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छत्तीसगढ़ के रहस्य से भरे इस निरई माता मंदिर का राज…अपने आप प्रज्जवलित होती है ज्योत, हजारों श्रद्धालु आते हैं मन्नत मांगने…!

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Chhattisgarh Temple:
निरई माता मंदिर-ऐसा माता मंदिर, जहां महिलाओं की ही एंट्री नहीं… खुलता है साल में सिर्फ एक बार, पांच घंटे के लिए

Chhattisgarh Temples.भारत एक प्राचीनतम सभ्यता वाला सांस्कृतिक देश हैं। यह विश्व के उन गिने-चुने देशों में से एक है जहां हर वर्ग और समुदाय के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं। यहां की भगौलिक स्थिति, जलवायु और विविध संस्कृति को देखने के लिए ही विश्व के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचते हैं

छत्तीसगढ अपने प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए प्रसिद्ध तो है ही, इसके साथ ही यह राज्य प्रचीन मंदिरों के लिए भी जाना जाता है. छत्तीसगढ में कई ऐसे मंदिर हैं जो लोगों के चकित करते हैं. यही वजह है कि यहां दूर-दूर से लोग मंदिरों में दर्शन करने आते हैं. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित निरई माता का मंदिर है.   

निरई माता के मंदिर में ऐसे होती है पूजा
यही नहीं देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपने साथ कई रहस्य समेटे हुए हैं. इन रहस्यों के कारण ही ये मंदिर दुनियाभर में विख्यात हैं. निरई माता के मंदिर में मां को सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता बल्कि नारियल और अगरबत्ती से माता की पूजा करके प्रसन्न किया जाता है. खास बात ये है कि यह मंदिर साल में सिर्फ पांच घंटे के लिए ही खुलता है. साथ ही यहां महिलाओं के लिए का पूजा करना और मंदिर में आना वर्जित है.

साल में केवल 5 घंटे के लिए खुलता है मंदिर 
आमतौर पर मंदिरों में जहां दिन भर देवी-देवताओं की पूजा होती है, भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. तो वहीं निरई माता का मंदिर साल में केवल 5 घंटे के लिए खुलता है, जिसमें सुबह 4 बजे से 9 बजे तक माता के दर्शन किए जा सकते हैं. बाकी दिनों में यहां आना प्रतिबंधित होता है. जब भी यह मंदिर खुलता है, यहां माता के दर्शन के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं.

अपने आप ज्योति प्रज्जवलित होती है
कहते हैं कि निरई माता मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान अपने आप ही ज्योति प्रज्जवलित होती है. यह चमत्कार कैसे होता है, यह आज तक पहेली ही बना हुआ है. गांव वालों का कहना है कि यह निरई देवी का चमत्कार है, कि बिना तेल के ज्योति नौ दिनों तक जलती रहती है. निरई माता मंदिर में महिलाओं को प्रवेश और पूजा-पाठ की अनुमति नहीं है. यहां सिर्फ पुरुष पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं. महिलाओं के लिए इस मंदिर का प्रसाद खाना भी वर्जित है. कहते हैं कि महिलाएं अगर मंदिर का प्रसाद खा लें तो उनके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है.

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