छात्रों में नाराजगी, विवि प्रशासन की नीति पर सवाल
दुर्ग के हेमचंद विश्वविद्यालय द्वारा यूजी सेकंड और थर्ड ईयर, तथा पीजी प्रीवियस और फाइनल ईयर परीक्षा के लिए आवेदन शुरू कर दिए गए हैं। इसमें प्राइवेट परीक्षार्थियों से जनभागीदारी शुल्क के नाम पर ₹300 वसूले जा रहे हैं। यह शुल्क तब लिया जा रहा है जब प्राइवेट परीक्षार्थी कॉलेज की किसी भी सुविधा का उपयोग नहीं करते। इस निर्णय को लेकर छात्रों में भारी नाराजगी है।
शुल्क को लेकर छात्रों की आपत्ति
विद्यार्थी दीपक पात्रे, पालेश्वर कुमार और जयकिशन ने आरोप लगाया कि यह शुल्क अनुचित है। उनका कहना है कि नियमित विद्यार्थियों से जनभागीदारी शुल्क लिया जाना तर्कसंगत है क्योंकि वे कॉलेज की सुविधाओं का उपयोग करते हैं। लेकिन, प्राइवेट छात्रों से यह शुल्क वसूलना न केवल अनुचित है, बल्कि छात्रों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालने जैसा है।
विवादित जनभागीदारी शुल्क से होगी लाखों की कमाई
कॉलेज प्रशासन के अनुसार, 1500 से अधिक प्राइवेट परीक्षार्थियों से जनभागीदारी शुल्क के तौर पर करीब ₹4.5 लाख जमा होने की संभावना है। यह राशि समिति के खाते में जाएगी। प्राइवेट परीक्षार्थियों को केवल परीक्षा देने के लिए 5-6 दिन कॉलेज आना होता है। इसके बावजूद शुल्क वसूलने की यह नीति सवालों के घेरे में है।
छात्रों की शिकायत: अन्य विवि में शुल्क नहीं लिया जाता
परीक्षार्थियों ने बताया कि पंडित सुंदरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी (बिलासपुर) और इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) जैसी संस्थाओं की परीक्षाएं भी इसी कॉलेज में आयोजित होती हैं, लेकिन उनसे जनभागीदारी शुल्क नहीं लिया जाता। यहां तक कि व्यापमं, सीजीपीएससी जैसी अन्य परीक्षाओं में भी इस तरह का शुल्क नहीं लिया जाता।
कॉलेज प्रबंधन का पक्ष
प्रभारी प्राचार्य डॉ. ऋचा मिश्रा ने कहा कि यह निर्णय जनभागीदारी समिति का है। समिति का कहना है कि यह शुल्क हर साल लिया जाता रहा है। शीतकालीन अवकाश के कारण हार्डकॉपी जमा करने की प्रक्रिया 31 दिसंबर से शुरू की गई है और अंतिम तिथि 27 जनवरी है।
समिति में गड़बड़ी की आशंका
जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष रिंकेश वैष्णव ने कहा कि किसी भी बदलाव के लिए प्रस्ताव लाना जरूरी है। हालांकि, गड़बड़ी की शिकायतें सामने आने के बावजूद समिति का खाता अभी तक बंद नहीं हुआ है।
छात्रों का विरोध जारी
प्राइवेट छात्रों का कहना है कि जब वे कॉलेज की सुविधाएं नहीं ले रहे हैं, तो उनसे शुल्क वसूलना अन्यायपूर्ण है। उन्होंने विवि प्रशासन से इस मुद्दे पर पुनर्विचार की मांग की है।
समाज को झकझोरने वाला सवाल
यह मामला छात्रों के अधिकारों और शिक्षा प्रणाली की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है। छात्रों की मांग है कि शुल्क नीति में बदलाव कर उन्हें राहत दी जाए।
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