बस्तर के प्रसिद्ध जनजातीय कलाकार पंडीराम मंडावी ने छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाते हुए पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित किया है। केंद्र सरकार ने उन्हें पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला में उनके अपूर्व योगदान के लिए इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में उनकी काष्ठ कलाकृति
नारायणपुर जिले के 68 वर्षीय पंडीराम मंडावी, गोंड मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। पिछले पांच दशकों से वे बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ उसे नई पहचान भी दे रहे हैं। उनकी विशेष पहचान बस्तर बांसुरी (सुलुर) के निर्माण में है, साथ ही लकड़ी पर उभरे चित्र और शिल्पकृतियां बनाने के क्षेत्र में भी उनका बड़ा योगदान है।
टाइगर ब्वाय चेंदरू से मिली गांव को पहचान
पंडीराम मंडावी ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में यह कला अपने पूर्वजों से सीखी और आज अपने समर्पण और कौशल के जरिए छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को वैश्विक मंच पर पहुंचाया है। उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया और हजारों कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस कला को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य किया है।
आदिवासी संस्कृति में मृतक स्तंभ स्थापित करने की परंपरा
- राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पंडीराम मंडावी की इस उपलब्धि पर उन्हें बधाई दी और शुभकामनाएं व्यक्त की। उनके इस योगदान से न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर को नया गौरव मिला है।