आनंद मोहन की रिहाई रहेगी कायम या आजादी होगी खत्म? सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई..!
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की 1994 में हुई हत्या के मामले में लोकसभा के पूर्व सदस्य आनंद मोहन को सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने वाला है. आनंद मोहन, कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे थे. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ दिवंगत अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया की याचिका पर सुनवाई करेगी.
14 साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद आनंद मोहन को पिछले साल अप्रैल में बिहार की सहरसा जेल से रिहा किया गया था.इससे पहले बिहार जेल नियमावली में राज्य सरकार ने संशोधन कर, ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवक की हत्या में शामिल रहने वालों की समय पूर्व रिहाई पर लगी पाबंदी हटा दी थी.
आलोचकों का दावा है कि सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ करने के लिए बिहार जेल नियमावली में संशोधन किया. पूर्व सांसद को निचली अदालत ने 5 अक्टूबर, 2007 को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे पटना हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर, 2008 को सश्रम आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2012 को इसकी पुष्टि की थी.
कृष्णैया की 1994 में भीड़ ने की हत्या
तेलंगाना के रहने वाले कृष्णैया की 1994 में भीड़ ने पीटकर हत्या कर दी थी. यह घटना उस वक्त हुई थी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शव यात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी. आनंद मोहन, जो उस समय विधायक थे, शव यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे और उनपर भीड़ को कृष्णैया की हत्या के लिए उकसाने का आरोप था. सुप्रीम कोर्ट ने 6 फरवरी को आनंद मोहन की सजा माफी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व सांसद को अपना पासपोर्ट जमा करने और हर पखवाड़े स्थानीय पुलिस थाने में हाजिरी देने को कहा था.
आजीवन कारावास की सजा में छूट पर विवाद
पिछले साल 11 अगस्त को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार से पूछा था कि पूर्व सांसद के साथ ऐसे कितने दोषियों को सजा में छूट दी गई है, जिन्हें ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों की हत्या के मामलों में दोषी ठहराया गया था.
बिहार सरकार ने अदालत को बताया था कि आनंद मोहन समेत कुल 97 दोषियों को एक साथ समय से पहले रिहा किया गया. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि आनंद मोहन को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा का मतलब मृत्यु होने तक कारावास है और इसकी व्याख्या केवल 14 वर्षों की जेल के रूप में नहीं की जा सकती है. कृष्णैया की पत्नी ने अपनी याचिका में कहा है कि ’मौत की सजा के विकल्प के रूप में जब आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, तो उसे अदालत के निर्देशानुसार सख्ती से लागू किया जाना होता है और यह सजा माफी दिये जाने से परे होगी.’
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