जगदलपुर। बस्तर दशहरे में होती है बेल पूजा, विवाह उत्सव से संबंधित है रस्म, जानें- क्या है इसकी मान्यता
बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे पर्व में गुरुवार शाम को एक और महत्वपूर्ण रस्म अदा की गई. इस रस्म को बेल जात्रा या बेल पूजा कहा जाता है. इस रस्म में बेल के पेड़ और उसमें एक साथ लगने वाले दो बेल फलों की पूजा की जाती है. ऐसी इकलौती बेल पूजा रस्म को बस्तर के लोग अनोखे और दुर्लभ तरीके से मनाते हैं. दरअसल, जगदलपुर शहर के निकट सरगीपाल गांव में सालों पुराना बेल का पेड़ है, जिसमें एक फल के अलावा जोड़ा दो फल भी एक साथ लगते हैं।

बस्तर रियासत के राजा कमलचंद भंजदेव इसी बेल वृक्ष और जोड़ा बेल फलों की परंपरा अनुसार पूजा-अर्चना करते हैं, जिसे बेल पूजा विधान कहते हैं. दरअसल, दशहरा पर्व में 12 से अधिक अनेक रशमें अदा की जाती है, जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है, नवरात्रि के सप्तमी तिथि यानी आज गुरुवार को दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म अदा की गई. इसे बेल पूजा रस्म कहा जाता है।रियासत काल से बस्तर दशहरा मनाया जा रहा है. माई दंतेश्वरी यहां की आराध्य देवी हैं

और उनमें लोगों की काफी गहरी आस्था जुड़ी हुई है. बस्तर दशहरा के दौरान जितनी भी रस्म निभाई जाती है वह केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है.

यही वजह रहती है कि 75 दिनों तक चलने वाले इस बस्तर दशहरे को देखने केवल छत्तीसगढ़ से ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना, उड़ीसा और अन्य राज्यों सहित विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।