कर्रेगट्टा ऑपरेशन: नक्सलवाद के खात्मे की निर्णायक लड़ाई शुरू, 2000 से अधिक उग्रवादी घिरे

राजेंद्र देवांगन
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छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र की सरहद पर बसा कर्रेगट्टा का पहाड़ एक बार फिर नक्सली गतिविधियों का केंद्र बन गया है। करीब 5 हजार फीट ऊंची इस दुर्गम पहाड़ी पर नक्सली कमांडर हिड़मा, देवा और दामोदर की अगुआई में करीब 2000 से अधिक माओवादियों का जमावड़ा है। इस पहाड़ी को नक्सलियों ने अभेद किले की तरह तैयार कर रखा है, लेकिन अब सुरक्षाबलों की निर्णायक घेराबंदी से यह गढ़ भी हिलता नजर आ रहा है।

भीषण गर्मी, पैदल मार्च और बमों के बीच घिरे जवान

करीब 44 डिग्री तापमान, ऑक्सीजन की कमी और हर कदम पर बिछे सैकड़ों IED बमों के बीच करीब 5 से 8 हजार जवान बीते चार दिनों से लगातार पैदल मार्च कर रहे हैं। हर जवान के पास 30-35 किलो का सामान, हथियार, पानी और राशन है। इस खतरनाक अभियान में अब तक 6 नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, जिनमें तीन महिला नक्सली शामिल हैं। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक पहाड़ी की चोटी पर अब भी करीब 1000-1500 नक्सली आधुनिक हथियारों के साथ मोर्चा संभाले बैठे हैं।

TCOC के दौरान चारों तरफ से घिरे नक्सली

नक्सलियों का TCOC यानी टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन हर साल फरवरी से जून तक चलता है। इसी दौरान नए कैडर की भर्ती, हथियारों की ट्रेनिंग और फोर्स पर हमले की रणनीतियां बनाई जाती हैं। लेकिन इस बार सुरक्षाबलों ने पहले ही उनके ठिकानों को निशाना बनाकर उन्हें चारों ओर से घेर लिया है। नक्सलियों के पुराने रास्ते, पानी के स्रोत, और राशन पहुंचाने के मार्ग अब फोर्स के कब्जे में हैं। नतीजा यह है कि अब माओवादी या तो हथियार डालें, या गोली खाएं।

MI-17 हेलिकॉप्टर से रसद, ड्रोन से निगरानी

इस ऑपरेशन का कमांड सेंटर तेलंगाना के वेंकटपुरम में बनाया गया है, जबकि चेरला गांव को लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। MI-17 हेलिकॉप्टर के जरिए रसद और जवानों की आपूर्ति की जा रही है। वहीं नाइट विजन ड्रोन और थर्मल कैमरे पहाड़ियों पर निगरानी का काम कर रहे हैं। पतझड़ के मौसम में जंगलों की क्लियर विजिबिलिटी ने फोर्स को अतिरिक्त बढ़त दी है।

सरकार का साफ संदेश: 2026 तक खत्म होगा नक्सलवाद

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को जड़ से समाप्त कर दिया जाएगा। इसी दिशा में यह ऑपरेशन एक निर्णायक कदम के रूप में देखा जा रहा है। यदि यह अभियान सफल रहा, तो यह नक्सलवाद के सफाए की आखिरी लड़ाई साबित हो सकती है।

तो क्या अब कर्रेगट्टा का किला टूटेगा?

सवाल यही है – क्या नक्सलियों का यह सबसे मजबूत गढ़ अब गिरने वाला है? क्या 15 दिनों तक चलने वाले इस ऑपरेशन में फोर्स अपनी पकड़ मजबूत रख पाएगी? और क्या माओवादी अंततः आत्मसमर्पण की ओर बढ़ेंगे? इन सवालों का जवाब आने वाले कुछ दिनों में देश के सबसे बड़े आंतरिक सुरक्षा अभियान की सफलता तय करेगा।

फिलहाल, कर्रेगट्टा का पहाड़ जंग के मोर्चे में तब्दील हो चुका है — और दोनों ओर से हर कदम इतिहास रचने की तैयारी में है।

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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)