मोहिनी एकादशी में त्रिस्पृशा’ का दुर्लभ संयोग रविवार” विक्रम संवत 2078की वैशाख शुक्ल एकादशी
महेंद्र मिश्रा,रायगढ़-कृपया घर के सभी सदस्य यह एक दिन का व्रत अवश्य करें। जिंदगी में ऐसे अवसर बार-बार नही आते ।
पद्मपुराण के अनुसार यदि सूर्योदय से अगले
सूर्योदय तक थोड़ी सी एकादशी, द्वादशी, एवं अन्त में किंचित् मात्र भी त्रयोदशी हो, तो वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ कहलाती है। एक ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ को उपवास कर लिया जाय तो एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल (लगभग पुरी उम्रभर एकादशी करने का फल ) प्राप्त होता है । त्रिस्पृशा-एकादशी’ का पारण त्रयोदशी मे करने पर 100 यज्ञों का फल प्राप्त होता है। प्रयाग में मृत्यु होने से तथा द्वारका में श्रीकृष्ण के निकट गोमती में स्नान करने से, जो शाश्वत मोक्ष प्राप्त होता है, वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी का उपवास कर घर पर ही प्राप्त किया जा सकता मोहिनी एकादशी व्रत विधि. इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें।इसके बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें। विष्णु भगवान का गंगा जल से अभिषेक करें। इसके बाद विष्णु भगवान को साफ- स्वच्छ वस्त्र पहनाएं। विष्णु भगवान की आरती करें और भोग लगाएं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार युधिष्ठिर ने श्रीहरि भगवान कृष्ण से वैशाख माह में आने वाली एकदाशी के महत्व और इसके बारे में पूछा। युधिष्ठिर के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीहरि ने कहा ‘हे धर्मपुत्र आज से अनेक वर्षों पूर्व इस एकादशी के विषय में जो कथा वशिष्ठ मुनि ने प्रभु रामचंद्र जी को सुनाई थी उसी का वर्णन मैं करता हूं, ध्यानपूर्वक सुनना’। ये कहकर श्रीहरि ने मोहिनी एकादशी व्रत कथा का प्रारंभ किया एक बार प्रभु श्री रामचंद्र जी ने गुरु वशिष्ठ मुनि से बड़े ही विनम्रता पूर्वक पूछा, हे मुनिवर आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके प्रभाव से समस्त पापों और दुखों से मुक्ति प्राप्त हो सके। भगवान राम को संबोधित करते हुए वशिष्ठ मुनि ने कहा, हे राम आपका प्रिय नाम समस्त प्राणियों केदुखों का नाश करता है लेकिन फिर भी आपने जनकल्याण के लिए ये प्रश्न पूछा है, जो कि प्रशंसनीय है। वशिष्ठ मुनि ने बताया सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की नगरी है, जहां चंद्रवंश में उत्पन्न सत्यप्रिज्ञ धृतिमान नामक राजा राज करते थे। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन्य धान से परिपूर्ण और समृद्धशाली था। उसका नाम था धर्मपाल, वह सदा पुण्य कर्मों में ही लगा रहता था। दूसरों के लिए कुआं, मठ बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता है। था। भगवान श्री विष्णु की भक्ति में वह सदा लीन रहता था, उसके पांच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत व धृष्टबुद्धि, धृष्टबुद्धि पांचवा पुत्र था। लेकिन दुर्भाग्य से उनका पांचवा पुत्र धृष्टबुद्धि अपने नाम के अनुसार ही अत्यंत पापी और दुराचारी था। वह बड़े बड़े पापों में संलग्न रहता था। वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। उसकी बुद्धि ना तो देवी देवताओं के पूजन में लगती थी और ना ही ब्राम्हणों के सत्कार में, वह अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बर्बाद किया करता था। एक दिन वह एक वैश्या के गले में हाथ डाले चौराहे पर देखा गया। इसे देख पिता ने उसे घर से बाहर निकाल दिया और लोगों ने भी उसका परित्याग कर दिया
अब वह दिन रात अत्यंत शोक और चिंतित होकर इधर उधर भटकने लगा। एक दिन वह वैशाख के महीने में महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम जा पहुंचा। महर्षि कौण्डिन्य गंगा सेस्नान करके आए थे। धृष्टबुद्धि मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, हे मुनिवर मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य प्रभाव से मेरे कष्टों का नाश हो सके और मैं इस असहाय पीड़ा से मुक्त हो सकूं। महर्षि कौडिन्य ने बताया वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष में मोहिनी नामक प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो।धृष्टबुद्धि ने महर्षि कौण्डिन्य के कथानुसार मोहिनी एकादशी पर विधि विधान से व्रत किया और उस व्रत के प्रभाव से वह निष्पाप हो गया। तथा अंत में वह दिव्य देह धारण कर गरुण पर सवार होकर विष्णुधाम चला गयाविशेष 24 मई सोमवार प्रात: 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 39 मिनट के बीच पारण कर सकते हैं।