कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी बुधवार को तुलसी शालिग्राम विवाह किया जाएगा। इसके साथ ही शादी समारोह भी शुरू हो जाएंगे। इस दिन शालिग्राम संग तुलसी सात फेरे लेंगी। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का खास महत्व है, क्योंकि इसके साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाते हैं। पं.सतीश सोनी ने बताया कि तुलसी और शालिग्राम के विवाह की पुराणों में विशेष कथाएं पढ़ने को मिलती हैं। विष्णु पुराणों के अनुसार शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इसलिए एकादशी पर महिलाएं घरों में तुलसी और शालिग्राम का विवाह कर उनकी परिक्रमा करती हैं। साथ ही घर के आंगन में लगे तुलसी के पौधे पर सुहाग का सामान अर्पित करती हैं। साथ ही कुवांरी कन्या अच्छे वर की कामना के लिए इस पूजा में शामिल होती हैं और सुहागन महिलाएं परिवार की सुख समृद्धि की कामना करती हैं।
तुलसी शालिग्राम विवाह कथाः कथाओं के अनुसार दैत्य शंकचूण के अत्याचारों से ऋषि-मुनि,देवता और मनुष्य सभी परेशान थे। वह बेहद शक्तिशाली था। उसके शक्तिशाली होने के पीछे उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म पालन करने से प्राप्त पुण्य थे, जो उसकी युद्ध में हमेशा देवताओं के अस्त्र शस्त्राें से रक्षा करते थे। इसलिए सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास उसके कृत्यों को लेकर प्रार्थना करने गए थे। तब भगवान विष्णु वृंदा के पति शंकचूण का रूप धारण कर उसके पास पहुंचे और वृंदा के पतिव्रता धर्म को खंडित किया। इसके बाद शंकचूण का वध किया। वृंदा को जब पता लगा कि उसका व्रत भगवान विष्णु ने खंडित किया है तब उसने उन्हें श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को तुलसी के पौध के रूप में पृथ्वी पर उसके साथ पत्थर के रूप में साथ रहने का वचन दिया।
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