छत्तीसगढ़ में कुत्तों का कहर: एक साल में लगभग 1.2 लाख लोग बने शिकार”

राजेन्द्र देवांगन
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छत्तीसगढ़ में आवारा कुत्तों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी किए गए चौंकाने वाले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में राज्य भर में कुत्तों के काटने के 1,19,928 मामले दर्ज किए गए। इस दौरान तीन लोगों की मृत्यु भी हुई।

आयोग के अध्यक्ष गिरधारी नायक ने बताया कि नवंबर 2023 में मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया गया था। उन्होंने कहा, “हमने राज्य के सभी जिलों से डॉग बाइट के आंकड़े मांगे थे। जो तस्वीर सामने आई, वह बेहद चिंताजनक है।”

राजधानी रायपुर में स्थिति सबसे गंभीर है, जहां 15,953 लोग कुत्तों के हमले का शिकार हुए। यह औसतन प्रतिदिन 44 मामलों के बराबर है। रायपुर के बाद बिलासपुर (12,301) और दुर्ग (11,084) में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए।

राज्य के दूरदराज के इलाकों में भी यह समस्या गंभीर है। बस्तर संभाग के सुकमा में 442, बीजापुर में 422 और दंतेवाड़ा में 944 मामले सामने आए। सरगुजा संभाग में भी कई हजार लोग प्रभावित हुए।

इस समस्या से निपटने के लिए सरकार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार, रेबीज के टीके की छह खुराक के लिए प्रति व्यक्ति लगभग 1,800 रुपये खर्च होते हैं। इस हिसाब से पिछले साल कुल 21 करोड़ रुपये से अधिक की राशि केवल टीकाकरण पर खर्च हुई।

स्थानीय नागरिक समाजों ने इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “यह केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि एक गंभीर सुरक्षा खतरा भी है। सरकार को आवारा कुत्तों के नियंत्रण और नसबंदी कार्यक्रमों को तेज करना चाहिए।”

छत्तीसगढ़ सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए एक विशेष कार्य बल गठित करने की घोषणा की है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “हम इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। जल्द ही एक व्यापक योजना लागू की जाएगी जिसमें आवारा कुत्तों का टीकाकरण, नसबंदी और पुनर्वास शामिल होगा।”

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या के समाधान के लिए सरकार, स्थानीय निकायों और नागरिक समाज के बीच समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। साथ ही, जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि कैसे आवारा कुत्तों से सुरक्षित रहा जाए और उनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाए।

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