श्री वेंकटेश मंदिर की सबसे खास बात है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा दक्षिण भारतीय शैली में काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी है। यह मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है और इसने बिलासपुर के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इस मंदिर में होने वाली पूजा विधि भी दक्षिण भारतीय शैली में होती है, जो इसे और विशेष बनाती है।
बिलासपुर। संस्कारधानी का श्रीवेंकटेश मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा की जीवंत धरोहर है। यह मंदिर दक्षिण भारत की धार्मिक विधियों और संस्कारों को उत्तर भारत में सजीव बनाए रखने का एक अद्वितीय उदाहरण है। यहां हर वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्ति और उल्लास के साथ भाग लेते हैं। सिम्स चौक के पास स्थित यह मंदिर दक्षिण भारत के भगवान श्री वेंकटेश का एकमात्र मंदिर है, जिसे 80 साल पहले श्री वैष्णव रामानुज संप्रदाय के अनुयायियों ने बनवाया था। प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर यहां भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं। प्रसाद के रूप में पंजरी का विशेष महत्व है।
नागपंचमी से जन्मोत्सव की परंपरा
श्री वेंकटेश मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व अनूठे उत्साह के साथ मनाया जाता है। नागपंचमी से झूला महोत्सव प्रारंभ हो जाता है। इस साल भी यहां झूला उत्सव में प्रतिदिन भजन कीर्तन जारी है। कृष्ण जन्माष्टमी की रात अपने चरम पर होता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को वेंकटेश जी के रूप में पूजा जाता है और मंदिर में भक्तों का तांता सुबह से देर रात तक लगा रहता है। मंत्रोच्चार और भक्ति गीतों के बीच भगवान श्री कृष्ण के जन्म का समय आते ही मंदिर का वातावरण श्रद्धा और आनंद से भर उठता है।
अखंड पूजा की अनूठी परंपरा
महंत डा.कौशलेंद्र प्रपन्नाचार्य, जो इस मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। यह मंदिर श्री वैष्णव रामानुज संप्रदाय की परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है। श्री वेंकटेश मंदिर की एक और अद्वितीय परंपरा यह है कि पिछले 80 वर्षों में एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब यहां पूजा न की गई हो। कोरोना काल के दौरान भी मंदिर के मुख्य पुजारी ने सभी धार्मिक कृत्य पूरे विधि-विधान से जारी रखे, जिससे इस मंदिर की अखंड भक्ति की परंपरा बनी रही। तमिल मंत्रोच्चार के साथ किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग पहचान दिलाते हैं।