छत्तीसगढ़ में मवेशियों की मौत पर HC ने जताई नाराजगी, जानिए क्या कहा

राजेन्द्र देवांगन
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बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान अफसरों की कार्यप्रणाली पर चीफ जस्टिस हुए नाराज।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सड़कों पर मवेशियों की मौत पर गहरी चिंता जाहिर की है। अफसरों की कार्यप्रणाली और अव्यवस्था से नाराज चीफ जस्टिस ने एडवोकेट जनरल प्रफुल्ल एन भारत से पूछा है कि, क्या दिक्कतें आ रही है।

आखिर समस्या का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा है।.डिवीजन बेंच ने बिलासपुर कलेक्टर के बच्चों से आइडिया लेने और उन्हें शामिल करने पर हैरानी जताई। कहा कि बड़े-बड़े अफसरों का आइडिया फेल हो रहा है। करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में खुद से काम नहीं हो रहा है, तो बच्चों से आइडिया ले रहे हैं। बच्चों को इसमें शामिल करने के बजाए उन्हें पढ़ने दीजिए। जब वो साइंटिस्ट बन जाएंगे फिर उनसे आइडिया लेंगे तो बेहतर होगा।

दरअसल, मवेशियों के कारण लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों और लोगों की मौत को लेकर चल रही जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने प्रशासनिक अफसरों के रवैए पर कड़ी नाराजगी जताई।मवेशियों के कारण लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों और लोगों की मौत को लेकर चल रही जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई।

बच्चों को इन्वॉल्व करने पर भड़के चीफ जस्टिस, चीफ जस्टिस सिन्हा की डिवीजन बेंच ने मीडिया में आई खबर पर महाधिवक्ता से जानकारी ली। पूछा कि मवेशियों को हटाने बच्चों को क्यों शामिल किया जा रहा है। बच्चों के लिए प्रतियोगिता आयोजित करने पर उन्होंने कटाक्ष किया।

कहा कि प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है, तो बच्चों से आइडिया मांग रहे हैं। बच्चे इसमें क्या आइडिया देंगे। उन्हें अभी पढ़ने दीजिए।

गौशाला संचालक की तरफ लगी हस्तक्षेप याचिका एडवोकेट रमाकांत पांडेय ने हस्तक्षेप आवेदन प्रस्तुत किया। इसमें गौशाला संचालकों की तरफ से मवेशियों की सुरक्षा को लेकर बिंदुवार सुझाव दिए गए हैं। इस पर चर्चा हुई तब हाईकोर्ट ने फिर से व्यंग्य करते हुए कहा कि, जब बच्चों से आइडिया ले रहे हैं, तो आप लोग सुझाव दे ही सकते हैं। उनके सुझाव पर शासन-प्रशासन को अमल करने के लिए कहा।

हस्तक्षेप आवेदन पर दिया ये सुझाव पंजाब और हरियाणा की तरह छत्तीसगढ़ में भी पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और इसे प्रतिबंधित किया जाए।छत्तीसगढ़ के सभी गांवों में मनरेगा की योजना चलाई जा रही है। इसके तहत मवेशियों की मॉनिटरिंग करने के लिए मजदूरों से काम लिया जाए। मनरेगा से चरवाहों की व्यवस्था करने से मवेशियों की सुरक्षा और मॉनिटरिंग हो सकेगी।

इससे किसानों की फसलों की सुरक्षा भी हो सकेगी।सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए राजनीतिक और अन्य कई कारणों से चारागाह की भूमि को सुरक्षित की जाए। चारागाह की जमीन पर अतिक्रमण रोकी जाए।राज्य सरकार पहले से स्थापित गौठानों को व्यवस्थित करने के लिए प्रभावी उपाय करे। इन गौठानों पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। लेकिन, अभी तक राज्य सरकार ने इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कोई योजना नहीं बनाई है।

गांवों में पीडीएस योजना के तहत लाभार्थियों को चावल के स्थान पर धान दिया जाए। ताकि मार्कफेड, एफसीआई, सहकारी बैंक और समिति का बोझ कम हो और किसानों को ‘चावल की भूसी’ (कोढ़ा) की व्यवस्था करने में मदद मिल सके।जिस प्रकार राज्य सरकार की योजना के अनुसार पीडीएस के माध्यम से चावल, गेहूं और अन्य अनाज सब्सिडी पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उसी प्रकार पशु आहार भी पीडीएस योजना के माध्यम से सब्सिडी देकर कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाए।

अब तक क्या कार्रवाई की गई, हलफनामा के साथ बताएं CS इस सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप कर्ता के वकील मयंक चंद्राकर के सुझाव को शामिल करने के लिए कहा है। इसके साथ ही सड़कों पर मवेशियों को आने से रोकने के लिए अब तक किए गए प्रयासों की जानकारी मांगी है। इसके लिए राज्य शासन के मुख्य सचिव को निगरानी और अब तक उठाए गए कदमों पर नया हलनामा प्रस्तुत करने को कहा है। केस की अगली सुनवाई 25 नवंबर को होगी ।

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