांग की। नीचे प्रमुख दलों की प्रतिक्रियाओं को विस्तार से समझाया गया है:

1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)

प्रतिक्रिया:

  • राहुल गांधी (लोकसभा में विपक्ष के नेता): राहुल गांधी ने हमले की कड़ी निंदा की और सरकार को हर तरह की कार्रवाई के लिए पूरा समर्थन देने का ऐलान किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, और जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तारिक कर्रा से फोन पर बात की। उन्होंने स्थिति का अपडेट लिया और कहा कि पीड़ितों के परिवारों को न्याय मिलना चाहिए। राहुल गांधी ने यह भी कहा, “हमारा फुलेस्ट सपोर्ट है।”
  • मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता): खड़गे ने भी गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के नेताओं से फोन पर बात की। उन्होंने X पर लिखा कि यह “जघन्य हमला” है और इसके दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने सरकार से मांग की कि सीमा पार से हुए इस हमले का “मजबूत जवाब” दिया जाए। खड़गे ने यह भी कहा कि विपत्ति के समय सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होना चाहिए और सरकार को कश्मीर में शांति कायम करने के लिए हर कदम उठाना चाहिए।
  • कांग्रेस कार्य समिति (CWC): 24 अप्रैल, 2025 को CWC की आपात बैठक हुई, जिसमें हमले की निंदा की गई और शांति व एकजुटता की अपील की गई। बैठक में एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें निम्नलिखित मांगें शामिल थीं:
  • सुरक्षा चूक की जांच: पहलगाम को त्रिस्तरीय सुरक्षा वाला सुरक्षित क्षेत्र माना जाता है। फिर भी, हमला होने से खुफिया विफलता और सुरक्षा चूक का सवाल उठता है। CWC ने इनकी गहन जांच की मांग की।
  • अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा: चूंकि पहलगाम अमरनाथ यात्रा के रास्ते में पड़ता है, CWC ने इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा।
  • पीड़ितों को न्याय: CWC ने पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताई और कहा कि सुरक्षा चूक के दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
  • कांग्रेस का रुख: कांग्रेस ने सरकार को समर्थन देने के साथ-साथ सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाए। पार्टी ने कहा कि जनहित में यह जरूरी है कि सरकार खुफिया तंत्र को मजबूत करे और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोके।

विश्लेषण:

  • कांग्रेस ने हमले की निंदा और सरकार को समर्थन देकर राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया।
  • सुरक्षा चूक पर सवाल उठाकर पार्टी ने सरकार को जवाबदेह ठहराने की कोशिश की, जो विपक्ष की भूमिका को दर्शाता है।
  • CWC की बैठक और राहुल गांधी का अमेरिका दौरा बीच में छोड़कर लौटना दिखाता है कि पार्टी इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है।

2. समाजवादी पार्टी (सपा)

प्रतिक्रिया:

  • अखिलेश यादव (सपा अध्यक्ष): अखिलेश यादव ने हमले की निंदा की लेकिन केंद्र की बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने X पर लिखा कि बीजेपी सरकार “संवेदनहीन” है और वह आपदा का इस्तेमाल “राजनीतिक लाभ” के लिए करती है। अखिलेश ने सरकार से मांग की कि वह आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाए और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करे।
  • रामगोपाल यादव: सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए और सरकार को समर्थन देने की बात कही। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को खुफिया विफलताओं पर ध्यान देना चाहिए।

विश्लेषण:

  • सपा ने हमले की निंदा की और सरकार को समर्थन दिया, लेकिन अखिलेश यादव का बयान बीजेपी पर राजनीतिक हमला था।
  • यह रुख उत्तर प्रदेश में सपा की विपक्षी भूमिका को दर्शाता है, जहां वह बीजेपी को घेरने का मौका ढूंढती है।
  • सर्वदलीय बैठक में रामगोपाल यादव की मौजूदगी से पता चलता है कि सपा राष्ट्रीय एकता के लिए सरकार के साथ खड़ी है, लेकिन वह सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाना जारी रखेगी।

3. आम आदमी पार्टी (AAP)

प्रतिक्रिया:

  • संजय सिंह (AAP सांसद): संजय सिंह ने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और हमले की निंदा की। उन्होंने कहा कि AAP आतंकवाद के खिलाफ सरकार के हर कदम का समर्थन करेगी। संजय सिंह ने यह भी कहा कि दिल्ली और पंजाब में AAP सरकारें आतंकवाद के खिलाफ सतर्क हैं और केंद्र के साथ मिलकर काम करेंगी।

विश्लेषण:

  • AAP ने बिना किसी विवाद के सरकार का समर्थन किया, जो उसकी राष्ट्रीय छवि को मजबूत करने की कोशिश को दिखाता है।
  • संजय सिंह का बयान संतुलित था, जिसमें न तो सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाए गए और न ही कोई राजनीतिक हमला किया गया।

4. तृणमूल कांग्रेस (TMC)

प्रतिक्रिया:

  • सुदीप बंदोपाध्याय (TMC सांसद): सुदीप बंदोपाध्याय ने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और हमले की निंदा की। उन्होंने कहा कि TMC आतंकवाद के खिलाफ है और सरकार को हर जरूरी कदम उठाने के लिए समर्थन देगी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए दीर्घकालिक नीतियां बनानी चाहिए।

विश्लेषण:

  • TMC ने पश्चिम बंगाल में अपनी मजबूत स्थिति को देखते हुए संतुलित रुख अपनाया।
  • शांति की बात करके TMC ने कश्मीर के लोगों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई, जो उसकी राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण है।

5. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM)

प्रतिक्रिया:

  • असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM अध्यक्ष): ओवैसी ने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और हमले की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि आतंकवाद किसी भी धर्म या समुदाय का नहीं होता और AIMIM सरकार के साथ है। हालांकि, ओवैसी ने सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाए और पूछा कि इतने सुरक्षित क्षेत्र में हमला कैसे हो गया। उन्होंने सरकार से मांग की कि वह कश्मीर में स्थानीय लोगों का भरोसा जीते।

विश्लेषण:

  • ओवैसी का बयान आतंकवाद के खिलाफ मजबूत रुख को दर्शाता है, जो उनके मुस्लिम समुदाय के बीच संदेश को संतुलित करता है।
  • सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाकर उन्होंने सरकार को जवाबदेह ठहराने की कोशिश की।
  • स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने की बात कश्मीर में उनकी राजनीतिक रुचि को दिखाती है।

6. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC)

प्रतिक्रिया:

  • उमर अब्दुल्ला (जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री): उमर अब्दुल्ला ने हमले की निंदा की और केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करने का वादा किया। उन्होंने श्रीनगर में गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक की और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने पर चर्चा की। उमर ने कहा कि कश्मीर के लोग आतंकवाद से तंग आ चुके हैं और शांति चाहते हैं।
  • NC का रुख: NC ने हमले के विरोध में कश्मीर बंद का आह्वान किया और स्थानीय लोगों से एकजुटता दिखाने को कहा।

विश्लेषण:

  • NC की प्रतिक्रिया कश्मीर के स्थानीय संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी है।
  • उमर अब्दुल्ला का केंद्र के साथ सहयोग और शांति की बात करना कश्मीर में स्थिरता की जरूरत को दर्शाता है।
  • कश्मीर बंद का आह्वान स्थानीय लोगों के गुस्से और एकजुटता को दिखाता है।

7. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP)

प्रतिक्रिया:

  • PDP ने हमले की निंदा की और कश्मीर बंद का समर्थन किया। पार्टी ने कहा कि यह हमला कश्मीर की शांति और पर्यटन को नुकसान पहुंचाने की साजिश है। PDP ने सरकार से मांग की कि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए और कश्मीर में विकास कार्यों को बढ़ाए।

विश्लेषण:

  • PDP का रुख NC के समान है, क्योंकि दोनों पार्टियां कश्मीर में स्थानीय मुद्दों पर काम करती हैं।
  • पर्यटन पर जोर देना कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहलगाम जैसे क्षेत्र पर्यटन पर निर्भर हैं।

8. अन्य दल

  • बीजू जनता दल (BJD): सस्मित पात्रा ने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और सरकार को समर्थन दिया।
  • तेलुगु देशम पार्टी (TDP): लावु श्रीकृष्ण देवरायलु ने हमले की निंदा की और सरकार के साथ एकजुटता जताई।
  • शिवसेना: श्रीकांत शिंदे ने सरकार के कदमों का समर्थन किया।
  • द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK): टी शिवा ने हमले की निंदा की और सरकार को समर्थन देने की बात कही।
  • राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP): प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले ने सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और सरकार के साथ खड़े होने का ऐलान किया।
  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन: दीपांकर भट्टाचार्य ने सर्वदलीय बैठक को “चुनिंदा जनसंपर्क कार्यक्रम” बताया और छोटे दलों को शामिल न करने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार को सभी दलों को साथ लेना चाहिए।

विश्लेषण:

  • ज्यादातर क्षेत्रीय दलों ने सरकार का समर्थन किया, जो राष्ट्रीय एकता को दर्शाता है।
  • छोटे दलों की शिकायत (जैसे CPI-ML) यह दिखाती है कि सर्वदलीय बैठक में सभी को शामिल करना हमेशा संभव नहीं होता।

9. गैर-राजनीतिक संगठनों की प्रतिक्रिया

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS): RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने हमले की कड़ी निंदा की और कहा कि यह “देश की एकता व अखंडता पर प्रहार” है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से एकजुट होकर इसकी भर्त्सना करने को कहा। RSS ने सरकार से पीड़ितों की सहायता और दोषियों को सजा देने की मांग की।
  • स्थानीय संगठन: कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस, PDP, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, और अपनी पार्टी जैसे संगठनों ने कश्मीर बंद का आह्वान किया। कई कश्मीरी अखबारों ने अपने पहले पन्ने काले रंग में छापे।

विश्लेषण:

  • RSS की प्रतिक्रिया बीजेपी की विचारधारा के करीब है, जो कठोर कार्रवाई पर जोर देती है।
  • कश्मीर बंद और अखबारों का काला पन्ना स्थानीय लोगों के गुस्से और एकजुटता को दिखाता है।

सर्वदलीय बैठक में विपक्ष की भूमिका

24 अप्रैल, 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू मौजूद थे। IB और RAW के अधिकारियों ने नेताओं को हमले की जानकारी दी। बैठक में निम्नलिखित बिंदु उभरे:

  • विपक्ष का समर्थन: सभी दलों ने एक सुर में कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वे सरकार के साथ हैं। किरेन रिजिजू ने कहा कि चाहे कितने भी राजनीतिक मतभेद हों, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सभी एकजुट हैं।
  • सुरक्षा चूक का मुद्दा: सरकार ने माना कि बेसरन वैली में सुरक्षा चूक हुई, क्योंकि वहां कोई पुलिस पिकेट नहीं थी और SOP (मानक संचालन प्रक्रिया) का अभाव था। विपक्ष ने इस पर सवाल उठाए और जांच की मांग की।
  • कश्मीर में शांति: कई दलों ने सरकार से कश्मीर में शांति और विकास पर ध्यान देने को कहा।

प्रभाव:

  • सर्वदलीय बैठक ने राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया।
  • विपक्ष के सवालों ने सरकार को सुरक्षा खामियों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया।

तथ्यपूर्ण विश्लेषण: विपक्ष की प्रतिक्रिया का प्रभाव

  1. राष्ट्रीय एकता:
  • विपक्ष के समर्थन से यह संदेश गया कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा देश एकजुट है। यह सरकार को कठोर कार्रवाई (जैसे सैन्य या कूटनीतिक कदम) के लिए नैतिक और राजनीतिक ताकत देता है।
  • उदाहरण: 2019 के पुलवामा हमले के बाद भी विपक्ष ने सरकार का समर्थन किया था, जिसके बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक हुई।
  1. सुरक्षा खामियों पर सवाल:
  • कांग्रेस, AIMIM, और सपा जैसे दलों ने बेसरन वैली में खुफिया विफलता और सुरक्षा चूक पर सवाल उठाए। इससे सरकार पर दबाव बढ़ा कि वह खुफिया तंत्र और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करे।
  • भौगोलिक तथ्य: बेसरन वैली एक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है, जहां 5.5 किमी के रास्ते पर कोई पुलिस पिकेट नहीं था। यह आतंकियों के लिए हमला आसान बनाता है।
  1. राजनीतिक रणनीति:
  • कुछ दल (जैसे सपा) ने बीजेपी पर राजनीतिक हमला किया, जो उनकी क्षेत्रीय राजनीति को दर्शाता है।
  • कांग्रेस ने समर्थन और सवाल दोनों को संतुलित किया, जो उसकी राष्ट्रीय विपक्षी भूमिका को दिखाता है।
  1. कश्मीर में स्थानीय दलों की भूमिका:
  • NC और PDP ने कश्मीर बंद और शांति की अपील करके स्थानीय लोगों की भावनाओं को आवाज दी।
  • यह कश्मीर की जटिल राजनीति को दर्शाता है, जहां स्थानीय दल केंद्र के साथ सहयोग और क्षेत्रीय हितों को संतुलित करते हैं।

निष्कर्ष

विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों ने पहलगाम आतंकी हमले की एकजुट होकर निंदा की और सरकार को समर्थन दिया। कांग्रेस, AAP, TMC, AIMIM, NC, PDP, और अन्य दलों ने राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया, लेकिन सुरक्षा खामियों पर सवाल भी उठाए। सपा जैसे दलों ने बीजेपी पर राजनीतिक हमला किया, जो क्षेत्रीय राजनीति को दर्शाता है। सर्वदलीय बैठक ने दिखाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सभी दल एक साथ हैं, लेकिन विपक्ष ने सरकार को जवाबदेह ठहराने की भूमिका भी निभाई। यह प्रतिक्रिया भारत की लोकतांत्रिक ताकत को दर्शाती है, जहां मतभेदों के बावजूद संकट के समय एकजुटता दिखाई जाती है।

स्रोत:

  • आज तक, इंडिया टीवी, दैनिक ट्रिब्यून, प्रभात खबर, BBC, रिपब्लिक भारत।
  • X पर विपक्षी नेताओं के पोस्ट।
  • सर्वदलीय बैठक और CWC की जानकारी।

नोट: यह खबर 27 अप्रैल, 2025 तक की जानकारी पर आधारित है। स्थिति में बदलाव के साथ अपडेट जरूरी हो सकता है।

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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)