विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला ,,, भगवान राम के वनवासकाल से भी जुड़ा है इतिहास ,,,देखें पूरी खबर

राजेन्द्र देवांगन
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विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला ,,, भगवान राम के वनवासकाल से भी जुड़ा है इतिहास ,,,देखें पूरी खबर

छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व की कई जगहें है. उन्हीं में से एक है सरगुजा की सीताबेंगरा गुफा. इस गुफा को विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है. इस गुफा का इतिहास भगवान श्री राम के वनवासकाल से जुड़ा है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के समय उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत रामगढ़ के पहाड़, जंगल में समय व्यतीत किया था. रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली एक गुफा भी है. जिसे सीताबेंगरा के नाम से जाना जाता है. सीताबेंगरा का शाब्दिक अर्थ है. सीता माता का निजी कमरा. छत्तीसगढ़ में स्थानीय बोली में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है. इसलिए इस गुफा को सीताबेंगरा कहा जाता है.

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भगवान राम के वनवास के दौरान सीताजी ने इसी गुफा में आश्रय लिया था. इसलिए यह सीताबेंगरा के नाम से प्रसिद्ध हुई. यही गुफा रंगशाला (कहा जाता है कि यह दुनिया का पहला रंगमंच है) के रूप में कला-प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल है. यह गुफा 44.5 फुट लंबी ओर 15 फुट चौड़ी है. 1960 ई. में पूना से प्रकाशित ‘ए फ्रेश लाइट ऑन मेघदूत’ द्वारा सिद्ध किया गया है कि रामगढ़ (सरगुजा) ही श्री राम की वनवास स्थली है. सीताबेंगरा गुफा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गई है. सीताबेंगरा गुफा का महत्व इसके नाट्यशाला होने से है. इसमें कलाकारों के लिए मंच नीचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊंचाई पर है.

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मिथकों के आधार पर कहा जाता है कि राम, सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास काल का कुछ समय यहीं बिताया था. इसी मिथक कथा से जोड़कर मुख्यगुफा को सीताबेंगरा कहा जाता है. जिसका अर्थ होता है सीता की गुफा. वैसे तो ये गुफा प्राकृतिक हैं लेकिन मनुष्यों ने अपनी अभिरुचि से इसे उपयोग के लायक बना लिया है.

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इससे गुफा के भीतर एक कमरा और उसमें बैठने के लिए चबूतरा बन गया है. कुल मिलाकर यह गुफा साढ़े 44 फ़ुट लंबी और छह फ़ुट चौड़ी है. इसी का एक हिस्सा नाट्यशाला का मंच माना जाता है. इसके सामने, कुछ नीचे एक अर्धचंद्राकार निर्माण है. जिसे दर्शक दीर्घा माना जाता है और यहां पचास के लगभग दर्शकों की जगह है.

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इन गुफाओं के पास ब्राह्मी लिपि में कुछ लेख मिले हैं और इन्ही लेखों के आधार पर दवा किया जाता है कि ये नाट्यशाला रही होगी. हालांकि इन लेखों का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है लेकिन जितना हिस्सा बचा है, उसे पढ़कर प्रतीत होता है कि इस जगह का संबंध अवश्य ही किसी प्रदर्शन कला से रहा होगा.

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छत्तीसगढ़ पुरातात्विक संघ के संरक्षक कमलकांत शुक्ल बताते हैं कि ईसा पूर्व से पहले यहां के प्रमाण मिलते हैं. भगवान राम ने वनवास काल के दौरान यहां समय व्यतीत किया था. सिताबेंगरा का शाब्दिक अर्थ है कि माता सीता का ये प्राइवेट कमरा था. स्थानीय बोली में बेंगरा शब्द का अर्थ कमरा होता है. इसलिए इस जगह को सीता बेंगरा कहा जाता है. कमलकांत शुक्ल का मत है की सीता माता इस कमरे में निवास करती थीं. भरत मुनि के नाटयशास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है की इस जगह पर विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला है, जहां पर उस समय लोग नाटकों का यंहा मंचन किया करते थे और ये उनके लिए मनोरंजन का विशेष स्थान था.

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कमलकांत शुक्ल ने आगे बताया कि महाकवि कालिदास भी इस जगह पर अपना समय बिताए हुए हैं. महाकाव्य मेघदूतम की रचना यहीं पर किया गया था. आज भी लोग यहां पर हर वर्ष बादलों की पूजा करते है और हर वर्ष एक त्यौहार का आयोजन करके इस जगह के बारे में बताते हुए कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं. इसके अलावा सीताबेंगरा के पास जो पांव के निशान है. उसका मतलब है की यहां दो ग्रीन रूम थे. एक पुरुषों के लिए और एक महिलाओं के लिए थे. जो नाटक के दौरान तैयार होने के लिए इस्तेमाल करते थे.

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