नवा रायपुर – तूता धरना स्थल पर 126 दिनों से लगातार संघर्ष कर रहे बर्खास्त B.Ed प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों का आंदोलन आखिरकार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाकात के बाद समाप्त हो गया। चार महीने से अधिक समय तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले इन शिक्षकों को अब शासन की ओर से समाधान की उम्मीद जगी है।
मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद मिला आश्वासन
सोमवार को शिक्षकों का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मिला। इस दौरान मुख्यमंत्री ने प्रदर्शनकारियों की बातों को गंभीरता से सुनते हुए कहा कि सरकार उनकी समस्याओं को लेकर संवेदनशील है और शीघ्र ही ठोस निर्णय लिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जिसमें B.Ed सहायक शिक्षकों को ‘सहायक शिक्षक (प्रयोगशाला)’ पद पर समायोजित करने की सिफारिश की गई है।
शांतिपूर्ण आंदोलन की अनोखी मिसाल
126 दिनों के इस धरने में शिक्षक अपने हक की लड़ाई पूरी तरह लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण ढंग से लड़ते रहे। उन्होंने कई बार सरकार को ज्ञापन सौंपे, भाजपा कार्यालय का घेराव किया, और यहां तक कि खून से पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त की।
शिक्षकों का कहना है कि वे कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं चला रहे थे, उनका एकमात्र उद्देश्य था – अपनी सेवाओं की बहाली और भविष्य की सुरक्षा।
आश्वासन के बाद सशर्त आंदोलन स्थगित
आंदोलनकारी शिक्षकों ने मुख्यमंत्री के आश्वासन पर भरोसा जताते हुए आंदोलन को सशर्त स्थगित कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि अगर समयबद्ध कार्रवाई नहीं हुई, तो वे पुनः आंदोलन की राह अपनाने को बाध्य होंगे।
परिवारों को मिली राहत, उम्मीद की लौ जली
चार महीने से जारी आंदोलन से न केवल शिक्षक, बल्कि उनके परिवार भी मानसिक और आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। अब आंदोलन समाप्त होने और शासन की ओर से सकारात्मक संकेत मिलने के बाद हजारों परिवारों ने राहत की सांस ली है।
शिक्षकों ने कहा, “हम केवल शिक्षक हैं, और स्कूलों में पढ़ाना ही हमारा धर्म है। लेकिन इसके लिए सरकार को भी हमारी आजीविका और सम्मान की रक्षा करनी होगी।”
सरकार पर अब जिम्मेदारी का दबाव
अब जब आंदोलन थमा है, सरकार के सामने चुनौती है कि वह दिए गए वादे को कागज़ से धरातल पर उतारे। शिक्षकों को समायोजन और पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी अब असंतोष को जन्म दे सकती है।
मुख्यमंत्री का आश्वासन अब महज़ एक वक्तव्य नहीं, बल्कि हज़ारों शिक्षकों और उनके परिवारों के भविष्य से जुड़ा विश्वास है, जिसे निभाना शासन की प्राथमिकता बननी चाहिए।

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