Rajiv Lochan Temple : राजीव लोचन मंदिर के बारे में जाने
राजीव लोचन मंदिर अपनी शानदार वास्तुकला और समृद्ध विरासत के लिए लोकप्रिय है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर के चारों ओर सौंदर्यपूर्ण पत्थर की नक्काशी है। यह मंदिर नदियों के संगम पर स्थित है, इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है, माघ पूर्णिमा पर राजीव लोचन मंदिर में मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु भाग लेते हैं। आइये इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं
राजीव लोचन मंदिर
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिर में से एक बार राजीव लोचन मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास राजिम में भगवान विष्णु के चार रूपों को समर्पित भगवान राजीव लोचन मंदिर हैं। जहाँ हर साल हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। राजीव लोचन मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है नदियों के संगम पर स्थित है, मंदिर के अंदर दशावतार और बाल मुकुंद जी के मंदिर हैं। राजिम बस्ती में लगभग 22 मंदिर हैं। मंदिर विशाल है कहा जाता है कि उनकी मूर्ति श्री जानकीजी द्वारा स्थापित की गई थी। लोगों के मान्यताओं के अनुसार राजीव लोचन मंदिर को स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनवाया था।
इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है, माघ पूर्णिमा पर यहाँ मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु भाग लेते हैं। राजीव लोचन मंदिर में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्प का अनूठा संगम है। लोगों का मानना है कि भगवान विष्णु इस मंदिर में विश्राम करने आते हैं।
सोंधुर-परी-महानदी संगम के पूर्व में स्थित राजिम, प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र रहा है। यह रायपुर से दक्षिण-पूर्व में 45 किमी की दूरी पर देवभोग की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित है। राजिवलोचन मंदिर अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण प्राचीन शिल्प कला का एक अद्भुत नमूना है। इस स्थान का प्राचीन नाम पद्मावती था और इसे बाद में राजिम नाम दिया गया था।
राजिम में एक जैन मंदिर भी है। यहां जैन समुदाय की विशेष आस्था का केंद्र है, उनके दर्शन करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है और हमें उनके त्याग और बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए। राजिम छत्तीसगढ़ का मुख्य मंदिर है। जगन्नाथ के यहाँ से लौटने वाले यात्री अक्सर राजिम लोचन जाते हैं।
राजीव लोचन मंदिर का इतिहास ( Rajiv Lochan Mandir History in Hindi )
राजीव लोचन मंदिर का इतिहास : इस मंदिर का निर्माण 5 वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर के अंदर 1197 A.D. का एक शिलालेख है। यह जानकारी उसी से प्राप्त की गई है। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत में भगवान विष्णु की नाभि से निकला कमल यहीं स्थित था और ब्रह्मा जीए ने ब्रह्मांड की रचना यहां से की थी इसीलिए इसका नाम कमलक्षेत्र रखा गया। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग माना जाता है, जो पैरी नदी, सोंढूर नदी और महानदी का संगम है। इस स्थान पर अस्थि विसर्जन और पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
निकटतम हवाई अड्डा– रायपुर (45 किमी) निकटतम हवाई अड्डा है।
निकटतम रेल मार्ग – रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग : राजिम रायपुर और महासमुंद से नियमित बस और टैक्सी उपलब्ध है।
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