छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ द्वारा धड़ाधड़ नए ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित किए जा रहे हैं। देश का सबसे बड़ा केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’, दूसरे बलों के साथ मिलकर मार्च 2026 से पहले छत्तीसगढ़ सहित देश के सभी हिस्सों से नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने की राह पर आगे बढ़ रहा है। सीआरपीएफ जवान, केवल नक्सलियों को खत्म करने या उन्हें सरेंडर करने के लिए ही मजबूर नहीं कर रहे, अपितु उन क्षेत्रों में अपने ‘सिविक एक्शन प्रोग्राम’ के जरिए वहां के लोगों का जीवन स्तर भी ऊपर उठा रहे हैं। दशकों बाद उन क्षेत्रों के गांवों की तस्वीर बदल रही है। सीआरपीएफ ने सुकमा जिले के ऐसे ही दो गांव, ‘पुवर्ती’ और ‘टेकलगुडियम’ में ‘गुरुकुल’ नाम से नर्सरी तक के दो स्कूल खोले हैं। इन स्कूलों को 5वीं कक्षा तक ले जाने की योजना है।
धुर नक्सल प्रभावित गांवों में सीआरपीएफ ने खोले ‘गुरुकुल

सीआरपीएफ के मुताबिक,इन स्कूलों में आसपास के गांवों से ही टीचर रखे गए हैं। खास बात है कि जब सीआरपीएफ के जांबाजों को समय मिलता है तो वे भी इन स्कूलों में आकर बच्चों को पढ़ाते हैं। बल के अधिकारी, यहां पर आते रहते हैं। ये दोनों गुरुकुल, दो तीन माह में तैयार किए गए हैं। जमीन को ठीक करने से लेकर वहां पर स्कूल निर्माण और कक्षाओं में विभिन्न तरह की सामग्री लाने तक का काम सीआरपीएफ ने किया है।
जब ये गुरुकुल तैयार हुए तो बल के जवानों ने आसपास के लोगों से संपर्क साधा। अभिभावकों से बातचीत कर उन्हें अपने बच्चों को गुरुकुल में भेजने का आग्रह किया। अधिकारी के मुताबिक, बच्चों को कॉपी किताबें और दूसरी सामग्री मुहैया कराई जा रही है।
ग्रामीणों में इन स्कूलों को लेकर खासा उत्साह
पुवर्ती और टेकलगुडियम में खुले नर्सरी स्कूलों को धीरे धीरे 5वीं कक्षा ले जाने की योजना है। ग्रामीणों में इन स्कूलों को लेकर खासा उत्साह है। स्कूलों में बच्चों के लिए खेल की सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं। बता दें कि ये दोनों गांव, दशकों तक मुख्य धारा से कटे रहे हैं। एक माह पहले ही सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित गांव पुवर्ती में पहली बार लोगों ने टीवी देखा है।

धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के दशकों बाद केंद्रीय बल ने यूं बदली तस्वीर
लोगों ने दूरदर्शन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम देखें हैं। ये दोनों गांव, नक्सल प्रभावित रहे हैं। इन गांवों में नक्सलियों का इतना ज्यादा प्रभाव था कि वहां के लोगों तक केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं को पहुंचने ही नहीं दिया गया। नतीजा, विकास के मामले में ये गांव पिछड़ते चले गए।
देश की आंतरिक सुरक्षा और नागरिक कल्याण को मजबूत करने के मकसद से सीआरपीएफ महानिदेशक ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने हाल ही में टेकलगुडियम सहित कई क्षेत्रों का दौरा किया था। उन्होंने घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जवानों के साथ रात बिताई। उनके साथ बातचीत की।

स्कूलों को 5वीं कक्षा तक ले जाने की योजना
डीजी ने आम जनता के लिए ‘सिविक एक्शन प्रोग्राम’ की औपचारिक शुरूआत की। डीजी ने सिविक एक्शन प्रोग्राम को स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने, नागरिक सुरक्षा को बढावा देने और सुरक्षा बलों तथा आम जनता के बीच विश्वास बढाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।

सीआरपीएफ’ और इसकी विशेष इकाई’कोबरा’, घने जंगल में और नक्सलियों के गढ़ में पहुंचकर सीआरपीएफ व दूसरे बलों के जवान त्वरित गति से ‘फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस’ स्थापित कर रहे हैं।
नक्सलियों का अंत अब कितना निकट है, यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2023 में 50 नक्सली मारे गए थे तो वहीं 2024 में मुठभेड़ के दौरान 290 नक्सलियों को मौत के घाट उतारा गया। 2025 में 21 जनवरी तक 48 नक्सली मारे गए हैं। 2019 से लेकर अभी तक 290 कैंप स्थापित किए गए हैं। 2024 में 58 कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 88 कैंप स्थापित किए जाने के प्रस्ताव पर काम शुरु हो चुका है।

महानिदेशक ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा,
सीआरपीएफ न केवल देश की सुरक्षा में योगदान देता है, बल्कि समाज के विकास में भी अहम भूमिका निभाता है। यह पहल स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने और उन्हें एक बेहतर भविष्य देने की दिशा में हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इन क्षेत्रों के युवाओं को स्वरोजगार के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसमें टेलरिगं, बांस-कला, सिलाई, कंप्यूटर स्किल्स, कृषि कला, बढई कला, ड्राइविंग जैसी सुविधाएं शामिल होंगी। डीजी ने स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के मकसद से उस क्षेत्र में तैनात बल के कम्पनी कमाण्डरों को निर्देशित किया है कि जरूरतमंद युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण में मदद करें, ताकि वे अपने भविष्य को सुधार सकें।