इंडियन एयरफोर्स के रिटायर्ड विंग कमांडर महाबीर ओझा (MB ओझा) का 89 उम्र में निधन हो गया। वह रायपुर के मौलश्री विहार के रहने वाले थे। सोमवार को उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
ओझा पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। रविवार को उनका निधन हो गया । ओझा.रायपुर के महाबीर सन 1971 में भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में इंडियन एयर फोर्स की तरफ से युद्ध में शामिल रहे।
उनके बेटे संतोष ओझा ने बताया कि उनके पिता छत्तीसगढ़ के इकलौते एयरफोर्स अफसर थे जिन्होंने सन् 1965, 1971 और उसके बाद श्रीलंका के ऑपरेशंस में भी हिस्सा लिया। प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी एमबी ओझा के निधन पर दुख व्यक्त किया है।
MB ओझा रडार एक्सपर्ट थे, इनकी मौजूदगी में फ्रांस से पहली बार मिराज जेट्स ने भारत में लैंडिंग की थी। जिसके बाद ये जेट्स इंडियन एयरफोर्स का हिस्सा बन गए।एयरफोर्स स्टेशन में अपनी जीप में यूं करते थे सवारी महाबीर।दुश्मन देश से लेकर आए अनोखी चीज MB ओझा के बेटे संतोष ओझा बताते हैं कि 1971 की जंग के समय इंडियन एयरफोर्स पाकिस्तान में दाखिल हो चुकी थी।
वहां की एयरफोर्स कॉलोनी में भारतीय अफसर टहल घूम रहे थे। पाकिस्तानी एयरफोर्स के अधिकारी भाग चुके थे। तब ओझा पाकिस्तान एयरफोर्स के अधिकारियों के घर के बाहर लगे नेम प्लेट साथ ले आए। संतोष ने बताया कि हम बचपन में होली के दिन दुश्मन देश के इन नेम प्लेट को अपने क्वार्टर के बाहर लगाकर खेला करते थे।बेटे ने याद किया कि जब इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी। तब पिता की उम्र करीब 85 साल थी, उनकी तबीयत नासाज थी मगर 13 घंटे टीवी के सामने बैठकर हर पल की अपडेट ले रहे थे। जब भारतीय वायु सेवा के विंग कमांडर अभिनंदन को भारत वापस लाने में कामयाबी मिली तब एमबी ओझा के आंखों में आंसू थे, उस दिन को याद करते हुए बेटे संतोष का गला भर आया।
लाल घेरे में सरेंडर के वक्त मौजूद MB ओझा।क्या है एतिहासिक तस्वीर में भारतीय सेना के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग-इन-चीफ़ लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की मौजूदगी में सरेंडर के कागज पर पाकिस्तानी लेफ़्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी ने साइन किए थे।
इस वक्त पिछली पंक्ति में रायपुर के MB ओझा मौजूद हैं। ये सरेंडर ढाका के रेसकोर्स मैदान में हुआ। रेसकोर्स के मैदान में अरोड़ा ने पहले गार्ड ऑफ ऑनर लिया उसके बाद अरोड़ा और नियाजी मेज पर बैठ कर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों की 5 प्रतियों पर साइन किया। कमाल तो ये कि नियाजी के पास कलम भी नहीं थी। उन्हें एक भारतीय अफसर ने अपनी कलम दी।
नियाजी ने साइन किया। वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और अपनी रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी।ओझा जिस तस्वीर में दिख रहे अब भारतीय थल सेना प्रमुख के दफ्तर में है।अब ये तस्वीर भारत के गर्व का हिस्सा जिस एतिहासिक तस्वीर में पीछे MB ओझा खड़े हैं, ये तस्वीर इंडियन आर्मी के चीफ के दफ्तर में लगी है। ये भारतीय सेना के सबसे अहम कार्यालय की दीवार पर है।
इसी तस्वीर के नीचे अब इंडियन आर्मी के चीफ उपेंद्र द्विवेदी विदेशी डेलीगेट से मिलते हैं। हर बार इसी तस्वीर के साथ आधिकारिक मुलाकातों की फोटो जारी होती है। ये भारतीय सेना के गर्व का हिस्सा बन चुकी है।
1971 की लड़ाई में MB ओझा की भूमिका MB ओझा एयर ट्रैफिक कंट्रोल और रडार सिस्टम पर काम किया करते थे। रडार के जरिए ही एयरफोर्स को दुश्मन के फाइटर जेट के बारे में पता चलता है। 14 दिसंबर को भारतीय सेना को पता चलता कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में दोपहर 11 बजे एक मीटिंग होने वाली है। भारतीय सेना ने तय किया कि मीटिंग के वक्त ही गवर्नमेंट हाउस पर बम बरसाए जाएंगे।
इसके बाद ओझा की टीम की निगरानी में इंडियन एयरफोर्स के मिग-21 विमानों ने उड़ान भरी, इन फाइटर जेट्स ने गवर्नमेंट बिल्डिंग की छत उड़ा दी। उस मीटिंग में तब के पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के सेना प्रमुख जनरल नियाजी भी मौजूद थे, जो उस हमले में बाल-बाल बच निकले। इंडियन एयरफोर्स के उस हमले के बाद पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से घुटनों पर आ गई।ओझा के सीनियर अफसर दस्तावेज दे रहे हैं पीछे ओझा मौजूद हैं।
क्या हुआ था 16 दिसंबर 1971 के दिन 16 दिसंबर 1971 को कभी पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान का हिस्सा रहे बांग्लादेश का एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ था। पाकिस्तानी सेना पर भारत की जीत और बांग्लादेश के गठन की वजह से हर साल 16 दिसंबर को भारत और बांग्लादेश में इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ओझा रिटायरमेंट के बाद सैन्य कार्यक्रमों में शामिल हुआ करते थे।दरअसल, पाकिस्तानी सेना के बांग्लादेशी (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) लोगों पर जुल्मो-सितम को लेकर ही भारत इस जंग में कूदने को मजबूर हुआ था।
भारत के प्रतिरोध को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव बढ़ा और आखिर में भारतीय सेना की कार्रवाई के आगे पाकिस्तान के हौसले पस्त हुए और 16 दिसंबर 1971 को ही इतिहास के सबसे बड़े आत्मसमर्पण के रूप में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे।
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