
गिरौदपुरी धाम के बारे में जाने रोचक तथ्य, जानकर आश्चर्य होगा… History of Gurughasi Das Ji,Amazing Fact in Hindi, Baloda Bazar,Chhattisgarh,…!छत्तीसगढ़ की धार्मिक और पर्यटन दृष्टि से गिरौदपुरी धाम विश्व विख्यात हैं। गुरु घासीदास बाबा की इस पावन भूमि में लोग उनके दर्शन मात्र के लिए दूर-दूर से देखने के लिए आते हैं। गिरौदपुरी में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में पुरे साल भर आते रहते हैं। यहाँ का पावन जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर हैं (243 फीट), जो भारत देश की कुतुंबमीनार से 7 मीटर की अधिक ऊंचाई पर हैं।
बाबा गुरुघासी जी के प्रवेश द्वारा में 101 किग्रा वजन वाले घंटा लगा हुआ हैं। मंदिर में प्रवेश करते हैं आपको आत्मीय आनंद की अनुभूति होने लगेगी, जो बहुत ही सुखदायक हैं। बाबा जी के मंदिर, मंदिर परिसर के बीचो-बीच स्थित हैं, जिसके सामने एक मनोकामना पेड़ हैं। यहाँ लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद, सफ़ेद वस्त्र में नारियल रखकर बांधते हैं।
इस परिसर में आपको तीन अन्य मंदिर एक साथ दिखाई देंगे। पहला मंदिर में बाबा जी ने अपनी पत्नी सफुरा को जीवित किया था। दूसरा मंदिर को मनोकामना मंदिर कहते हैं। तथा तीसरा मंदिर में बाबाजी , बचपन में खेला करते थे। एक मंदिर कुछ ही वर्षो में निर्माण किया गया हैं जो बाबा गुरुघासी दास के पुत्र बाबा अमरदास जी का हैं।
मंदिर परिसर के पीछे, बार के जंगलों से लगा हुआ दो कुंड हैं – 1. चरण कुंड, 2. अमृत कुंड। , ऐसा कहा जाता हैं जब बाबाजी आत्मज्ञान प्राप्त करके आ रहे थे तब उन्होंने चरणकुण्ड में अपना चरण धोये थे। और अमृत कुंड के जल से मरे हुए हिरण के बच्चे को जीवित किये थे। इन दोनों कुंड का जल कभी भी ख़राब नहीं होता हैं। अमृत कुंड के पास ही कुछ दुरी में शेर गुफा हैं, ऐसा कहा जाता की शेर आज भी इस गुफा में संध्या होने के बाद आते हैं।

छत्तीसगढ़ को संत-महात्माओं की जन्मस्थली कहा जाता हैं। उनमे से 18वीं सदी में छत्तीसगढ़ के सतनाम धर्म के प्रवर्तक सतगुरु बाबा घासीदास जी जन्म प्रमुख हैं। उनका जन्म 18 दिसम्बर सन 1756 को पिता महंगुदास और माता अमरौतिन के घर ग्राम गिरौदपुरी में हुआ था।
वे कठिन से कठिन समस्या का समाधान बड़ी ही सरलता से निकाल लेते थे। उनका विवाह सिरपुर निवासी अँजोरी दास और सत्यवती उर्फ़ सावित्री की सुन्दर, सुशील कन्या सफुरा के साथ कर दिया गया। सफुरा करुणा, दया, त्याग, तपस्या और ममता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थी। उनसे गुरु घासीदास चार पुत्र क्रमश अमरदास जी, बालकदास जी, आगरदास जी, अड़गड़िया दास जी, एवं एक पुत्री सहोद्रा का जन्म हुआ।
उस समय अंग्रेजो और मराठा का संधि काल था। समाज में अन्याय, अत्याचार, छुआछूत, ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव, रूढ़िवाद, धार्मिक अन्धविश्वास और आडम्बर आदि से वे बहुत विचलित हुए। इन सब परिस्थितियों से विरक्त होकर जंगल चले गए। तप व साधना में वे लीन हो गए।
वे जब वापस आये तब उनकी पत्नी सफुरा का देहांत हो चूका था। उनके जिद कारण ही गांव वालों ने उनके मृत शरीर को जमीन से बाहर निकाला। परीक्षा के पूर्व उन्होंने मृत बछड़े को जीवित किया था। जिसे देख कर लोग जान चुके थे की बाबा के पास अलौकिक शक्ति हैं।

जनमानस में चेतना जागृत करने के लिए उन्होंने सतनाम का उपदेश और प्रचार करने लगे, जिससे उनके सम्मान में उत्तरोत्तर वृध्दि होने लगे। उसके बाद दूर-दूर से लोग आकर उनके अनुनायी बनने लगे। सभी धर्मों और जाति के लोग उनके अलौकिक महिमा और उपदेश से प्रभावित होकर सतनाम धर्म ग्रहण कर अनुनायी हो गए।
बाबा घासीदास जी प्रमुख उपदेश –
‘सतनाम’ ही सार हैं। जो की प्रत्येक प्राणी के घट-घट में समाया हुआ हैं। अतः ‘सतनाम’ को ही मानो।
‘सत’ ही मानव का आभूषण हैं। अतः सत को मन, वचन, कर्म, व्यवहार, और आचरण में उतारकर, सतज्ञानी, सतकर्मी, और सतगुणी बनो।
‘मानव मानव एक समान’ अर्थात धरती पर सभी मानव बराबर हैं।
मूर्तिपूजा, अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, बाह्याडम्बर, छुआछूत, ऊंचनीच, जातिगत भेदभाव, बलिप्रथा, मांसभक्षण, नशापान, व्यभिचार, चोरी, जुआ आदि अनैतिक कर्मों को छोडो।
काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, घृणा जैसे षडविकारों को त्याग कर सत्य, अंहिंसा, दया, करुणा, सहानुभूति जैसे मानवीय गुणों को अपनाकर सात के मार्ग पर चलों।
स्री और पुरुष समान हैं। नारी को सम्मान दो। पर नारी को माता मानों।
सभी प्राणियों पर दया करों। गाय, भैंस को हल में मत जोतो तथा दोपहर में हल मत चलाओं।

दोस्तों यहाँ तक आप पढ़ चुके हैं इसका मतलब आपको गिरौदपुरी मेला का भव्य आयोजन के बारे में पता ही होगा। यह मेला प्रतिवर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में पंचमीं, षष्ठी, और सप्तमी को तीन दिवसीय विशाल मेला का आयोजन होता हैं। इस मेले में दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते हैं। और तीन दिनों तक मेला का आनंद उठाते हैं। Giroudpuri Mela में तीन दिनों में ही लोगों की संख्या लाखों के पार पहुंच जाता हैं। इतने लोग सिर्फ बाबा जी के गुरुगद्दी के दर्शन और आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।
आप इस देश के किसी भी कोने से रहे। आपको एक बार इस भव्य मेले में जरूर आना चाहिए। यह मेला सिर्फ आस्था पर टीका हुआ हैं जिसके कारण लोग यहाँ घूमने व दर्शन करने आते हैं।
सतनाम धर्म के अनुनायियों के लिए गिरौदपुरी गांव, गिरौदपुरी धाम के रूप में प्रसिद्द हैं। आइये गिरौदपुरी धाम के दर्शनीय स्थलों के बारे में जाते हैं।
सतगुरु बाबा घासीदास जी का मुख्य गुरुगद्दी – यह गिरौदपुरी गांव से 2 किमी की दुरी पर एक पहाड़ी पर स्थित हैं। इसी स्थान पर औंरा, धौंरा, और तेन्दु पेड़ के नीचे बाबा जी ने छः महीने की कठोर तपस्या के बाद “सतनाम” आत्मा ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इसे तपोभूमि भी कहते हैं। श्रद्धालुगण यही अपनी मनोकामना की पूर्ति तथा कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं।

चरण कुंड – मुख्य गुरुगद्दी तपोभूमि से दक्षिण में थोड़ी दुरी पर पहाड़ी के नीचे एक कुंड हैं, जिसे “चरण कुण्ड” कहते हैं।
अमृत कुंड – चरण कुंड से 100 मीटर आगे “अमृत कुंड” हैं। बाबाजी ने अपने अलौकिक शक्ति से जीव-जंतुओं और जंगली जानवरों के संकट निवारण के लिए यहाँ “अमृतजल” प्रकट किया था। इसका पवित्र जल बरसों रखने पर भी ख़राब नहीं होता हैं। तथा यहाँ बरोमास जल भरा हुआ होता हैं।
विश्व का सबसे ऊँचा जैतखाम – छत्तीसगढ़ शासन द्वारा निर्मित 54 करोड़ रूपये की लागत से बना सफ़ेद रंग का विशाल जैतखाम लोगो के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। जिसकी ऊंचाई 243 फ़ीट हैं।
चरण चिन्ह स्थल – सतगुरु बाबा के दोनों पैरों का चिन्ह एक चट्टान पर ऐसे बना हैं, जैसे की किसी के पैर का छाप गीली मिटटी पर बना हो।
बाघपंजा स्थल – एक चट्टान पर बाघ के पांव का चिन्ह बना हैं। कहते हैं की बाबाजी का परीक्षा लेने के लिए सतपुरुष साहेब बाघ के रूप में आये थे, उसी चिन्ह पत्थर पर बना हैं।
पंचकुण्डी – तपोभूमि से 6 किमी आगे जाने पर पंचकुण्डी हैं। यहाँ पर अलग-अलग पांच कुंड बने हैं। जिसके जल का पान श्रद्धालुगण करते हैं।
छातापहाड़ – तपोभूमि से 7 किमी दूर बार जंगल के बीच एक बहुत बड़ी शिला हैं, जिसे छातापहाड़ कहते हैं। यहाँ सद्गुरु बाबा घासीदास जी द्वारा तप, ध्यान और साधना किया गया था।

जन्मभूमि – गिरौदपुरी बस्ती में स्थित जन्मभूमि न केवल सतगुरु बाबा घसीदास जी की जन्मभूमि हैं, बल्कि उनके 5 बच्चों की जन्मस्थली हैं। जन्मस्थल के द्वार पर बहुत पुराना जैतखाम स्थापित हैं। यह बाबा जी का घर हैं। इस जगह पर आपको उनके जन्मस्थली, बावड़ी, बाड़ी सभी कुछ दर्शन करने को मिलेगा।
सफुरामठ एवं तालाब – जन्म स्थल से करीब 200 गज की दुरी पर पूर्व दिशा में एक छोटा सा तालाब हैं, जिसके किनारे ‘सफुरामठ’ हैं , बाबाजी जब ज्ञान प्राप्ति के बाद वापस घर आये, तब उनकी पत्नी सफुरा की देहांत हो चुकी थी। जिसे बाबा जी सतनाम-सतनाम कहकर अमृत पिलाकर पुनर्जीवित किया था। उस घटना की स्मृति में यह मठ बना हैं।
बछिया जीवनदान स्थल – गिरौदपुरी बस्ती से लगा हुआ ‘बछिया जीवनदान स्मारक’ बना हुआ हैं। लोगो के कहने पर गुरुबाबा ने यहाँ पर मृत बछड़े को जीवित किया था।
बहेरा डोली – गिरौदपुरी गांव पहुंचने से 1 किमी पहले नहरपार से पश्चिम दिशा की ओर 1 किमी पर ‘बहेरा डोली’ खेत हैं। यहीं पर बाबाजी ने निकम्मे और गरियार बैल से अधर में हल चलाये थे। खेत की ‘चटिया मटिया’ जैसी असाध्य बीमारी को अपने प्रभाव से दूर किये थे, इसलिए इसे ‘मटिया डोली’ भी कहते हैं।
