जगदलपुर। अबूझमाड़ कभी नक्सलियों का ऐसा क्षेत्र था जहां पहुंचना लगभग असंभव था। लेकिन अब अबूझमाड़ के जंगलों के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बलों की नजर है। नक्सली हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित नारायणपुर जिले के एसपी प्रभात कुमार के अनुसार, पूरे अबूझमाड़ में कहीं भी नक्सलियों का सुरक्षित इलाका अब नहीं है और सुरक्षा बल हर जगह ऑपरेशन कर रहे है।
रिकॉर्ड संख्या में चले ऑपरेशनइसी वजह से इस साल रिकॉर्ड संख्या में नक्सलियों को मार गिराने में सफलता मिली है। घने जंगलों और पहाड़ों के बीच हजारों वर्ग किलोमीटर में फैला अबूझमाड़ पिछले चार दशक से नक्सलियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह रहा है।

यहां नक्सलियों का शासन चलता रहा और उनकी मर्जी के बगैर यहां कोई भी नहीं जा सकता था। नक्सलियों ने यहां सेना की तर्ज पर पूरी बटालियन बना ली थी और बीजापुर के गुंडम में उनकी ट्रेनिंग होती थी। यहीं पर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की याद में स्मारक भी था।
नारायणपुर में आता है 80 फीसदी हिस्सा सुरक्षा की वजह से नक्सलियों के लगभग सभी बड़े नेता इसी इलाके में रहते हैं । गुंडम से पांच-छह किलोमीटर आगे नक्सली हिडमा का गांव पूवर्ती है। अबूझमाड़ का 80 फीसदी हिस्सा छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में आता है। बाकी हिस्सा कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में है।
यहां 233 गांवों में 34 हजार से अधिक आबादी रहते हैं।

प्रभात कुमार के अनुसार पुलिस और प्रशासन दोनों के लिए अबूझमाड़ पहले एक अबूझ पहेली बना हुआ था। प्रशासन के लोग अब भी कई इलाकों में नहीं जा सकते, लेकिन पुलिस के लिए ऐसा नहीं है। सुरक्षाबल घुसकर कर रहे अटैक-प्रभात कुमार के अनुसार इस साल राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान अबूझमाड़ के हर हिस्से में घुसकर नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन कर चुके हैं। इनमें कुछ इलाकों में तो तीन-तीन बार सफल ऑपरेशन हुआ है

।गुंडम में नक्सलियों की ट्रेनिंग वाले मैदान में अब सुरक्षा बलों का कैंप है और स्मारक को तोड़कर वहां तिरंगा फहरा दिया गया है। पूवर्ती में सुरक्षा चौकी बन चुकी है। पिछले पांच सालों में नक्सलियों के गढ़ में 289 सुरक्षा चौकी स्थापित हो चुकी है।सिविल प्रशासन भी बना रहा पहुंच
इन चौकियों के साथ सिविल प्रशासन भी इन इलाकों में पहुंचना शुरू हो गया है।

सरकार की कोशिश अगले एक साल में पूरे अबूझमाड़ में हर तीन-चार किलोमीटर पर सुरक्षा चौकियों की श्रृंखला बनाने की है। हर सुरक्षा चौकी अत्याधुनिक उपकरणों से लैस है।
गुंडम की चौकी में जवान ड्रोन की मदद से आसपास के इलाके पर नजर रखते हैं। एक ड्रोन का रेंज 25 किलोमीटर का है और एक किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ता है। नाइट विजन कैमरे से लैस यह ड्रोन रात-दिन कभी भी और किसी भी मौसम में काम कर सकता है।

बख्तरबंद गाड़ी का हो रहा इस्तेमाल
नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में मदद के लिए ऐसी बख्तरबंद गाड़ी है, जिसमें 12 जवान एक साथ बैठ सकते हैं और भीतर से ही लगभग 360 डिग्री में लगातार फायरिंग कर सकते हैं। यह 100 आरडीएक्स के विस्फोट में सुरक्षित रहता है और छोटे-छोटे नदी-नाले व झाड़ियों के बीच आसानी से जा सकता है। टायर पंचर होने स्थिति में भी 40 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सुरक्षित वापस लौट सकता है। इसके साथ सभी चौकियों को एक किलोमीटर तक अचूक निशाना लगाने वाले स्नाइपर राइफलों से भी लैस किया गया है।