छत्तीसगढ़ का प्रचीन दक्षिण मुखी शंख दर्शन के लिए साल में सिर्फ एक बार निकाला जाता है। करीब साढ़े 500 सालों से इस शंख को एक खास ताले में लॉक करके सुरक्षित रखा गया है। दीपावली की रात इसे बाहर आम लोगों के लिए निकाला गया लोगों ने इसके दर्शन किए।
ये शंख मौजूद है रायपुर के दूधाधारी मठ में। शंख को सिर्फ दीपावली पर निकाला जाता है। दूधाधारी मठ में 1 नवंबर की रात दीपावली की विशेष लक्ष्मी पूजा की गई इसके बाद इस शंख की पूजा की गई। मान्यता है कि इस शंख में मां लक्ष्मी का वास होता है। दूर दराज से लोग इसकी दर्शन करने पहुंचे।शंख की झलक लोगा मोबाइल फोन में भी कैद करते दिखे।
मठ के महंत रामसुंदर दास ने बताया कि ये परम्परा 550 साल पुरानी है। मठ को बनाने वाले महंत दूधाधारी इस शंख को लेकर आए थे। तब से हर दिवाली की रात पूजा के बाद आम लोगों को इसके दर्शन कराए जाते हैं। इसके बाद ये पूरे साल सुरक्षित रख दिया जाता है।
दिवाली की रात इस शंख के दर्शन करने से पुण्य मिलता है ।550 साल पुराना ताला आज भी शंख की हिफाजत कर रहा है।राम निवास में रखा जाता है शंख बीती रात लोग मठ में पहुंचना शुरू हो चुके थे। मठ में पुराने लोहे की सलाखों वाले गेट के भीतर लकड़ी के खम्बो वाले पुराने कमरे में शंख रखा था। इस जगह को मठ के लोग राम निवास कहते हैं।
यहां भगवान राम के सोने के आभूषण सुरक्षित रखे जाते हैं।इस प्राचीन कमरे में अंदर रखा जाता है शंख।ये जगह मठ की सबसे सुरक्षित जगह है। सिर्फ महंत को ही यहां प्रवेश की इजाजत है। पूजा के बाद कुछ ही मिनट के लिए शंख को निकाला गया। लोगों ने दर्शन किए। फिर वापस इसे ताले में बंद कर दिया गया।
इसके बाद भी लोग मठ में आते रहे शंख के दर्शन करने की मांग करते रहे मगर नियमा सख्त हैं एक बार प्राचीन ताले में शंख बंद हुआ तो एक साल बाद ही इसे बाहर निकाला जाता है।दिवाली की रात सिर्फ इस शंख को देखने भक्त आते हैं।क्या है दक्षिण मुखी शंख को लेकर मान्यता दरअसल, शंख की प्राप्ति समुद्र मंथन से हुई है। जिस वक्त देवताओं असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था।
उस दौरान 14 रत्न प्राप्त किए गए थे। जिसमें से एक शंख भी है। शंखों में सबसे श्रेष्ठ दक्षिणावर्ती शंख को बताया गया है। वामावर्ती शंखों का पेट बाई तरफ खुला हुआ रहता है जबकि दक्षिणावर्ती शंख का मुख दायीं तरफ होता है। शास्त्रों में इस शंख को बेहद शुभ कल्याणकारी माना गया है। इस शंख में लक्ष्मी जी का वास माना जाता है। इस शंख से नकारात्मक ऊर्जा भी दूर हो जाती है।
रायपुर के भोसले राजाओं की मदद से बना था ये मठ।दूधाधरी मठ से जुड़ी रोचक बातेंयह मठ शहर के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है।1554 में राजा रघुराव भाेसले ने महंत बलभद्र दासजी के लिए मठ का निर्माण कराया था।यहां कई देवी-देवताओं की मूर्ति और मंदिर हैं। यहां बालाजी मंदिर, वीर हनुमान मंदिर और राम पंचायतन मंदिर प्रमुख हैं।
इन मंदिरों में मराठाकालीन पेंटिंग आज भी देखी जा सकती है।मठ के संस्थापक महंत बलभद्र दास बहुत बड़े हनुमान भक्त थे।एक पत्थर को हनुमान मानकर श्रद्धाभाव से से उसकी पूजा-अर्चना करने थे।वह अपनी गाय सुरही के दूध से हनुमानजी की प्रतिमा को नहलाते थे, फिर उसी दूध का सेवन करते थे।
कुछ समय बाद उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और सिर्फ दूध को ही आहार के रूप में लेने लगे।इसी वजह से मठ का नाम दूधाधारी मठ रख दिया गया।