देवउठनी एकादशी (तुलसी विवाह) के दिन कल महिलाएं उपवास रखकर देर शाम को अपने-अपने घरों के सामने तुलसीजी की शादी रचाएंगी। इसके लिए गन्ने का बाजार पूरी तरह से सज गया है।

राजेन्द्र देवांगन
3 Min Read

देवउठनी एकादशी (तुलसी विवाह) के दिन कल महिलाएं उपवास रखकर देर शाम को अपने-अपने घरों के सामने तुलसीजी की शादी रचाएंगी। इसके लिए गन्ने का बाजार पूरी तरह से सज गया है।

वहीं जिन माता-पिता की बेटी नहीं है वे तुलसी पौधे का विवाह रचाकर कन्यादान करेंगे। क्योंकि कन्यादान सबसे बड़ा दान है जो लोग कन्यादान नहीं करते, उनका सारा पुण्य व्यर्थ जाता है।

गन्नों का बाजार तुलसी विवाह से पहले ही सज गया है और महंगाई के इस दौरान लोग एक दिन पहले से इसकी खरीदारी करने भी लगे गए है क्योंकि तुलसी पूजा के दिन कहीं उन्हें इसकी दोगुनी कीमत न देनी पड़े। इस कोरोना महामारी के कारण वैसे भी गन्नें बेचने वाले ज्यादा दिखाई नहीं दिए जो बेच भी रहे है वे चिल्हर में 50 से 60 रुपये जोड़ा दे रहे है। साल में एक बार हर घर में तुलसी पौधे का विवाह करने की परंपरा है इसलिए गन्ने की खरीदारी की जाती है। वहीं दूसरी ओर तुलसी पौधे का ब्याह रचाने की मान्यता के चलते नर्सरियों में भी तुलसी से गमले तैयार किए गए है

जिन्हें वे 50 से 100 रुपये के करीब में बेच रहे है।

तुलसी विवाह करने से पहले गन्ना का मंडप सजाकर पूजन सामग्री में चना भाजी, बेर, सिंघाड़ा, आंवला, अमरूद, सीताफल, गेंदा फूल, श्रीफल रखकर पूजन किया जाता है। इसके बाद कुंवारी धागा लेकर मंडल के सात फेरा लगाया जाता है और इसके बाद बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद व्रतधारी महिलाएं अपना उपवास तोड़ती है। उपवास पूजा करें। सोलह श्रृंगार अर्पित करके मंदिर में अथवा ब्राह्मण को दान

वहीं दूसरी ओर बेटी को मान सम्मान देने की परंपरा सनातन धर्म में हजारों साल से चली आ रही है। कन्यादान सबसे बड़ा दान है जो लोग कन्यादान नहीं करते, उनका सारा पुण्य व्यर्थ है। भले ही परिवार में कितने ही बेटे हों, लेकिन हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उनकी एक बेटी अवश्य हो ताकि वे कन्यादान का पुण्य लाभ प्राप्त कर सकें। जिनकी बेटियां नहीं है, वे लोग तुलसी के पौधे को अपनी बेटी मानकर विधि-विधान से विवाह रचाते हुए कल नजर आएंगी।

Share this Article

You cannot copy content of this page