कोरबा कोयला खदानों में भू-विस्थापितों का हल्ला बोल: उत्पादन ठप्प, रोजगार और हक की मांग

राजेंद्र देवांगन
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कोरबा (छत्तीसगढ़): कोरबा जिले की प्रमुख कोयला खदानों, कुसमुंडा और गेवरा में आज भू-विस्थापितों ने जोरदार प्रदर्शन किया, जिसके चलते खदानों में कोयला उत्पादन और परिवहन पूरी तरह से ठप हो गया। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में बड़ी संख्या में

प्रभावित ग्रामीण इस हड़ताल में शामिल हुए।

लंबित रोजगार, जमीन वापसी और बसाहट प्रमुख मांगें
भू-विस्थापितों की यह हड़ताल उनकी कई प्रमुख मांगों को लेकर है। इनमें सबसे अहम है वर्षों से लंबित रोजगार प्रकरणों का तत्काल समाधान करना। इसके साथ ही, वे खम्हरिया की जमीन किसानों को वापस दिलाने और आउटसोर्सिंग के कार्यों में प्रभावित भू-विस्थापित परिवारों को प्राथमिकता से रोजगार देने की मांग कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों ने नए और पुराने नाम पर मुआवजा कटौती बंद करने की भी पुरजोर मांग की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सभी विस्थापित परिवारों को सम्मानजनक बसाहट प्रदान करने और बसाहट वाले गांवों में सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को सुनिश्चित करने की आवाज बुलंद की।

प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी, सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद

आज सुबह 6 बजे से ही प्रदर्शनकारी खदान क्षेत्रों में एकत्रित हो गए और प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए खदानों में सुरक्षाकर्मियों, अधिकारियों, कर्मचारियों और पुलिस बल की भारी तैनाती की गई थी।

अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष, मूलभूत सुविधाओं का अभाव

भू-विस्थापितों का कहना है कि जमीन अधिग्रहण के बाद से ही उन्हें रोजगार और उचित पुनर्वास जैसी बुनियादी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बसाहट वाले गांवों में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है और मुआवजा कटौती जैसी अन्यायपूर्ण Practices अभी भी जारी हैं।

हड़ताल से भारी नुकसान की आशंका

इस हड़ताल को सफल बनाने के लिए पहले से ही गांवों में व्यापक स्तर पर बैठकें आयोजित की गई थीं। माना जा रहा है कि इस प्रदर्शन के कारण प्रबंधन को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है, हालांकि अभी तक इसका आधिकारिक आकलन नहीं किया गया है।

यह हड़ताल कोरबा क्षेत्र के भू-विस्थापितों के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को दर्शाती है, जो अपने अधिकारों और सम्मानजनक जीवन के लिए आवाज उठा रहे हैं। देखना होगा कि प्रबंधन और सरकार उनकी मांगों पर कितना ध्यान देती है और इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाती है।

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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)