न्यायाधीशों के वेतन पर वित्तीय बाधाओं का तर्क, लेकिन मुफ्त योजनाओं के लिए धन उपलब्ध: सुप्रीम कोर्ट

राजेन्द्र देवांगन
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकारों की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनके पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, जो कार्यरत नहीं हैं, लेकिन जब जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन की बात आती है, तो वे वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने दलील दी कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों के निर्धारण में वित्तीय सीमाओं का भी ध्यान रखना होगा।

पीठ ने इस संदर्भ में आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों का उल्लेख किया और महाराष्ट्र सरकार की ‘लाड़ली बहना’ योजना का भी हवाला दिया। अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि सरकार की पेंशन देनदारी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है और वेतन व पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय पहलुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राज्य सरकारों के पास ऐसे लोगों को भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन है, जो काम नहीं करते, लेकिन जब जिला न्यायपालिका से जुड़ा मुद्दा आता है, तो वित्तीय संकट का हवाला दिया जाता है।” न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि “दिल्ली में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा यह घोषणा की जा रही है कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो वे 2,500 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करेंगे।”

अटॉर्नी जनरल ने इस संदर्भ में कहा कि “मुफ्त योजनाओं की संस्कृति को एक विचलन के रूप में देखा जा सकता है,” और अदालत का ध्यान वित्तीय बोझ से जुड़ी व्यावहारिक चिंताओं की ओर आकर्षित किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी परमेश्वर के. ने संविधान के अनुच्छेद 309 का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका को इस मुद्दे पर अपनी राय रखने का पूरा अधिकार है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि “यदि हम अधिक विविधतापूर्ण और सक्षम न्यायपालिका चाहते हैं, तो न्यायाधीशों को बेहतर वेतन और सुविधाएं प्रदान करनी होंगी।”

अटॉर्नी जनरल ने नई पेंशन योजना का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने विभिन्न वित्तीय पहलुओं और राज्य के खजाने पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए यह नीति बनाई है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था। शीर्ष अदालत पहले ही यह स्वीकार कर चुकी है कि भारत में जिला न्यायाधीशों को दी जाने वाली पेंशन दरें अत्यंत निम्न स्तर की हैं।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कल भी जारी रखेगा।

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