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Bastar murga ladai,,,, बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामीणों के मनोरंजन के साधनों में शुमार है मुर्गा लड़ाई

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Bastar murga ladai,,,, बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामीणों के मनोरंजन के साधनों में शुमार है मुर्गा लड़ाई

(संवाददाता ज्ञानवती भदोरिया)

बस्तर आँचल में मुर्गा लड़ाई बहुत ज्यादा प्रचलित है,आदिवासी समाज मे प्रकृति को सबसे पहला स्थान दिया गया है, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर उसे सहेज कर रखना आदिवासी समाज के लोगों के संस्कार में शामिल है। पर आज जब आधुनिकता, इंटरनेट के माध्यम से गांव-गांव तक पैर पसार रही है तब गांव में प्राकृतिक जीवन बिता रहे आदिवासियों के लिए खुद की परंपरा और संस्कृति को संरक्षित रख पाना अब एक चुनौती बन गया है।सदियों से बस्तर अंचल में चल रहे आदिवासियों के सबसे बड़े मनोरंजन के साधन मुर्गा लड़ाई पर भी अब आधुनिकता ने ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है। आधुनिक समाज की तरह ज्यादा की चाहत और भौतिक संसाधनों की चाहत ने पारंपरिक मुर्गा लड़ाई में जुआं जैसे असामाजिक खेल को संलिप्त कर दिया है।
बस्तर सम्भाग के सम्पूर्ण क्षेत्र गांव में खेले जाते हैं यहाँ सप्ताह में हर दिन कहीं न कहीं मुर्गा बाजार होता ही है इस लड़ाई में शामिल होने होड़ खेलने के लिए आस पास के गांव वाले के अलावा दूर-दूर से भी लोग जाते हैं इस लड़ाई में दो मुर्गों को आपसमुर्गा लड़ाई बस्तर सम्भाग के सम्पूर्ण क्षेत्र गांव में खेले जाते हैंयहाँ सप्ताह में हर दिन कहीं न कहीं मुर्गा बाजार होता ही है इस लड़ाई में शामिल होने होड़ खेलने के लिए आस पास के गांव वाले के अलावा दूर-दूर से भी लोग जाते हैं इस लड़ाई में दो मुर्गों को आपस मे लड़ाया जाता है। यहां लड़ाई के लिए पहले से ही मुर्गों को तैयार कर एक दूसरे से लड़ाया जाता है, इसमें जीतने वाला मुर्गा मालिक को हारने वाला मुर्गा को अपने साथ ले जाता है, मुर्गा लड़ाई में ग्रामीण द्वारा लाखों रूपए का दांव खेला जाता हैं।मुर्गा लड़ाई के लिए बाजार स्थल में ही गोल घेरा लगाकर बाड़ी बनाया जाता है। जिससे लड़ाये जाने वाले दोनों मुर्गों के एक-एक पैर में तेज धार वाला हथियार काती बांध दिया जाता है, जिस मुर्गे का हथियार काती उसके विपरीत वाले मुर्गे को पहले मार के डराने में सफल होता है, वह मुर्गा जीत जाता है। इस खेल में लोग बहुत पैसा खेलते हैं जीतने वाले को दोगुना या तीगुना मिलता है चाहे आज आधुनिक युग में टीवी, सीडी, मोबाइल उपलब्ध हो गया है, लेकिन ग्रामीण मुर्गा लड़ाई में भी विशेष रूचि दिखाते हैं ।बाजारों में होती है मुर्गा लड़ाई – मुर्गा लड़ाई बस्तर सम्भाग के सम्पूर्ण क्षेत्र गांव के हाट बजारों में खेले जाते हैं यहाँ सप्ताह में हर दिन कहीं न कहीं मुर्गा बाजार होता ही है लेकिन शौकीनों का शौक कम नहीं, बल्कि और बढ़ता जा रहा है।ग्रामीणों के साथ-साथ शहरी भी यहां भाग्य अजमाने पहुंचते हैं और हजारों-लाखों मुर्गा पर दांव खेलते हैं पहले मुर्गा बाजार सीमित स्थानों में होता था, पर अब लगभग-लगभग सभी साप्ताहिक हाट-बाजारों में मुर्गा लड़ाई का आयोजन होता है।

मुर्गा लड़ाई लगभग दोपहर को प्रारंभ होने के बाद देर शाम तक जारी रहता है इस दौरान सैकड़ों लोग इस पर दांव खेलते है। इसके लिए ग्रामीण आस पास के अलावा दूरस्थ अंचलों में भरने वाले साप्ताहिक हाट-बाजारों तक का सफर तय करते हैं। दो मुर्गा को आपस में लड़ाने से पहले दोनो मुर्गा में तीखी धार वाले ब्लेड बांधे जाते हैं, जिन्हें काती कहा जाता है, इसे बांधने वाले जानकार मुर्गा काती बांधने को मेहनताना भी दिया जाता हैं। इसके बाद इन्हें आपस में लड़ाया जाता है। इन मुर्गों को रंगों के आधार पर कबरी, चितरी, जोधरी, लाली आदि नामों से बुलाया जाता है।

मुर्गा लड़ाई के शौकीन ग्रामीण बड़े शौक से मुर्गा पालते हैं, मुर्गों का असली प्रजाति खासकर बस्तर औरआंध्र प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र में पाई जाती है।

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