रायपुर/बीजापुर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले में 8 जवान शहीद हो गए, जबकि एक ड्राइवर की भी मौत हो गई। मंगलवार को दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई, जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को गृह ग्राम रवाना किया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।
इस भीषण हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) की तैनाती और बारूदी सुरंग हटाने की कवायद के बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का पता क्यों नहीं चल पाया। सुरक्षा विशेषज्ञ भी इस चूक से हैरान हैं।
ROP क्या है?
रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) सुरक्षा बलों की एक विशेष टीम होती है, जिसे नक्सल प्रभावित इलाकों में जवानों के काफिले के गुजरने से पहले सड़कों की जांच, निगरानी और साफ करने की जिम्मेदारी दी जाती है।
ROP की लापरवाही या बड़ी रणनीतिक चूक?
सुरक्षा विशेषज्ञ और नवागढ़ (बेमेतरा) के सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. गिरीशकांत पांडे ने सवाल उठाते हुए कहा,
“यह आश्चर्यजनक है कि ROP और बारूदी सुरंग हटाने के प्रयासों के बावजूद इतना शक्तिशाली विस्फोटक पकड़ा नहीं जा सका। सुरक्षा बल आमतौर पर हाई-टेक मेटल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों का इस्तेमाल करते हैं, फिर भी विस्फोटकों का पता क्यों नहीं चला?”
उन्होंने यह भी कहा कि जब सुरक्षा बलों की इतनी बड़ी आवाजाही हो रही थी, तो ROP को पूरे मार्ग पर तैनात किया जाना चाहिए था, ताकि संदिग्ध गतिविधियों को रोका जा सके। ऐसा संभव है कि हमले के लिए जिम्मेदार नक्सलियों की एक छोटी टीम सड़क के पास ही तैनात थी और उन्होंने विस्फोट को ट्रिगर किया।
6 महीने पहले प्लांट किया गया था IED?
बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि नक्सलियों ने संभवतः 6 महीने से लेकर 1 साल पहले सड़क के नीचे 4-5 फीट गहराई में लगभग 70 किलो वजनी IED प्लांट किया था। क्योंकि जिस स्थान पर ब्लास्ट हुआ, वहां हाल की खुदाई के कोई निशान नहीं मिले हैं।
इसके अलावा, विस्फोटक विशेषज्ञ यह जांच कर रहे हैं कि इलाके में लगातार सर्च ऑपरेशन के बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का पता कैसे नहीं चल पाया। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, IED को प्लास्टिक की थैली या किसी गैर-धातु वाली वस्तु में पैक किया गया हो सकता है, जिससे मेटल डिटेक्टर भी इसे नहीं पकड़ पाए।
विस्फोटक में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की आशंका
आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि IED में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना है, लेकिन विस्तृत जांच के बाद ही इसकी पुष्टि की जा सकेगी।
नक्सलियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन की संलिप्तता
पुलिस की प्रारंभिक जांच में माओवादियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन (LOS) दस्ते के इस हमले में शामिल होने की आशंका जताई गई है। पुलिस के मुताबिक, भैरमगढ़ और कुटरू क्षेत्र में सक्रिय इस नक्सली संगठन के कैडर इस हमले को अंजाम देने में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, इसकी जांच अभी जारी है।
क्या SOP का सही तरीके से पालन किया गया?
आईजी सुंदरराज पी ने दावा किया कि जवानों की वापसी के दौरान पूरे स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) का पालन किया गया। उन्होंने बताया,
- 3 दिन तक चले ऑपरेशन के बाद 1000 से अधिक जवान बेदरे (बीजापुर) पहुंचे थे।
- जवानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) की निगरानी में उनकी सुरक्षित वापसी कराई जा रही थी।
- 12 वाहनों का काफिला बेदरे से निकला था, जिसमें विस्फोट का शिकार हुआ वाहन सातवें नंबर पर था।
- विस्फोट इतना भीषण था कि वाहन के टुकड़े 100-150 मीटर दूर तक जा गिरे।
IED हमलों से कैसे निपट रही सुरक्षा एजेंसियां?
आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि नक्सली इलाकों में जंगलों और सड़कों पर बेतरतीब ढंग से लगाए गए IED सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा एजेंसियां इस खतरे से निपटने के लिए लगातार सतर्क हैं।
- पिछले साल बस्तर संभाग के सात जिलों में 311 IED बरामद किए गए थे।
- यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, लेकिन इससे सुरक्षा बलों का मनोबल प्रभावित नहीं होगा।
- नक्सल विरोधी अभियानों में मिली सफलताओं से जवानों का आत्मविश्वास ऊंचा है।
निष्कर्ष
बीजापुर नक्सली हमला एक बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने आया है, जिसने ROP की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुरक्षा बल अब इस मामले की गहन जांच कर रहे हैं कि इतनी सख्त निगरानी के बावजूद नक्सली इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक प्लांट करने में कैसे सफल हुए। इस हमले के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा रणनीतियों को और कड़ा करने की जरूरत महसूस की जा रही है।