काछन देवी ने दी बस्तर दशहरा मनाने की अनुमति: कांटों से बने झूले पर झूलकर कमलचंद भंजदेव को दिया फूल, 616 साल पुरानी है परंपरा

राजेन्द्र देवांगन
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काछनदेवी ने राज परिवार के सदस्यों को दशहरा मनाने की अनुमति दीं।बस्तर दशहरा की सबसे महत्वपूर्ण काछनगादी रस्म 2 अक्टूबर की शाम निभाई गई। 8 साल की पनका जाति की बालिका पीहू दास पर काछनदेवी सवार हुईं। फिर बस्तर राजपरिवार के सदस्यों को बेल के कांटों से बने झूले पर झूलकर दशहरा मनाने की अनुमति दी।.दरअसल, जगदलपुर के भंगाराम चौक स्थित काछनगुड़ी में रस्म को निभाया गया है। बुधवार की देर शाम बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव समेत अन्य सदस्य काछनगुड़ी पहुंचे। यहां पीहू पर काछन देवी सवार हुईं।लगभग 616 सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, बेल के कांटों से बने झूले पर सवार होकर उन्होंने दशहरा मनाने आशीर्वाद स्वरूप कमचंद भंजदेव को फूल देकर पर्व मनाने अनुमति दीं।निभाई गई रस्म।राज घराने की थीं, सुसाइड किया था- कमलचंद भंजदेवकमलचंद भंजदेव ने कहा कि, काछन और रैला माता दोनों राजघराने की बेटियां थीं। जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी। उनकी पवित्र आत्मा यहीं पर विराजती हैं। काछन माता और रैला माता एक छोटी कन्या पर आती हैं। सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि पित्र पक्ष के आखिरी दिन राजा खुद आशीर्वाद लेने आते हैं। माता फूल के रूप में आशीर्वाद दीं हैं। जिससे बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्न हो।यह है मान्यतापनका जाति की कुंवारी कन्या ही इस रस्म को अदा करती हैं। 22 पीढ़ियों से इसी जाति की कन्याएं इस रस्म की अदायगी कर रही हैं। पिछले साल भी पीहू ने इस रस्म को निभाया था। इससे पहले अनुराधा ने विधान पूरा किया था। पीहू ने बताया कि उसे इस रस्म को पूरा करने का मौका मिला है। वो बहुत खुश है।राज घराने के सदस्य।यह भी जानिएकुछ जानकारों ने बताया कि, बस्तर महाराजा दलपत देव ने काछनगुड़ी का जीर्णोद्धार कराया था। करीब 616 साल से यह परंपरा इसी गुड़ी में संपन्न हो रही है। काछनदेवी को रण की देवी भी कहा जाता है। पनका जाति की महिलाएं धनकुल वादन के साथ गीत भी गाती हैं। नवरात्र से ठीक एक दिन पहले राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव काछनगुड़ी पहुंचकर देवी से दशहरा मनाने की अनुमति ली।

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