पानी के लिए तरसे लोग:नाले में झिरिया बनाकर प्यास बुझा रहे ग्रामीण, गर्मी में और बढ़ जाती है परेशानी…!
छत्तीसगढ़ में बीजापुर- दंतेवाड़ा- जिले की सरहद पर बैलाडीला की पहाड़ी के नीचे बसे एक गांव के ग्रामीण पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। शुद्ध पानी की एक-एक बूंद के लिए गांव वाले मोहताज हो गए हैं। फिलहाल, ग्रामीणों ने गांव से करीब एक से डेढ़ किमी की दूरी पर एक बरसाती नाला के किनारे चुआ पानी भरने में लगता है दिनभर का समय,
इसमें रिसकर जमा होने वाले पानी से लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं। पीने के पानी की इस समस्या के संबंध में ग्रामीणों ने प्रशासन को अवगत भी करवाया है। लेकिन, अब तक समाधान नहीं हो पाया है। लोगों को रोजाना ही इस संकट का सामना करना पड़ रह है। गर्मी के दिनों में समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं।
बैलाडीला पहाड़ी के नीचे बसे नक्सल प्रभावित गांव पिनकोंडा बंजारा पारा के ग्रामीण पानी को मोहताज हैं। इस गांव के सैकड़ों ग्रामीणों के बीच सिर्फ एक ही हैंडपंप है। उसमें से भी लाल पानी निकलता है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पीने योग्य नहीं है। गांव के ग्रामीण करीब एक से डेढ़ किमी की दूरी पर बरसाती नाला के पास झिरिया बना रखे हैं। इसी झिरिया के पानी से प्यास बुझा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, झिरिया में पानी भरने में दिनभर का समय लग जाता है। ऐसे में सभी लोगों को पर्याप्त पानी भी उपलब्ध नहीं होता है।ग्रामीणों ने बताया कि, बारिश के दिनों में नदी का जल स्तर ठीक ठाक होता है। लेकिन गर्मी के समय हालात और अधिक खराब हो जाते हैं। झिरिया के अलावा पहाड़ में बने छोटे-छोटे झरने भी पीने के पानी के स्रोत हैं। लेकिन, गर्मी के दिनों में ये स्रोत भी सूख जाते हैं। जिससे परेशानी और अधिक बढ़ जाती है। गांव वालों का कहना है कि, इस संबंध में प्रशासन को अवगत करवाया गया है। लेकिन समस्या का समाधान करने किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
बैलाडीला की पहाड़ी के नीचे आस-पास कई गांव बसे हैं। इलाका पूरी तरह से नक्सलियों का गढ़ है। कई गांवों तक पहुंचने के लिए आज भी पक्की सड़क नहीं है। पतली पगडंडी ही एक मात्र सहारा है। इन चुनौती की वजह से प्रशासन की पहुंच से गांव दूर रहता है। सालों साल ग्रामीण समस्या को लेकर अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं। लेकिन, समस्या का समाधान नहीं हो पाता है।