जबलपुर। मध्य प्रदेश्हाई कोर्ट ने नर्मदापुरम की कलेक्टर सोनिया मीणा के उस रवैये को बेहद गंभीरता से लिया, जिसके तहत उन्होंने हाजिरी माफी के लिए सीधे न्यायाधीश को पत्र लिखने की गलती की। न्यायमूर्ति गुरुपाल सिंह अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया कि कलेक्टर नर्मदापुरम का सीधे कोर्ट को पत्र लिखना सही नहीं था।
हाई कोर्ट ने कहा कि उनका यह रवैया न्यायालय की गरिमा के हनन सदृश है। कायदे से कलेक्टर को महाधिवक्ता के माध्यम से आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए था। लिहाजा, मुख्य सचिव को निर्देश दिया जाता है कि वह इस कृत्य के लिए कलेक्टर नर्मदापुरम के विरुद्ध कार्रवाई करें। कार्रवाई के संबंध में 30 अगस्त तक हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को रिपोर्ट पेश करें।
उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने नर्मदापुरम में जमीन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कलेक्टर सोनिया मीणा को हाजिर होने को कहा था, लेकिन कलेक्टर ने खुद आने की बजाय एडीएम के हाथों सीधे हाई कोर्ट जज के नाम एक चिट्ठी भेज दी थी। हाई कोर्ट ने सिविल प्रकरण से जुड़े मामले में मनमाना आदेश करने पर दो अधिकारियों के न्यायिक व मजिस्ट्रियल पावर छीनने का आदेश दिया है।
जानिए क्या है मामला
नर्मदापुरम निवासी प्रदीप अग्रवाल और नितिन अग्रवाल का जमीन को लेकर विवाद चल रहा था।
विवाद नहीं सुलझा तो इसे लेकर प्रदीप अग्रवाल ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने नामांतरण की प्रक्रिया नए सिरे से करने का आदेश दिया था।
आदेश के बाद जब वापस नामांतरण का केस नर्मदापुरम गया तो नामांतरण की कार्यवाही नहीं की गई
सिवनी मालवा तहसीलदार ने दूसरे पक्ष नितिन अग्रवाल से बंटवारे का आवेदन अभिलेख में लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी
जबकि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का आदेश था कि इसमें नामांतरण करना है, न कि बंटवारा।
इसके विरुद्ध पक्षकार प्रदीप अग्रवाल ने रिवीजन अर्जी अपर कलेक्टर को सौंपा और बताया कि तहसीलदार की यह कार्यवाही हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, जिसे सुधारा जाए।
अपर कलेक्टर ने भी तहसीलदार की कार्यवाही को सही ठहराया और कहा कि हाई कोर्ट के निर्देश का पालन हो रहा है।
इसके चलते मामला दोबारा हाई कोर्ट पहुंचा जहां याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ गुलाटी ने कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट का आदेश नामांतरण का था, जबकि तहसीलदार बंटवारा कर रहे हैं।
पक्षकारों के अधिकारों को उन अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता
न्यायमूर्ति अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के मुताबिक पक्षकारों के अधिकारों को उन अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता, जो मामले को समझने की स्थिति में नहीं हैं।
इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने कलेक्टर नर्मदापुरम को निर्देश दिए कि एक वर्ष के लिए सिवनी मालवा के एडिशनल कलेक्टर देवेंद्र कुमार सिंह और तहसीलदार राकेश खजूरिया के सभी अर्ध-न्यायिक और मजिस्ट्रियल शक्तियां तत्काल वापस लें। कोर्ट ने दोनों अधिकारियों को छह महीने के लिए प्रशिक्षण के लिए भेजने के निर्देश भी दिए।
हाई कोर्ट ने कहा कि प्रशिक्षण पूरा करने के बाद दोनों अधिकारी एक वरिष्ठ अधिकारी के निर्देशन में काम करेंगे, जो इन अधिकारियों की अर्ध-न्यायिक और मजिस्ट्रियल मामलों से निपटने की क्षमता का परीक्षण करेगा। उनके प्रशिक्षण पूरा होने के बाद छह महीने की अवधि के लिए उनकी क्षमता का परीक्षण करने के बाद, यदि वरिष्ठ अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अधिकारियों ने अर्ध-न्यायिक मामलों और मजिस्ट्रियल मामलों को प्रभावी तरीके से तय करने की दक्षता हासिल कर ली है तो ही उनकी शक्तियां बहाल की जाएं।