पूर्व महाधिवक्ता की अग्रिम जमानत पर हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित: FIR और सबूतों पर जोरदार बहस
छत्तीसगढ़ के नान घोटाले में फंसे पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला आदेश के लिए सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह निर्णय लिया।
FIR पर उठाए सवाल
सतीश चंद्र वर्मा की ओर से सीनियर एडवोकेट किशोर भादुड़ी ने तर्क दिया कि महाधिवक्ता के खिलाफ मामला दर्ज करने से पहले राज्य शासन को धारा 17(A) के तहत अनुमति लेनी चाहिए थी। यह प्रावधान 2018 में लागू किया गया था, लेकिन इस मामले में अनुमति नहीं ली गई। वकील ने केस को राजनीति से प्रेरित और कानून के विरुद्ध बताते हुए जमानत देने का आग्रह किया।
उन्होंने यह भी कहा कि नान घोटाला 2015 का है, लेकिन एफआईआर अब जाकर 2023 में दर्ज की गई। सुप्रीम कोर्ट और अन्य सुनवाई के दौरान सरकार तीन साल तक निष्क्रिय क्यों रही?
शासन का जवाब: FIR पर्याप्त सबूतों पर आधारित
शासन की ओर से पेश की गई केस डायरी और तर्कों में कहा गया कि ईडी की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही एफआईआर दर्ज की गई। जांच में पाया गया कि पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने आरोपी अफसरों अनिल कुमार टुटेजा और आलोक शुक्ला के साथ मिलकर षडयंत्र किया।
ईडी की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी अफसर जमानत के लिए न्यायाधीशों से संपर्क में थे, और वर्मा ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई। शासन ने इसे गंभीर आरोप बताते हुए जमानत का विरोध किया।
स्पेशल कोर्ट ने भी खारिज की थी अग्रिम जमानत
इससे पहले, रायपुर की स्पेशल कोर्ट ने भी वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि आरोपी की भूमिका आपराधिक षडयंत्र में अहम है और उनके सहयोग के बिना षडयंत्र संभव नहीं था।
अब हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार किया जा रहा है, जो सभी पक्षों की दलीलों के आधार पर तय किया जाएगा।
Editor In Chief