दुर्गम पहाड़ी पर 3 हजार फीट ऊपर, न कोई मंद‍िर न गुंबद, खुले आकाश तले विराजे हैं …जान‍िए गणपति के एकदंत कहलाने का राज…!

राजेन्द्र देवांगन
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ब्यूरो रिपोर्ट सत्येंद्र सिंह

दुर्गम पहाड़ी पर 3 हजार फीट ऊंची चोटी पर विराजित हैं ढोलकल के एकदंत, जानिए क्‍यों है मशहूर…!

दुर्गम पहाड़ी पर 3 हजार फीट ऊंची पहाड़ी चोटी पर विराजित हैं ढोलकल के एकदंत, जानिए क्‍यों है मशहूर,छत्तीसगढ़ के बस्तर में समुद्र तल से समुद्र तल से 2592 फीट ऊंची ढोलकल पहाड़ी पर स्थापित गणेश प्रतिमा के दर्शन के लिए हजारों लोग हर साल यहां आते हैं। दंतेवाड़ा से करीब 26 किमी दूर छत्तीसगढ़ के लोह अयस्क केंद्र बैलाडिला के एक पर्वत शिखर को ढोलकल कहा जाता है। इस पर्वत शिखर पर साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ गणेश प्रतिमा है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रतिमा एक हजार वर्ष पुरानी है, जिसे छिंदक नागवंशीय राजाओं ने स्थापित करवाया था। गुरूवार को गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो रहा है और यहां श्रद्धालुओं का मेला लगने लगा है।पार्वतीपुत्र गणेश की महिमा तो अपरंपार है ही लेक‍िन क्‍या आप जानते हैं क‍ि गणेश जी को एकदंत क्‍यों कहा जाता है और उनका दांत कहां और कैसे टूटा था? यही नहीं धरती से 3 हजार फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर आखिर कैसे स्‍थापित हुई गणपति की प्रत‍िमा और उसका रंग काला क्‍यों है?

यहीं टूटा था गणेशजी का दांत, कहलाए एकदंत…

ढोलकल के आसपास के क्षेत्रों में यह कथा भी सुनने को म‍िलती है क‍ि भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध इसी पहाड़ी पर हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत यहां टूट गया। बता दें क‍ि परशुरामजी के फरसे से गणेशजी का दांत टूटा था, इसलिए पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया। इस घटना को सृष्टि के अंत तक याद रखा जाए इसलिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने पहाड़ी पर गणेशजी की प्रतिमा स्थापति की।

11वीं शताब्‍दी की मानी जाती है प्रत‍िमा

मूर्ति को लेकर पुरातत्‍वव‍िज्ञान‍ियों का मानना है क‍ि इसका न‍िर्माण 11वीं शताब्‍दी में हुआ था। यह प्रत‍िमा उस समय नाग वंश के दौरान बनाई गई थी। 6 फीट ऊंची 2.5 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्‍यंत कलात्मक है। गणेशजी की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है। हालांक‍ि इस बारे में क‍िसी को कुछ नहीं पता क‍ि इतनी ऊंचाई पर गणेशजी की प्रतिमा कैसे पहुंची?

दूसरे श‍िखर पर म‍िलता है इनकी प्रत‍िमा का ज‍िक्र

बता दें क‍ि स्थानीय आदिवासी एकदंत को अपना रक्षक मानकर पूजा करते हैं। उनके अनुसार ढोलकल शिखर के पास स्थित दूसरे शिखर पर देवी पार्वती और सूर्यदेव की भी प्रतिमा स्थापित थी। जो क‍ि कुछ साल पहले चोरी हो चुकी है। आज तक चोरी गई प्रत‍िमा के बारे में कोई जानकारी नहीं म‍िली है। बता दें क‍ि पहाड़ी तक पहुंचने के मार्ग में जंगली जानवरों का भी भय रहता है। लेक‍िन कहते हैं क‍ि वह कभी भी बप्‍पा के दर्शन करने जा रहे भक्‍तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। हालांक‍ि ढोलकल पहाड़ी पर चढ़ना बहुत कठिन है। लेक‍िन बप्‍पा के भक्‍त विशेष मौकों पर जरूर पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।

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