बिलासपुर, 29 अप्रैल 2025: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर एम्बुलेंस की देरी से कैंसर पीड़ित महिला की मौत के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए रेलवे और राज्य सरकार को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। इसमें 2 लाख रुपये राज्य सरकार और 1 लाख रुपये रेलवे को देना होगा। कोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका मानकर सुनवाई की और स्वास्थ्य सुविधाओं में लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताई।
क्या है मामला?
18 मार्च 2025 को मध्यप्रदेश के बुढ़ार निवासी 62 वर्षीय कैंसर पीड़ित रानी बाई अपने परिजनों के साथ ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के जनरल कोच में रायपुर से बिलासपुर यात्रा कर रही थीं। बिलासपुर से उन्हें बुढ़ार के लिए दूसरी ट्रेन लेनी थी। यात्रा के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई। बिलासपुर स्टेशन पहुंचने पर परिजनों ने रेल कर्मचारियों को सूचना दी। रेलवे ने स्ट्रेचर भेजा, और कुलियों ने महिला को स्ट्रेचर पर स्टेशन के गेट नंबर एक तक पहुंचाया। लेकिन, एम्बुलेंस एक घंटे देरी से पहुंची, और तब तक महिला की मौत हो चुकी थी। एम्बुलेंस ड्राइवर ने शव ले जाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद परिजनों को निजी वाहन से शव ले जाना पड़ा।
हाईकोर्ट की सुनवाई और नाराजगी
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने इस मामले को मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर जनहित याचिका मानकर सुनवाई शुरू की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार की अव्यवस्था पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने पूछा कि जब सरकार मुफ्त स्वास्थ्य योजनाएं चला रही है, तो फिर मरीजों को समय पर एम्बुलेंस क्यों नहीं मिल रही? कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव और बिलासपुर रेलवे के डीआरएम से जवाब मांगा।

रेलवे की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने दावा किया कि स्टाफ भेजा गया था, लेकिन प्लेटफॉर्म पर कोई नहीं मिला। राज्य सरकार ने अपनी योजनाओं और एम्बुलेंस सुविधा की जानकारी दी। लेकिन, कोर्ट ने इन जवाबों को अपर्याप्त माना और मृतका के परिजनों को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही, भविष्य में मरीजों के लिए त्वरित स्वास्थ्य सुविधा और एम्बुलेंस उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
दंतेवाड़ा मामले में भी सुनवाई जारी
इसी तरह, दंतेवाड़ा जिले के गीदम में 11 घंटे तक एम्बुलेंस न मिलने से एक मरीज की मौत का मामला भी हाईकोर्ट में चल रहा है। परिजनों ने बताया कि उन्होंने बार-बार 108 नंबर पर कॉल किया, लेकिन एम्बुलेंस सुबह की जगह रात में पहुंची, जिससे इलाज में देरी हुई और मरीज की जान चली गई। नाराज परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया था। हाईकोर्ट ने इस मामले को भी जनहित याचिका मानकर सुनवाई शुरू की है और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
मुआवजे के नियम और कोर्ट का रुख
भारतीय रेलवे के नियमों के अनुसार, अगर किसी यात्री की मौत रेलवे की लापरवाही (जैसे दुर्घटना या सुविधा की कमी) के कारण होती है, तो मुआवजा दिया जाता है। इस मामले में, कोर्ट ने एम्बुलेंस की अनुपलब्धता को गंभीर लापरवाही माना। हाईकोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार दोनों को जिम्मेदार ठहराते हुए मुआवजा राशि साझा करने का आदेश दिया। यह फैसला स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और आपातकालीन सुविधाओं की महत्ता को रेखांकित करता है।
आम जनता पर प्रभाव
हाईकोर्ट के इस फैसले ने रेलवे और स्वास्थ्य विभाग की जवाबदेही को उजागर किया है। स्थानीय लोगों ने कोर्ट के रुख की सराहना की है, लेकिन साथ ही मांग की है कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, “मुफ्त योजनाएं होने के बावजूद अगर लोगों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, तो यह व्यवस्था की विफलता है।”

आगे क्या?
हाईकोर्ट ने याचिका को निराकृत कर दिया है, लेकिन दंतेवाड़ा मामले में सुनवाई जारी है। यह फैसला आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं और रेलवे सुविधाओं में सुधार के लिए एक मिसाल बन सकता है। प्रशासन और रेलवे पर अब व्यवस्था को दुरुस्त करने का दबाव बढ़ गया है, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही से किसी की जान न जाए।