छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 154 सफाई कर्मियों को बिना लिखित आदेश के काम से हटा दिया गया। इनमें दिव्यांग, बेसहारा और महिलाएं भी शामिल हैं। अब आर्थिक तंगी के चलते मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में जाने की तैयारी।
154 सफाई कर्मियों को काम से हटाया, कई दिव्यांग और महिलाएं, प्रशासन मौन
दंतेवाड़ा/गीदम। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के गीदम ब्लॉक में शिक्षा विभाग द्वारा 154 सफाई कर्मियों को मौखिक रूप से काम पर आने से मना कर दिया गया है। ये सभी 2021-22 में ग्रामीण स्कूलों में 2300 रुपये मासिक वेतन पर नियुक्त किए गए थे। अब बिना लिखित आदेश और पूर्ण वेतन दिए काम से निकाल दिया गया है।
केवल 4 महीने का भुगतान, एक साल तक किया काम
इन सफाई कर्मियों ने बताया कि वे एक साल तक स्कूलों में नियमित ड्यूटी करते रहे, लेकिन सिर्फ 4 महीने का भुगतान उनके खातों में डाला गया। बाकी के 8 महीने का वेतन अभी भी बकाया है। जब उन्होंने बीईओ और डीईओ से संपर्क किया, तो जवाब मिला कि “ऊपर से आदेश है।”
गरीबी और लाचारी: पलायन को मजबूर लोग
रामबती कश्यप, एक महिला सफाई कर्मचारी बताती हैं कि उनकी बीमारी और बेटी की पढ़ाई के चलते उन्होंने नौकरी शुरू की थी। अब काम छिन जाने के बाद उन्हें अपने गांव से पलायन कर दूसरे राज्य में मजदूरी करने की नौबत आ गई है।
अन्नी राम नेताम, एक दिव्यांग कर्मचारी, जिनकी 60% आंखों की रोशनी जा चुकी है, कहते हैं कि इतनी हालत में मजदूरी कोई नहीं देता। यही नौकरी उनकी एकमात्र उम्मीद थी।
स्कूलों में बच्चों से कराई जा रही सफाई
कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें काम से हटाने के बाद अब स्कूलों में टॉयलेट और बाथरूम की सफाई बच्चे कर रहे हैं। जब उन्होंने इसकी तस्वीरें अधिकारियों को दिखाई, तो जवाब मिला, “करते हैं तो करने दो।”
प्रशासन का पक्ष: ‘हटाया नहीं, सिर्फ काम रोकने कहा’
गीदम के बीईओ शेख रफीक ने कहा कि इन्हें हटाया नहीं गया है, बल्कि मानदेय अलॉटमेंट के अभाव में काम पर न आने को कहा गया है। जब अलॉटमेंट मिलेगा, तब पुनः रखा जाएगा।
“इनकी भर्ती मौखिक रूप से हुई थी, और मौखिक रूप से ही काम पर न आने को कहा गया है।” – शेख रफीक, BEO, गीदम
सरकारी दावे और ज़मीनी हकीकत में अंतर
राज्य सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित जिलों में स्थानीय लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिया जा रहा है। लेकिन दंतेवाड़ा जैसे ज़िलों में स्थानीय युवाओं और जरूरतमंदों को मौखिक आदेशों के आधार पर बेरोजगार किया जा रहा है, जिससे पलायन की समस्या और गहराती जा रही है।