छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा दुनिया का एकमात्र ऐसा पर्व है, जब यहां के छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी दान मांगने और देने के कार्य को अपनी संस्कृति का गौरवशाली रूप मानते हैं।
सवितर्क न्यूज सुरेश सिंह बैंस की लेखनी से
विश्व के किसी अन्य भाग में ऐसा पर्व और कहीं दिखाई नहीं देता, जहां भिक्षा मांगने को पर्व के रूप में मनाया जाता हो। छेरछेरा पुन्नी के दिन छत्तीसगढ के बड़े-छोटे सभी लोग भिक्षाटन करते हैं,
और इसे किसी भी प्रकार से छोटी नजरों से नहीं देखा जाता, अपितु इसे पर्व के रूप में देखा और माना जाता है। और लोग बड़े उत्साह के साथ बढ़चढ़ कर दान देते हैं।
इस दिन कोई भी व्यक्ति किसी भी घर से खाली हाथ नहीं जाता। लोग आपस में ही दान लेते और देते हैं।
पौस माह की पूर्णिमा तिथि को छेरछेरा का यह जो पर्व मनाया जाता है, वह भगवान शिव द्वारा पार्वती के घर जाकर भिक्षा मांगने के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है।
जनमानस में प्रचलित कथा के अनुसार पार्वती से विवाह पूर्व भोलेनाथ ने कई किस्म की परीक्षाएं ली थीं। उनमें एक परीक्षा यह भी थी कि वे नट बनकर नाचते-गाते पार्वती के निवास पर भिक्षा मांगने गये थे,
और स्वयं ही अपनी (शिव की) निंदा करने लगे थे, ताकि पार्वती उनसे (शिव से) विवाह करने के लिए इंकार कर दें।
छत्तीसगढ़ में जो छेरछेरा का पर्व मनाया जाता है, उसमें भी लोग नट बनकर नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने के लिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के कई भागों में विभिन्न प्रकार के स्वांग रचकर नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने जाने का प्रचलन है,
किसान (भूमिस्वामी ) धान के फसल को खलिहान से घर के कोठी में भर लेते लेकिन साल भर तक कड़ी धुप व बरसात के पानी में भींगते , खेतों में काम करने वाले मजदूरों को एक सीमित मजदूरी के आलावा और कुछ भी नही देते थे।
जिससे वे दुखी रहते थे। धरती माता को अपने इन गरीब पुत्रों का दुःख नही देखा गया कि मेहनत करने वाले परिवार ही भूखे रहे !
इसलिये धरती माता ने अन्न उपजाना बन्द कर दिया , घोर अकाल पड़ गया चारों तरफ त्राहि त्राहि मच गयी । तब जमीन मालिक किसानों ने धरती माता की पूजा आराधना शुरू किये लगातार 7 दिन की पूजा आराधना से धरती माता प्रकट हो गयी
और किसानों से बोली कि आज से सभी किसान – भूमिस्वामी अपने उपज का कुछ हिस्सा गरीब बनिहार मजदूरों को दान करोगे तभी अकाल मिटेगा । सभी किसान धरती माता की बातों को मान गये ,
तब धरती माता ने साग सब्जी फूल फलों की वर्षा कर दी , हर तरफ खुशहाली छा गयी । तब से इस पर्व का प्रचलन आरम्भ हुआ । और इसी 7 दिन जिसमें किसानों ने धरती माता की पूजा किये थे
को शाकम्भरी नवरात्र के रूप में मनाया जाने लगा जो कि पौष शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पौष शुक्ल पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
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