6-सितंबर,2020
संवाददाता अशोक शिरोडे की रिपोर्ट:-
(सवितर्क न्यूज़) भेड़िया गुर्राता है तुम मशाल जलाओ उसमे और तुममें यही बुनियादी फर्क है, भेड़िया मशाल नहीं जला सकता करोड़ों हाथों में मशाल लेकर एक झाड़ी की ओर बढ़ो,सब भेड़िए भागेंगे। मुखर, जुझारू व निर्भीक पत्रकार गोरी लंकेश शहादत दिवस पर विभिन्न प्रगतिशील संगठनों ने सोशल मीडिया में क्रांतिकारी गीत, कविता, व परिचर्चा आयोजन कर उन्हें याद किया। आज हम उठे नहीं तो शीर्षक से IPTA के देश भर के कलाकार तथा अन्य प्रगतिशील संगठनों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी की प्रखर योद्धा शहीद गौरी लंकेश की शहादत के तीसरे स्मरण दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय प्रतिरोध के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की है। स्मरण दिवस पर सोशल मीडिया में क्रांतिकारी गीत, कविता, व परिचर्चा आयोजन कर लोगों ने गौरी लंकेश, दाभोलकर, गोविन्द पनसारे,एम एम कालबर्गी के सपनो के भारत के निर्माण में हर संघर्ष के सहभागी होने की बात कही। आज पत्रकार गौरी लंकेश की शहादत का दिन है। वे एक बेहद बहादुर पत्रकार थीं और जन की आवाज़। वे कन्नड़ में ‘लंकेश पत्रिका’ निकाल रहीं थीं जो उनके पिता पी लंकेश ने शुरू की थी। शायद यही वजह थी कि वे लगातार दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर रहीं।
आज ही के दिन 5 सितंबर, 2017 को बेंगलुरु में उन्हें उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी। इससे पहले बिल्कुल इसी तरह 30 अगस्त 2015 को कन्नड़ विद्वान डॉ. एमएम कलबुर्गी की हत्या कर दी गई थी। और उनसे पहले तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्या की गई। सबका पैटर्न लगभग एक था और शायद मकसद भी- सच की आवाज़ को ख़त्म करना। लेकिन आवाज़ कभी नहीं मरती। विचार हमेशा ज़िंदा रहते हैं।
5 सितंबर, 2015 को लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले संघर्षशील अमनपसंद लोगों ने कलबुर्गी, दाभोलकर और पानसरे के इंसाफ़ के लिए दिल्ली समेत देशभर में आवाज़ बुलंद की और 2017 के बाद इसमें गौरी लंकेश का नाम और जुड़ गया। गौरी लंकेश की पत्रकारिता कॉरपोरेट और सरकारी दबावों से मुक्त पत्रकारिता थी। उनकी पत्रिका विज्ञापनों के बजाय पाठकों के सहयोग के सहारे चलती थी। इसलिए उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दों को हमेशा महत्व दिया। किसानों, दलितों, स्त्रियों की मुक्ति तथा साम्प्रदायिक सद्भाव को उन्होंने पत्रिका के केन्द्र में रखा। जाति प्रथा, साम्प्रदायिक राजनीति तथा अंधश्रद्धा की वे प्रबल विरोधी थीं। अपनी हत्या के पूर्व अपने अंतिम लेख में भी उन्होंने सत्य के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए लोगों की चेतना को भ्रष्ट करने वाले ‘फेक न्यूज’ की प्रवृत्ति पर करारा प्रहार किया था। इस लेख में उन्होंने धज्जियां उड़ायी हैं। जाहिर है, समाज की विभाजनकारी दक्षिणपंथी ताकतें इस समझौताहीन व्यक्तित्व की मुखर आवाज से डरती थीं।
जन पहल, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, किसान सभा, अखिल भारतीय जाती उन्मूलन समिति, NFIW, AIDWA व 50 से अधिक अन्य महिला तथा प्रगतिशील संगठनों ने आज विविध कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया।