दिल्ली में हुए विस्फोट के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने भले ही हाई अलर्ट जारी किया हो, लेकिन जमीनी स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था की सच्चाई कुछ और ही है। प्रशासन लगातार सुरक्षा बढ़ाने के दावे कर रहा है, मगर हालात कुछ और संकेत दे रहे हैं। राजधानी सहित प्रदेश के तमाम जिलों में पुलिस तैनाती और पैनी निगरानी के निर्देश संसाधनों की कमी और अमल के अभाव में केवल कागजों में ही सिमट कर रह गए हैं।
इसी बीच बिलासपुर में ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर कलेक्ट्रेट के बाहर सैकड़ों की भीड़ देखी गई। प्रशासनिक अफसरों से मिलने पहुंचे ग्रामीणों को न तो पर्याप्त सुरक्षा दिखी और न ही कोई मदद के इंतजाम। भीड़ के दौरान पुलिस या सुरक्षा बलों की समुचित तैनाती की कमी साफ नजर आई, जिससे न सिर्फ अफरा-तफरी की स्थिति बनी रही, बल्कि किसी भी अप्रिय घटना की आशंका हर वक्त बनी रही।
स्थानीय प्रशासन की लापरवाही इसी बात से साफ झलकती है कि एक ओर प्रदेश में हाई अलर्ट का दावा है, दूसरी ओर सबसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक परिसर लोगों की सुरक्षा के लिए संवेदनशील बना हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली जैसी घटनाओं के बाद भी छत्तीसगढ़ में सुरक्षा व्यवस्था कब तक कागजों तक सीमित रहेगी और आम जनता कब सुरक्षित महसूस कर पाएगी।

