भाजपा नेता के खिलाफ 52 FIR, मद्रास हाई कोर्ट बोला- ऐसे आपराधिक शख्स को नहीं दे सकते सुरक्षा, जानिए पूरा मामला..!
मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक नेता की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोर्ट पुलिस को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को निजी सुरक्षा अधिकारी (PSO) प्रदान करने का निर्देश देने लगे तो समाज का ज्यूडिशरी से भरोसा उठ जाएगा।
1 अप्रैल को पारित आदेश में जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने भाजपा के ओबीसी राज्य सचिव के वेंकटेश द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि पिछले साल अगस्त में याचिकाकर्ता के एक करीबी रिश्तेदार की अज्ञात व्यक्तियों ने हत्या कर दी थी। घटना के बाद याचिकाकर्ता वेंकटेश को भी कई धमकी भरे फोन आने लगे। उन्होंने बंदूक रखने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन भी किया और हासिल भी कर लिया। इसके बाद उन्होंने पीएसओ के लिए पुलिस से संपर्क किया, लेकिन राज्य पुलिस ने उनकी मांग का इस आधार पर विरोध किया कि उनकी खुद की आपराधिक पृष्ठभूमि थी।
पुलिस ने कोर्ट में एक स्थिति रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि वेंकटेश के खिलाफ लगभग 52 एफआईआर दर्ज थी। जिसमें आंध्र प्रदेश में 49 और तमिलनाडु में 3 एफआईआर दर्ज थीं।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट में वेंकटेश को हिस्ट्रीशीटर बताया गया है। इसमें आगे कहा गया कि वेंकटेश के जीवन को खतरे में डालने वाली ज्यादातर धमकियां उसकी खुद की हरकतों का नतीजा थीं।
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस सुरक्षा प्रदान करने की याचिका पर विचार करते समय, उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि और कद पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है, जो ऐसी पुलिस सुरक्षा की मांग कर रहा है। यदि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जिसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित नहीं है, तो यह कोर्ट सीधे प्रतिवादियों को बिना किसी हिचकिचाहट के याचिकाकर्ता को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देती। यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं और यदि वह अपनी गतिविधियों के कारण शत्रुता/प्रतिद्वंद्विता पैदा करता है, तो ऐसे मामलों में भी खतरे की आशंका होती है।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि, यदि यह कोर्ट ऐसे व्यक्तियों को पुलिस सुरक्षा देने का निर्देश देता है, तो इससे समाज में गलत संकेत जाएगा और एक सामान्य नागरिक को यह धारणा नहीं मिलनी चाहिए कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को भी पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाती है। अगर ऐसी धारणा बनाई गई तो उनका मौजूदा व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा।”
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