गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में NSS कैंप के दौरान नमाज विवाद पर बवाल, हिंदू संगठनों ने की दोषियों पर कार्रवाई की मांग

राजेंद्र देवांगन
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प्रदर्शनकारियों ने भगवा जैकेट पहन जताया विरोध, कुलपति और NSS कोऑर्डिनेटर को हटाने की मांग

बिलासपुर, 25 अप्रैल 2025

गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर एक बार फिर विवादों की आग में घिर गया है। NSS कैंप में कथित रूप से छात्र-छात्राओं को नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किए जाने के मामले ने धार्मिक स्वतंत्रता और विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिलासपुर के विभिन्न हिंदूवादी संगठनों ने विश्वविद्यालय गेट पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की।

NSS कैंप में जबरन नमाज पढ़वाने का आरोप

जानकारी के अनुसार, 31 मार्च को ईद के दिन विश्वविद्यालय की NSS इकाई द्वारा कोटा क्षेत्र के शिवतराई में लगाए गए शिविर के दौरान छात्र-छात्राओं को सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने के लिए बाध्य किया गया। पीड़ित छात्रों का आरोप है कि यह कृत्य धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। उन्होंने इस मामले की शिकायत कोनी थाना में भी दर्ज कराई थी।

जांच समिति बनी, रिपोर्ट गायब

मामला सामने आने के बाद कुलपति प्रोफेसर आलोक चक्रवाल ने एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित कर 48 घंटे में रिपोर्ट सार्वजनिक करने की बात कही थी। लेकिन एक माह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न रिपोर्ट आई, न कोई कार्रवाई हुई। यही कारण है कि हिंदू संगठनों का आक्रोश और गहरा हो गया है।

मुख्य द्वार पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, लेकिन तेवर तल्ख

विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर हुए शांतिपूर्ण धरने में वंदे मातरम मित्र मंडल, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद समेत कई संगठनों के कार्यकर्ता भगवा जैकेट पहनकर पहुंचे। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट रूप से विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि दोषियों पर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो वे ‘हिंदू आक्रोश रैली’ का आयोजन करेंगे।

प्रशासन पर जवाबदेही तय करने की मांग

प्रदर्शन में शामिल नेताओं का कहना था कि यह कोई पहली बार नहीं है जब विश्वविद्यालय परिसर में धर्म विशेष के प्रचार-प्रसार की कोशिश की गई है। NSS जैसे राष्ट्रसेवा कार्यक्रमों का उपयोग किसी भी धार्मिक गतिविधि के लिए करना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। उन्होंने कुलपति को हटाने और संबंधित NSS कोऑर्डिनेटर को बर्खास्त करने की मांग की।

क्या कहता है कानून और छात्र हित?

विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक है, लेकिन किसी भी शैक्षणिक संस्थान या सार्वजनिक कार्यक्रम में किसी धर्म विशेष की प्रथा को सब पर थोपना न केवल गलत है, बल्कि कानूनन आपत्तिजनक भी हो सकता है। इस घटना ने विश्वविद्यालयों में बढ़ती धार्मिक दखलंदाजी पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता पैदा कर दी है।

अंततः सवाल यही—कब होगी कार्रवाई?

एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद दोषियों पर कोई कार्रवाई न होना यह संकेत देता है कि प्रशासन मामले को टालने की रणनीति अपना रहा है। लेकिन यदि समय रहते न्यायसंगत कदम नहीं उठाए गए, तो यह विवाद और अधिक गहराने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)