“बीजापुर-तेलंगाना बॉर्डर: कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सलियों पर कहर बनकर टूटे जवान, पांच दिन से जारी है अभियान”

राजेंद्र देवांगन
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बीजापुर। बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टा की 5 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों पर पिछले पांच दिनों से जवानों की सांसें थमी हुई हैं। हजारों जवान चिलचिलाती धूप और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में नक्सलियों की तलाश में जुटे हैं, लेकिन पहाड़ की रहस्यमयी खामोशी ने ऑपरेशन को और भी खतरनाक बना दिया है।

गूंजते धमाके, लेकिन कोई निशाना नहीं

कर्रेगुट्टा में नक्सलियों ने पहले से ही पहाड़ के निचले हिस्सों में IED बिछा रखे थे। फोर्स जब भीतर घुसी तो धमाकों की आवाजें गूंज उठीं। पर आश्चर्य की बात यह रही कि पहाड़ के ऊपर से न तो एक भी गोली चली और न ही किसी नक्सली का कोई सुराग मिला।
ग्रामीणों की मानें तो फायरिंग भी सिर्फ जवानों की तरफ से हो रही है, जो अंदाजे से पहाड़ के अलग-अलग हिस्सों को निशाना बना रहे हैं। पहाड़ पर सन्नाटा पसरा हुआ है, जैसे वहां कोई हो ही नहीं — या फिर कोई ऐसी घात लगाए बैठा हो, जो सही वक्त का इंतजार कर रहा हो।

क्या नक्सली चुपचाप निकल गए? या किसी बड़ी साजिश की तैयारी में हैं?

जंगलों में फुसफुसाहट है कि ऑपरेशन शुरू होते ही नक्सली कर्रेगुट्टा छोड़कर तेलंगाना के गहरे जंगलों में जा चुके हैं। वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सली जानबूझकर गोलीबारी नहीं कर रहे ताकि उनकी लोकेशन ट्रेस न हो सके।
गर्मी में जवानों के थक जाने के बाद अगर मुठभेड़ होती है तो नक्सलियों को रणनीतिक बढ़त मिल सकती है। इसके अलावा वे अपना हथियार और बारूद बचा रहे हैं ताकि निर्णायक टकराव के समय पूरी ताकत से हमला कर सकें।

पसीने से तर-बतर जवान, हौसले बुलंद

सुरक्षाबल हर चुनौती के लिए तैयार हैं। 5000 से ज्यादा जवानों के साथ शुरू हुए इस मेगा ऑपरेशन में अब बैकअप के तौर पर 2000 अतिरिक्त जवानों को भी मैदान में उतारा गया था।
जब एक टीम थककर लौटती है, तो दूसरी टीम मोर्चा संभालती है। दंतेवाड़ा से भेजी गई डीआरजी की टुकड़ी को भी अब वापस बुला लिया गया है। जवान एक-एक घूंट पानी के सहारे गरम जमीन पर अपनी जान की बाजी लगाकर ऑपरेशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

कर्रेगुट्टा की चुप्पी के पीछे कौन सी कहानी छिपी है?

कर्रेगुट्टा पहाड़ की चुप्पी कई सवाल छोड़ रही है। क्या नक्सली इस पहाड़ पर अब भी छिपे हुए हैं? क्या वे किसी घातक हमले की तैयारी कर रहे हैं? या फिर यह सब कुछ महज एक छलावा है?
जवानों की यह जद्दोजहद यह बताती है कि नक्सलवाद से जंग आसान नहीं है। यह लड़ाई सिर्फ बंदूकों की नहीं, बल्कि धैर्य, रणनीति और हिम्मत की भी है। और इस लड़ाई में हर कदम पर जवानों की जान दांव पर लगी है।

अंतिम लड़ाई का बिगुल? या एक लंबी जंग की शुरुआत?

कर्रेगुट्टा में चल रहे इस ऑपरेशन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि नक्सली इलाकों में हर एक कदम एक परीक्षा है। अब सवाल यही है — क्या यह ऑपरेशन नक्सलियों के सफाए का अंतिम अध्याय बनेगा या फिर यह लड़ाई और लंबी चलेगी?


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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)