अजमेर शरीफ की दरगाह या महादेव का मंदिर?
अजमेर दरगाह का होगा सर्वे? कोर्ट ने स्वीकार किया मामला
बता दें कि इस मामले में अजमेर की कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस भेजा है। हिंदू पक्ष की याचिका में दरगाह के सर्वे की मांग की गई है। याचिका में दरगाह के अंदर पूजा करने देन की मांग की गई है। अजमेर की अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया है, यानी अदालत ने यह मान लिया है कि याचिका सुनने योग्य है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से पहले संकट मोचन महादेव का मंदिर था, जिसे 800 साल पहले तोड़कर दरगाह बनाया गया है। हिंदू पक्ष ने अदालत से सर्वे कराकर इसे हिंदुओं को सौंपने की मांग की है। हिंदू सेना की ओर से विष्णु गुप्ता ने कोर्ट ने याचिका लगाई थी, जिसपर अदालत ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग को नोटिस भेजा है।
क्या बोले अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती
इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को की जाएगी। इसपर अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने बयान देते हुए कहा कि दरगाह सद्भावना का प्रतीक है। इसके खिलाफ कार्रवाई देशहित में नहीं है। इंशा अल्लाह किसी की मुराद पूरी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हिंदू पक्ष की याचिका पर कोर्ट ने दरगाह कमेटी को भी पक्षकार बनाया है। दरगाह कमेटी, हिंदू पक्ष के दावे को खारिज कर रहा है। दरगाह कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि अजमेर दरगाह के देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लाखों-करोड़ों अनुयायी हैं। उन्होंने कहा कि अगर प्लेस ऑफ वर्सिप एक्ट से छेड़छाड़ होता है तो देश की एकता और सहिष्णुता पर खतरा पैदा होगा। दरगाह के दीवान सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि लोकप्रियता पाने के लिए कुछ लोग दरगाह को लेकर ऐसा दावा कर रहे हैं। दरगाह अजमेर में 850 सालों से है।