बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ अब एक पुराना मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है। करीब 19 साल पहले अपोलो अस्पताल में इलाज के दौरान एक व्यवसायी की मौत हो गई थी। अब उनके बेटे ने सरकंडा थाने में डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन पर हत्या का केस दर्ज करने की मांग की है। इस मांग के बाद पूरे स्वास्थ्य तंत्र और निजी अस्पतालों की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं।
पेट दर्द को बताया हार्ट अटैक, कर दी एंजियोप्लास्टी
तोरवा निवासी और फल व्यवसायी सुरेश डोडेजा ने बताया कि नवंबर 2006 में उनके पिता भगतराम डोडेजा (58) को पेट दर्द की शिकायत हुई थी। इलाज के लिए उन्हें अपोलो अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य ने खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताते हुए इलाज शुरू किया। शुरुआती जांच के बाद उन्होंने कहा कि भगतराम को हार्ट की गंभीर समस्या है और एंजियोप्लास्टी करनी पड़ेगी। इसके लिए परिवार से दो लाख रुपए जमा करवाए गए। इलाज के दौरान उन्हें आईसीयू में रखा गया, और उसी रात उनकी मौत हो गई।
अब खुला डॉक्टर की फर्जी डिग्री का सच
हाल ही में दमोह मिशन अस्पताल में डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य की फर्जी डिग्री उजागर होने के बाद यह पुराना मामला फिर से सामने आया। दमोह में इलाज के दौरान 7 मरीजों की मौत के बाद पुलिस ने जांच की, जिसमें डॉक्टर की डिग्री और विशेषज्ञता पूरी तरह फर्जी पाई गई। इसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया और वर्तमान में वह न्यायिक रिमांड में है।
बिलासपुर पुलिस की टीम जल्द करेगी पूछताछ
बिलासपुर पुलिस ने बताया कि मामले की गहन जांच की जाएगी। सरकंडा थाने में की गई शिकायत के आधार पर पुलिस की एक टीम जल्द दमोह जेल जाकर आरोपी डॉक्टर से पूछताछ करेगी। वहीं, अपोलो अस्पताल प्रबंधन की भूमिका को लेकर भी जांच शुरू की गई है।
कांग्रेस ने जताई नाराज़गी, कलेक्टर को सौंपी शिकायत
इधर कांग्रेस कमेटी ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बिलासपुर कलेक्टर से शिकायत की है। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि अपोलो प्रबंधन की लापरवाही से कई निर्दोष मरीजों की जानें गई हैं। उन्होंने मांग की है कि फर्जी डॉक्टर को नियुक्त करने और बिना प्रमाण पत्र की जांच के इलाज की अनुमति देने पर अस्पताल प्रबंधन पर भी हत्या का केस दर्ज किया जाए।
स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी चूक या मिलीभगत?
इस पूरे घटनाक्रम ने निजी अस्पतालों की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बिना वैध डिग्री और विशेषज्ञता के डॉक्टर को नियुक्त कर मरीजों की जान से खेलना सिर्फ लापरवाही नहीं, आपराधिक साजिश के तहत भी देखा जा सकता है। एक ओर जहां लोगों की जानें गईं, वहीं अपोलो जैसा नामी अस्पताल भी अब कटघरे में खड़ा है।
अब ज़िम्मेदारी तय करना जरूरी
अगर इस मामले में दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आने वाले समय में और बड़ी घटनाओं को न्योता दे सकता है। जरूरत इस बात की है कि न सिर्फ डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य को, बल्कि उसे नियुक्त करने वाले हर जिम्मेदार अधिकारी और संस्था को कानून के कठघरे में लाया जाए। ताकि स्वास्थ्य सेवाओं में दोबारा इस तरह की घातक लापरवाहियां न हों।

राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)