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बस्तर के राजनीतिक में किंग मेकर की भूमिका में रहे राजपरिवार”भतरा और गोंड समुदायों का प्रभाव..ऐसा रहा राजनीतिक यात्रा..!

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बस्तर के राजनीतिक में किंग मेकर की भूमिका में रहे राजपरिवार”भतरा और गोंड समुदायों का प्रभाव..ऐसा रहा राजनीतिक यात्रा..!
छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम सामने आने पर जो तस्वीर हमारे सामने उभरकर आती है  इस आदिवासी इलाके में नक्सलवाद के अलावा बहुत कुछ है. पर्यटकों के लिए कई खूबसूरत स्थल इस इलाके में है. दंतेश्वरी देवी का मंदिर है. दंतेश्वरी देवी आदिवासियों की कुलदेवी हैं. महेंद्र कर्मा जैसे नेता भी इसी इलाके की पहचान रहे हैं. महेंद्र कर्मा कांग्रेस के उन बड़े नेताओं में शामिल थे, जिनकी मई 2013 में माओवादियों ने हत्या कर दी थी. महेंद्र कर्मा ने वर्ष 1996 में बस्तर से लोकसभा का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था. वे चुनाव जीते थे. कांग्रेस में आने से पहले महेंद्र कर्मा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में थे. 1984 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने सीपीआई की टिकट से लड़ा था. लेकिन, मनकूराम सोढ़ी से चुनाव हार गए थे. बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए.
मोदी लहर में कांग्रेस के दीपक बैज ने दर्ज कराई जीत
पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में बस्तर की लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर दीपक बैज ने जीत दर्ज कराई थी. दीपक बैज हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में चित्रकूट से चुनाव हार गए. चित्रकोट का झरना नियाग्रा फॉल की तरह प्रसिद्ध है.

बस्तर लोकसभा में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर चित्रकोट, कोंटा, बीजापुर व दंतेवाड़ा आते हैं. बस्तर लोकसभा सीट का मुख्यालय जगदलपुर है. बस्तर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 6 जिले, 1 नगर निगम और 7 नगर पालिका और 6 जिला पंचायत आते हैं. वहीं 25 ब्लॉक इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. बस्तर लोकसभा क्षेत्र के शहरी क्षेत्रों में विकास अन्य शहरी क्षेत्रों की तरह ही हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र आज भी मूलभूत समस्याओं के लिए संघर्ष करते दिखाई देते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य आजीविका कृषि और वनोपज है. वहीं जगदलपुर शहर मुख्यालय व्यवसाय का प्रमुख केन्द्र है.

जगदलपुर शहर में ही विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि महाविद्यालय और 8 विधानसभा में महिला पॉलिटेक्निक जैसे शिक्षण संस्थान हैं. सबसे विकसित क्षेत्र होने के बावजूद भी अंदरूनी क्षेत्रों की सड़कों का बुरा हाल है. बस्तर लोकसभा सीट के 3 जिले सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित होने की वजह से यहां आज भी ग्रामीण अंचलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी बनी हुई है.

निर्दलीय मुचाकी कोसा का रिकॉर्ड कोई तोड़ पाएगा?
बस्तर लोकसभा सीट पर अब तक की सबसे बड़ी जीत पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा की रही. राजमहल समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी मुचाकी कोसा को 1952 के चुनाव में कुल विधिमान्य मतों में से 83.05 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया को मात्र 16.95 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे. मुचाकी कोसा को 1,77,588 मत और सुरती क्रिस्टा को 36,257 मत प्राप्त हुए थे. मुचाकी ने 1,41,331 मत और 66.09 फीसद के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. विधिमान्य मतों में एकतरफा रिकॉर्ड 83.05 मत आज तक कोई प्राप्त नहीं कर पाया. इसके बाद अधिकतम मत पाने का रिकॉर्ड कांग्रेस के मनकूराम सोढ़ी के नाम पर है. उन्होंने 1984 के चुनाव में 54.66 प्रतिशत मत प्राप्त कर जीत दर्ज की थी.

बस्तर लोकसभा पर रहा है राजमहल का असर
बस्तर राजशाही वाला इलाका रहा है. जगदलपुर इसकी राजधानी थी. 14वीं सदी में यहां पर काकतीय वंश का राज था. इस क्षेत्र पर अंग्रेज कभी अपना राज स्थापित नहीं कर पाए. इस क्षेत्र में गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियां रहती हैं. इंद्रावती के मुहाने पर बसा यह इलाका वनीय क्षेत्र है. यहां पर टीक तथा साल के पेड़ बड़ी संख्या में हैं. इस इलाके की खूबसूरती यहां के झरने और बढ़ा देते हैं. यहां खनिज पदार्थों में लोहा और अभ्रक सबसे ज्यादा मिलते हैं. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. प्रथम चुनाव से लेकर 1971 के पांचवें चुनाव तक यहां की राजनीति में राजमहल का जबरदस्त प्रभाव रहा. महाराजा स्वर्गीय प्रवीरचंद भंजदेव के इशारे पर चुनाव में जीत-हार तय होती रही. पहले ही चुनाव में कांग्रेस को समझ आ गया था कि राजमहल को पक्ष में किए बिना आगे का रास्ता बस्तर में काफी कठिन होगा.

इसलिए भंजदेव से दूरियां कम करते हुए कांग्रेस ने उन्हें भरोसे में लेकर 1957 में पार्टी में शामिल कर लिया. इसके बाद हुए चुनाव में राजमहल के समर्थन में आने से कांग्रेस के सुरती क्रिस्टा चुनाव जीतने में सफल हुए, लेकिन प्रवीर और कांग्रेस के बीच जल्दी की अलगाव हो गया. प्रवीरचंद के जिंदा रहते और 1966 में उनके निधन के बाद हुए दो चुनावों में भी कांग्रेस को राजमहल समर्थक निर्दलीय प्रत्याशियों से हार मिली. आपातकाल के बाद जनता पार्टी के दृगपाल शाह 1977 के चुनाव में सांसद बने. 1957 में बड़ी जीत दर्ज कराने वाली कांग्रेस के लिए अगले वाले चार लोकसभा चुनाव बहुत बुरे साबित हुए. 1962 में दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. 87557 वोट पाकर निर्दलीय उम्मीदवार लखमू भवानी ने जीत हासिल की. वहीं दूसरे नंबर पर भी निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दादा ने कब्जा जमाया. कांग्रेस इस साल तीसरे नंबर पर पहुंच गई. 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाल ने यहां से जीत का परचम लहराया. उन्होंने अखिल भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार आर झादो को बुरी तरह हराया था.

बस्तर में कांग्रेस के लिए मुश्किल होता है सीट बचाना
1967 के चुनाव तक कांग्रेस की लोकप्रियता कितनी घट चुकी थी, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ना सिर्फ हारी, बल्कि लुढ़ककर पांचवें नंबर पर पहुंच गई. इसके बाद 1971 के चुनाव में भी एक निर्दलीय उम्मीदवार लम्बोदर बलियार ने जीत हासिल की. 1980 के लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद कांग्रेस ने 1991 के चुनाव तक लगातार तीन बार जीत हासिल की. 1984 से 1991 तक कांग्रेस ने मनकूराम सोढी को ही टिकट देकर यहां से लड़वाया. सोढ़ी पार्टी के लिए एक मजबूत नेता साबित हुए. 1984 में उन्होंने सीपीआई के महेंद्र कर्मा को हराया. इसी तरह 1989 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के संपत सिंह भंडारी को हराया. 1991 में उन्होंने फिर से बीजेपी के उम्मीदवार राजाराम तोड़ेम को हराया, लेकिन 1996 में कांग्रेस को फिर से एक निर्दलीय उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा.

कांग्रेस के विपक्ष में खड़े हुए निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र कर्मा ने मनकूराम सोढी को हराया. दोनों के बीच हार का अंतर लगभग 14 हजार वोटों का ही रहा. 1998 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से जीत का खाता खोला और 2014 तक इस सीट पर किसी और को राज करने नहीं दिया. 1998 से लेकर 2011 तक बीजेपी के टिकट पर बलिराम कश्यप ने यहां से लगातार चार बार जीत हासिल की और कांग्रेस को हराया, लेकिन 2011 में उनके निधन के बाद यहां उपचुनाव कराए गए, जिसमें उनके बेटे दिनेश कश्यप ने जीत दर्ज की. 2014 के चुनाव में भी दिनेश कश्यप ने अपनी जीत को बरकरार रखा और यहां से सांसद चुने गए.

आदिवासियों की बोली और समुदाय का होता है असर
बस्तर की राजनीति में भतरा और गोंड समुदायों का प्रभाव रहा है. हल्बा व अन्य आदिवासी जातियों की मौजूदगी भी थोड़ी बहुत रही, लेकिन मुख्य रूप से समूची राजनीति भतरा आदिवासियों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर और इसके आसपास के इलाके में भतरा जनजाति का निवास है. भानपुरी के बलीराम कश्यप का परिवार भी इसी समुदाय से है. हालांकि आदिवासियों के बीच राजनीतिक विभाजन नहीं है पर चुनाव के दौरान समाज को साधना जरूरी हो जाता है.

बस्तर में हल्बी, भतरी, गोंडी, दोरली, परजी, धुरवी आदि बोलियां बोली जाती हैं. गोंडी के शब्द इलाके आधार पर बदलते रहते हैं. बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और अबूझमाड़ चारों जगह की गोंडी में फर्क है. दोरली बीजापुर और सुकमा के उन इलाकों में बोली जाती है जो आंध्र या तेलंगाना से सटे हैं. आदिवासियों की मान्यताएं और परंपरा समान है पर देवी देवता बदल जाते हैं. नेता चुनाव के दौरान विभिन्न समुदायों के पुजारी, पटेल, मांझी को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं. इसके लिए उनके देवगुड़ी में सूअर, बकरा, मुर्गा आदि की बलि दी जाती है. बस्तर में सुआर ब्राह्मण, धाकड, हलबा, पनारा, कलार, राउत, केवट, ढीमर, कुड़क, कुंभार, धोबी, मुण्डा, जोगी, सौंरा, खाती, लोहार, मुरिया, पाड़, गदबा, घसेया, माहरा, मिरगान, परजा, धुरवा, भतरा, सुण्डी, माडिया, झेडिया, दोरला तथा गोंड जातियां रहती हैं. भाजपा में कश्यप परिवार के अलावा डॉ. सुभाऊ कश्यप भी इसी समुदाय के नेता रहे.

बस्तर लोकसभा क्षेत्र के पिछले पांच चुनाव परिणाम
2019 के चुनाव परिणाम
दीपक बैज- कांग्रेस- 402,527- 44.10 प्रतिशत
बैदूराम कश्यप- भाजपा-3,63,545 -39.83 प्रतिशत

2014 के चुनाव परिणाम
दिनेश कश्यप -भाजपा- 385829 -50.11
दीपक कर्मा (बंटी) कांग्रेस- 2614705 -33.96

2009 के चुनाव परिणाम
बलिराम कश्यप- भाजपा- 249373- 44.16
शंकर सोढी-कांग्रेस- 149,111- 26.40

2004 के चुनाव परिणाम
बलिराम कश्यप-भाजपा – 212886
महेन्द्र कर्मा- कांग्रेस- 158519

1999 के चुनाव परिणाम
बलिराम कश्यप- भाजपा- 155421 – 43.58
महेंद्र कर्मा- कांग्रेस- 134684 37.77

बस्तर 2019  के विजेता
दीपक बैज पार्टी :भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्राप्त वोट :402527
निकटतम प्रतिद्वंद्वी

बैदू राम कश्यप पार्टी भारतीय जनता पार्टी प्राप्त वोट
363545 हार का अंतर 38982 वोट % 66 पुरुष मतदाता 663409 महिला मतदाता 715672 कुल मतदाता 1379122

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