प्रयागराज -महाकुंभ में हुई भगदड़ ने करोड़ों लोगों को बड़ा झटका दिया है। प्रयागराज में मौनी अमावस्या के दिन अमृत स्नान तो हुआ, लेकिन साथ में 30 श्रद्धालुओं की मौत ने कई सवालों को जन्म भी दिया। सवाल नंबर 1- क्या पुलिस ने श्रद्धालुओं को जमीन पर सोने से रोका था? क्या पुलिस को अनुमान था कि इतनी भीड़ आने वाली है? रैन बसेरे मौजूद तो जमीन क्यों सोते दिखे थे श्रद्धालु?
महाकुंभ में तैयारयां कम पड़ीं?
अब इतने सवाल इसलिए क्योंकि 30 श्रद्धालुओं की जान चले जाना छोटी बात नहीं। जिन तैयारियों को लेकर अधिकारियों ने महीनों की मेहनत की, जिन तैयारियों को लेकर घंटों की मीटिंग हुईं, उसके बाद भी इस तरह से भगदड़ मच जाना सभी को हैरान कर गया है। सोशल मीडिया पर तो बहस छिड़ चुकी है कि क्या पुलिस प्रशासन खुद को बचाने के लिए श्रद्धालुओं पर गलती का दोष मढ़ रहे हैं? क्या इस पूरी भगदड़ में पुलिस से कोई गलती नहीं हुई?
संगम नोज के मोह ने करवाई भगदड़?
अब सबसे पहले तो समझने की जरूरत यह है कि पुलिस को इस भगदड़ का अनुमान था, जो पुराने बयान पुलिस अधिकारी के सामने आ रहे हैं, उनमें कहा जा रहा था कि लोग अपने पास वाले घाट पर ही स्नान करें, वे संगम नोज पर जाने की जिद ना करें। लेकिन श्रद्धालुओं ने भी उन बातों को नजरअंदाज कर संगम स्नान के मोह में वहीं जाने का फैसला किया। लेकिन एक सच्चाई यह जरूर है कि पुलिस प्रशासन ने जो अपील की थीं, उनकी पहुंच सीमित ही रह गई। श्रद्धालु इतने ज्यादा थे कि उन तक यह मैसेज पहुंच ही नहीं पाया कि उन्हें कहां जाना है, कहां स्नान करना है।
जमीन पर क्यों सोए थे श्रद्धालु?
अपनी आपबीती बताते हुए कई श्रद्धालुओं ने कहा है कि पुलिस तो सिर्फ यहां से वहां भेजती रही, यह बताने के लिए काफी है कि एक कम्युनिकेशन गैप बन चुका था और उसने भी इस भगदड़ को अंजाम दिया। इसके ऊपर सोशल मीडिया पर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं- आखिर जमीन पर यह श्रद्धालु सो क्यों रहे थे? क्या उनके लिए कोई इंतजाम नहीं थे?
महाकुंभ में महा हादसे के कारण समझिए
अब इसका जवाब भी एकदम स्पष्ट है, सरकार की तरफ से महाकुंभ क्षेत्र में रैन बसेरा बनाए गए हैं, हर घाट के पास वो मौजूद हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि जितने श्रद्धालु आ रहे हैं, उसके मुताबिक उन रैन बसेरों की संख्या काफी कम है। ऐसे में यह बोल देना कि श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन जमीन पर क्यों सो रहे थे, यह गलत है। जब कोई विकल्प ही नहीं था और इतनी लंबी पैदल यात्रा कर लोग पहुंचे थे, उनका आराम करना स्वाभाविक था।
डायवर्जन इतने, पैदल रास्ता हो गया लंबा
असल मे भीड़ को कंट्रोल में रखने के लिए प्रशासन की तरफ से कई रास्टों को डायवर्ट किया गया था। इस डायवर्जन ने ही पैदल यात्रा को 6 से 7 किलोमीटर तक लंबा कर दिया था। इसी वजह से लोग जमीन पर ही आराम करने को मजबूर थे। उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। अब इस सवाल का जवाब तो मिल गया, लेकिन एक आरोप प्रशासन पर यह भी लग रहा है कि वीवीआईपी प्रोटोकॉल की वजह से भी कई दूसरे मार्गों पर भीड़ ज्यादा हो गई और यह भगदड़ देखने को मिली।
क्या VVIP प्रोटोकॉल को माना जाए जिम्मेदार?
अब इसका जवाब भी स्पष्ट है- यह पूरी सच्चाई नहीं है। असल में मौनी अमावस्या के दिन एक मार्ग को अखाड़ा रोड बताकर आरक्षित रखा जाता है। यह कोई आज की परंपरा नहीं है। मौनी अमावस्या के दिन साधु-संतों को परंपरा अनुसार संगम नोज में ही स्नान करना होता है। जो आम श्रद्धालु होते हैं वो गंगा और यमुना नदी के घाटों पर डुबकी लगा सकते हैं। यानी कि जो भीड़ संगम नोज पर मौनी अमवास्या के दिन दिखी, वो वहां होनी ही नहीं चाहिए थी। अब लोगों को किसी ने बताया नहीं या कहना चाहिए लोगों ने ही माना नहीं, यह जांच का विषय है।
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