नई शिक्षा नीति पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार

राजेन्द्र देवांगन
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नई शिक्षा नीति पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार
दिल्ली के कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के IQAC एवं शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास के सहयोग द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन प्रथम सत्र में प्रोफेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी, कुलपति सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हिमाचल प्रदेश उपस्थित थे। प्रोफेसर बेदी ने अपने सारगर्भित व्याख्यान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सारगर्भित पहलुओं को प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों से साझा किया।प्रोफेसर बेदी ने कहा की स्वतंत्रता के बाद कई कमीशन बने और शिक्षा नीतियों पर विचार हुआ और जिस मंजिल पर पहुंचना चाहते थे उस मंजिल पर नई शिक्षा नीति के माध्यम से अब हम निकट हैं। भारतवासी अपनी अपनी भाषा परंपरा में अपनी सांस्कृतिक चेतना को समझना चाहते हैं। इस सोच को यह शिक्षा नीति साकार करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा की नीतियों का निर्धारण किया गया है । बाईस भाषाएं संवैधानिक मान्यता प्राप्त हैं। दो भाषाएं इसमें शामिल होने की प्रक्रिया में हैं। भारतीय भाषाओं के माध्यम से भारत के अतीत गौरव को कैसे समझा जाए, शिक्षा नीति में इस सोच को पारदर्शी बनाया गया। प्रोफ़ेसर बेदी ने आगे कहा कि भारतीय भाषाओं को किस प्रकार ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाया जाए, इस पर विचार किया गया है। तमिल, संस्कृत, हिंदी, पंजाबी, उड़िया, बंगाली आदि विभिन्न भाषाओं की शक्ति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से परखा गया है। भारतीय भाषाओं के माध्यम से नई शिक्षा नीति वास्तव में लोकनीति है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भारतीय भाषाओं के वर्चस्व को पहचाना है। पिछले एक वर्ष से बहुत से विश्वविद्यालयों में, कॉलेजों में, पाठशालाओं में, संगोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं। इसके व्यावहारिक पक्ष पर विचार किया जा रहा है। संस्कृत जननी भाषा है। इस नीति में संस्कृत और हिंदी पर विशेष ध्यान दिया गया है। संस्कृत के आधार भाषा के रूप में विचार किया गया है। प्रोफेसर बेदी ने नालंदा और तक्षशिला के इतिहास पर भी बात की और कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषाओं के माध्यम से पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी भारतीयों के बोलचाल, लिखने, सोचने, समझने की भाषा बन चुकी है। इस नीति में इस पर भी विचार किया गया है कि अनुवाद के माध्यम से भारतीय भाषाओं को सक्रियता प्रदान की जा सकती है। हिंदी संपर्क भाषा के रूप में एक बहुत बड़े संसार से चिंतन, मनन के साथ जुड़ चुकी है। हिंदी के पास आंचलिक के साथ-साथ भारतीय भाषाओं की भी शक्ति है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा की एक परंपरा को लेकर हिंदी पर भी विचार किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत बहुत से विकल्प ऐसे हैं, जो अलग-अलग भाषाओं के ज्ञान से जुड़े हुए हैं। विश्वविद्यालयों में, महाविद्यालयों में, पाठशालाओं में, मातृभाषाओं के साथ-साथ अन्य भाषाओं से जुड़ सकते हैं। अनुसंधान की दुनिया में जाकर अपनी भाषा में शोध पत्र, शोध प्रबंध, मौलिक चिंतन प्रामाणिक रूप में दे सकते हैं। इस नीति ने भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व स्तर से जोड़कर ज्ञान परंपरा का सूत्रपात किया है। इसके माध्यम से भारतीय भाषाओं का एक नया युग अवतरित होगा और हमारा भारत अवश्य विश्व गुरु बनेगा।
व्याख्यान के अंत में कॉलेज की प्राचार्य प्रोफेसर (डॉ.) कल्पना भाकुनी ने इस विषय को लेकर अपने मूल्यवान विचार साझा किए, तत्पश्चात कई प्राध्यापकों के प्रश्नों के संतुष्टि पूर्ण जवाब भी प्रोफेसर बेदी ने दिए। कुल मिलाकर यह व्याख्यान अत्यंत सारगर्भित और वर्तमान संदर्भों के अनुकूल रहा।

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