रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित सेंट्रल जेल एक बार फिर शर्मनाक सुर्खियों में है। गैंगवार, वसूली, चाकूबाजी और हत्या के बाद अब बंदियों की रहस्यमयी मौतों ने जेल की बदहाल व्यवस्था और सरकार की लापरवाही को बेनकाब कर दिया है। ताजा मामला बैरक नंबर 21 का है, जहां हत्या और पॉक्सो एक्ट के आरोपी बंदी ओम प्रकाश निषाद को संदिग्ध परिस्थितियों में फंदे से झूलता पाया गया।

सुबह मिली लाश, प्रशासन बेखबर
सूत्रों के मुताबिक, ओम प्रकाश निषाद सुबह करीब 10 बजे नायलॉन की रस्सी से लटकता मिला। आनन-फानन में उसे नीचे उतारा गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। वर्ष 2016 से जेल में बंद ओम प्रकाश महासमुंद जिले का निवासी था। सूचना मिलते ही गंज थाना पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। जेल प्रशासन इसे आत्महत्या बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है, जबकि असली कारणों का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही होगा।

जेल में खुलेआम वसूली और गैंगराज
रायपुर सेंट्रल जेल अब अपराधियों के अड्डे में तब्दील हो चुका है। सूत्र बताते हैं कि यहां बंदियों से खुलेआम वसूली होती है। जो पैसे चुकाते हैं उन्हें सुविधाएं मिलती हैं, जबकि जो असमर्थ हैं, उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। आशंका है कि ओम प्रकाश पर भी इसी गैंगराज का दबाव था, जिसके चलते उसने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया।

पुरानी घटनाओं से सबक नहीं
यह पहली मौत नहीं है। 28 जनवरी 2025 को भी अफ्रीकी मूल के बंदी पेट्रिक ने ड्रग तस्करी के आरोप में जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में फांसी लगा ली थी। बार-बार होने वाली इन घटनाओं के बावजूद जेल प्रशासन और राज्य सरकार आंख मूंदे बैठी है।

सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे
रायपुर सेंट्रल जेल में सुरक्षा व्यवस्था का हाल बदतर है। हत्या, गैंगवार, वसूली और चाकूबाजी जैसी वारदातें यहां आम हो चुकी हैं। कुछ समय पहले जेलकर्मियों के पास से बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित सामग्री भी बरामद की गई थी, लेकिन इसके बावजूद न तो औचक निरीक्षण सख्ती से हो रहे हैं, न ही भ्रष्ट जेल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई। गृह मंत्री और जेल विभाग की लापरवाही ने जेल को मौत के कुएं में बदल दिया है।

कड़ा सवाल: गृह मंत्री कब जागेंगे?
लगातार हो रही घटनाएं यह साबित करती हैं कि न सिर्फ जेल प्रशासन बल्कि राज्य के गृह मंत्री तक अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि आखिर कब तक बंदियों की लाशें उठती रहेंगी? क्या सरकार रायपुर सेंट्रल जेल को अपराधियों की गिरफ्त से मुक्त कराने के लिए ठोस कदम उठाएगी या अपनी नाकामी का बोझ आम जनता और बंदियों की जान पर डालती रहेगी?
अगर अब भी राज्य सरकार ने आंखें नहीं खोलीं तो रायपुर सेंट्रल जेल जैसे संस्थान ‘सुधारगृह’ की बजाय ‘मौतगृह’ बन जाएंगे। जवाबदेही तय करने और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने का वक्त अब आ चुका है।
छत्तीसगढ़ की जेलों में मौतें: 2023 के बाद की स्थिति और विश्लेषण
1. प्रमुख घटनाएं (2023-2025)

- यानी कुल कम से कम 5 बड़ी मौतें अब तक प्रमुख रूप से दर्ज हुई हैं।
- कई छोटी घटनाएं भी हैं, जिनकी जानकारी विस्तार से नहीं दी गई है।
- यह आँकड़ा सिर्फ मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है, वास्तविक संख्या और अधिक हो सकती है क्योंकि सभी घटनाएं रिपोर्ट नहीं होतीं।
2. मौतों के सामान्य कारण (जेलों में)

3. रायपुर सेंट्रल जेल विशेष विश्लेषण
- रायपुर सेंट्रल जेल लगातार गैंगवार, रंगदारी वसूली, चाकूबाजी, पकड़े गए प्रतिबंधित सामान (मोबाइल, गांजा, ड्रग्स) जैसे मामलों के चलते चर्चा में रही है।
- जेल प्रशासन के बीच “सुविधा के लिए रिश्वतखोरी” का आरोप पुराना है — यानी जो बंदी पैसे देता है उसे:
- अच्छे बैरक
- बेहतर भोजन
- मोबाइल फोन इस्तेमाल की सुविधा
- धमकियों से सुरक्षा
- मिलती है। जो पैसा नहीं देता, उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।
- 28 जनवरी 2025 को अफ्रीकी कैदी पेट्रिक की संदिग्ध मौत के बाद भी सुधार के कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
- अप्रैल 2025 में ओम प्रकाश निषाद की संदिग्ध फांसी ने फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
4. सरकार और जेल प्रशासन की भूमिका पर सवाल
- 2023 के बाद से बीजेपी सरकार के आने के बावजूद जेलों में सुरक्षा को लेकर कोई सख्त नीति लागू नहीं की गई।
- जेल अधीक्षकों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं दिखती, सिर्फ “जांच की बात” कर मामले दबा दिए जाते हैं।
- जेल मंत्री और गृह मंत्री ने भी इस विषय पर कोई ठोस प्रेस कॉन्फ्रेंस या पॉलिसी घोषणा नहीं की है।