नवरात्र की शुरुआत गुरुवार (3 अक्टूबर) से हो रही है। इसे लेकर छत्तीसगढ़ के शक्ति पीठों और देवी मंदिरों में तैयारियां हो गई हैं। लाइव दर्शन, श्रद्धालुओं के रुकने सहित अन्य इंतजाम किए गए हैं।
मिलावट की आशंका से कई मंदिरों में घी के ज्योति कलश पर रोक लगाई.दैनिक भास्कर आपको बता रहा है प्रदेश के 5 शक्ति पीठों रतनपुर में मां महामाया, डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी, चंद्रपुर में मां चंद्रहासनी, दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी देवी और अंबिकापुर में मां महामाया मंदिर के साथ ही 7 प्राचीन देवी मंदिरों, मान्यताओं के बारे में।
इन मंदिरों में इस साल नवरात्रि में क्या खास है, श्रद्धालुओं को क्या सुविधाएं मिलेंगी, दर्शन-पूजन और ज्योति कलश की क्या व्यवस्थाएं हैं, जानिए… पहले जानिए 5 शक्ति पीठों के बारे में…बिलासपुर जिले के रतनपुर स्थित महामाया मंदिर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को समर्पित है। ये 52 शक्ति पीठों में से एक है। देवी महामाया को कोसलेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं।ज्योति कलश : इस बार 31 हजार मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाने की तैयारी है।
इसमें 5 हजार ज्योति घी की होगी। देवभोग से 18 हजार लीटर घी मंगवाया गया है। श्रद्धालु 700 रुपए में तेल, 2100 रुपए में घी का दीपक जला सकेंगे।कैसे जाएं : रतनपुर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन करीब 25 किमी दूर बिलासपुर में है। उसके बाद आपको वहां से बस या टैक्सी-ऑटो से आना होगा। बिलासपुर सड़क और रेल मार्ग से देश के लगभग सभी बड़े स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। बम्लेश्वरी शक्ति पीठ का इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है। इसे वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था।मां बम्लेश्वरी को मध्य प्रदेश के उज्जयिनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है।
इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरी काल का पाया है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं। उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।ज्योति कलश: पहाड़ के ऊपर 6500 और नीचे मंदिर में 875 आस्था के दीप जलाए जाएंगे। मुख्य मंदिर में 1101 रु. तेल की राशि ली जा रही है। मंदिर में घी के दिये जलाने पर रोक लगाई गई है।श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था : मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियों के अलावा रोपवे की सुविधा भी है।
ऊपर पेयजल की व्यवस्था, विश्रामालयों के अलावा भोजनालय और धार्मिक सामग्री खरीदने की सुविधा है। पहाड़ी के नीचे 24 घंटे भोजन, भंडारे की व्यवस्था।कैसे जाएं : रायपुर से 100, नागपुर से 190 किमी की दूरी पर स्थित है और मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग के अंतर्गत आता है। सीधे ट्रेन और बस की सुविधा है।सक्ती जिले के चंद्रपुर की छोटी सी पहाड़ी के ऊपर विराजित है मां चंद्रहासिनी।
मान्यता है कि देवी सती का अधोदन्त (दाढ़) चंद्रपुर में गिरा था। यह मां दुर्गा के 52 शक्ति पीठों में से एक है। यहां बनी पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झाकियां, करीब 100 फीट विशालकाय महादेव पार्वती की मूर्ति आदि आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।ज्योति कलश : इस साल 6000 से ज्यादा ज्योति कलश जलाए जाएंगे।श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था : ठहरने के लिए चंद्रहासिनी मंदिर धर्मशाला उपलब्ध है।कैसे जाएं : प्राइवेट वाहन या टैक्सी से जाना बेहतर होगा। चांपा तक ट्रेन और फिर बस की सुविधा है।
रायपुर से सड़क मार्ग से 225 किमी, बिलासपुर से 150 किमी और जांजगीर से 110 किमी, रायगढ़ से 32 किमी, सारंगढ़ से 29 किमी दूर है।देश के 52 शक्ति पीठों में से एक दंतेश्वरी मंदिर है। मान्यता है कि यहां देवी का दांत गिरा था। 14वीं शताब्दी में बना यह मंदिर दंतेवाड़ा में स्थित है। मां की मूर्ति काले पत्थर से तराश कर बनाई गई है। मंदिर को चार भागों में विभाजित किया गया है।गर्भगृह और महा मंडप का निर्माण पत्थर के टुकड़ों से किया गया था। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरुड़ स्तंभ है।
मंदिर खुद एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। शिखर को मूर्तिकला से सजाया गया है।ज्योति कलश : 11 हजार ज्योति कलश जलाए जाएंगे। श्रद्धालु 1100 रुपए देकर तेल और 2100 रुपए में घी की ज्योति जलवा सकते हैं।श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था : सुविधा केंद्र बनाए गए हैं।
इनमें मेडिकल सुविधा के अलावा भोजन और फलाहार की सुविधा। इसके अलावा सामाजिक संस्थाओं की तरफ से भोजन की व्यवस्था।कैसे जाएं : जगदलपुर तहसील से 80 किमी दूर और रायपुर शहर से 350 किमी दूर स्थित है। यह NH-30 से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रायपुर शहर से सड़क मार्ग से करीब 7-8 घंटे की यात्रा दूरी पर है। सीधे जाने के लिए बस की सुविधा है।अंबिकापुर का नाम ही महामाया अंबिका देवी के नाम पर है।
किवदंति है कि महामाया का सिर रतनपुर और धड़ अम्बिकापुर में है। माता की प्रतिमा छिन्न मस्तिका है। महामाया के बगल में विंध्यवासिनी विराजी हैं। विंध्यवासिनी की प्राण प्रतिष्ठा विंध्याचल से लाकर की गई है।शारदीय नवरात्र में छिन्न मस्तिका महामाया के शीश का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं। जिस प्रतिमा को मां महामाया के नाम से लोग पूजते हैं, पहले इनका नाम समलाया था।
महामाया मंदिर में ही दो मूर्तियां स्थापित थी।पहले महामाया को बड़ी समलाया कहा जाता था और समलाया मंदिर में विराजी मां समलाया को छोटी समलाया कहते थे। बाद में समलाया मंदिर में छोटी समलाया को स्थापित किया गया, तब महामाया कहा जाने लगा।ज्योति कलश : पहले दिन शुभ मुहूर्त में हजारों की संख्या में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। घृत ज्योति के लिए 2100 रुपए और तेल ज्योति के लिए 800 रुपए का शुल्क निर्धारित है।
ज्योति कलश के लिए नगद राशि देनी पड़ेगी।कैसे जाएं: दुर्ग-अंबिकापुर ट्रेन की सुविधा है। अंबिकापुर तक सीधे बस की सुविधा। रेलवे स्टेशन से टैक्सी, बस और ऑटो की सुविधा है।अब जानिए अंचल की देवियों के बारे में…यह मंदिर कोरेश के जमींदार परिवार ने बनवाया था। त्रिलोकी नाथ मंदिर, काली मंदिर और ज्योति कलश भवन से घिरा हुआ है।
वहां भी एक गुफा है, जो नदी के नीचे जाती है और दूसरी तरफ निकलती है।ज्योति कलश : 10 हजार ज्योति कलश जलाने की व्यवस्था। 751 रुपए देकर तेल और 1100 रुपए देकर घी की ज्योति जला सकते हैं।कैसे जाएं : कोरबा बस और ट्रेन से जुड़ा हुआ है। मंदिर तक जाने के लिए बस, टैक्सी और ऑटो से पहुंच सकते हैं।
पहाड़ी पर मां मड़वारानी, कोसगाई, मतीन और महिषासुर मर्दिनी मंदिर के दर्शन भी किए जा सकते हैं।गंगरेल में 52 गांव डूबने के बाद मां अंगार मोती माता की स्थापना की गई थी। माता के चरण पादुका मंदिर में अभी भी विराजित है।ज्योति कलश : इस बार करीब 4000 मनोकामना ज्योत जगमगाएंगे।
ज्योति कलश स्थापना शुल्क के लिए क्यूआर कोड जारी किया गया है। 1201 रुपए तेल और 1501 रुपए घी के ज्योति कलश के लिए देने होंगे।कैसे जाएं : रायपुर से धमतरी तक बस सेवा, यहां से गंगरेल डैम, अंगार मोती मंदिर जाने के लिए प्राइवेट टैक्सी, ऑटो उपलब्ध है।रायपुर से 80 किमी दूर गरियाबंद जिले में स्थित जतमई माता के मंदिर से सटी जलधाराएं उनके चरण स्पर्श करती हैं।
स्थानीय मान्यता के अनुसार ये जलधाराएं माता की दासी होती हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के शीर्ष पर, एक पौराणिक पात्रों का चित्रण भित्ति चित्र देख सकते हैं। मां जतमई की पत्थर की मूर्ति गर्भगृह में स्थापित है।ज्योति कलश : 8 हजार ज्योति कलश जलाए जाएंगे। तेल की ज्योति के लिए 651 रुपए निर्धारित है।
इसके लिए सरपंच प्रतिनिधि रामकिशन से 9770429085, डेरहा राम ध्रुव से 8435245601 और लुमेश कंवर से 8815255450 पर संपर्क करना होगा।कैसे जाएं : रायपुर या गरियाबंद से स्वयं के वाहन या टैक्सी से जाना ज्यादा बेहतर है। पहाड़ी में होने की वजह से पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था नहीं है। जतमई मंदिर से 25 किमी दूर घटारानी देवी के भी दर्शन किए जा सकते हैं।महासमुंद जिले के बागबहारा घुंचापाली में मां चंडी का मंदिर स्थित है। किंवदन्ती है कि करीब 150 साल पहले ये तंत्र-मंत्र की साधना स्थल हुआ करता था।
यहां महिलाओं का जाना प्रतिबंधित था। प्राकृतिक रूप से माता चंडी के स्वरूप में शिला (पत्थर) ने आकार लिया।वैदिक रीति रिवाज से पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इसके बाद महिलाओं का चंडी माता की पूजा करने की प्रतिबंध समाप्त हुआ।
यहां सुबह शाम, आरती के वक्त भालूओं की आमद भी होती है।ज्योति कलश : 6 से 7 हजार ज्योति कलश जलाए जाने की संभावना है। तेल का ही ज्योति जलेगी इसके लिए 700 रुपए देना होगा
कैसे जाएं : बागबहारा तक बस की सुविधा, यहां से टैक्सी या ऑटो से जाया जा सकता है। स्वयं के वाहन या टैक्सी से जाना ज्यादा बेहतर है।
महासमुंद जिले में ही 24 किलोमीटर दूरी पर ये मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। प्राचीन काल में इसे खलवाटिका कहा जाता था। करीब 850 सीढ़ियां चढ़कर माता के दर्शन होते हैं।ज्योति कलश : 3 से 5 हजार मनोकामना ज्योत प्रज्ज्वलित किए जा सकते हैं।
कैसे जाएं : महासमुंद तक बस की सुविधा, यहां से टैक्सी या ऑटो से जाया जा सकता है। स्वयं के वाहन या टैक्सी से जाना ज्यादा बेहतर है।बरफानी धाम राजनंदगांव शहर में स्थित है। मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा शिवलिंग देखा जा सकता है। उसके सामने एक बड़ी नंदी प्रतिमा है। मंदिर तीन स्तरों में बनाया जाता है। नीचे की परत में पाताल भैरवी का मंदिर है, दूसरे में नवदुर्गा या त्रिपुर सुंदरी और ऊपरी स्तर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिमा है।
ज्योति कलश : 2500 से 5000 ज्योति कलश मंदिर में प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। तेल का दीपक 1001 रुपए में जला सकते हैं। घी की ज्योत जलाने पर इस बार रोक है।
कैसे जाएं : रेलवे और बस के माध्यम से राजनांदगांव जुड़ा हुआ है। स्टेशन करीब 3-4 किमी दूर है। यहां से ऑटो के जरिए बर्फानी आश्रम पहुंचा जा सकता है।1400 साल पहले मंदिर का निर्माण हैहयवंशी राजाओं ने करवाया था। महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्रीयंत्र के रूप में हुआ है। मंदिर में मां महालक्ष्मी, मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है।
ज्योति कलश : करीब 10 हजार ज्योति कलश इस बार जलाए जाएंगे। चकमक पत्थर की चिंगारी से नवरात्र की पहली ज्योति जलाई जाती है। 700 रुपए में सिर्फ तेल का ही ज्योति जलेगी। मिलावट के चलते घी का दिया नहीं जलेगा।
भक्तों के लिए सुविधा : भोग और भंडारे का आयोजन होगा। घर बैठे दान और दर्शन की सुविधा है। माता को शृंगार का सामान चढ़ाने और अपने नाम से भोग लगाने के लिए लोग सुविधा ले सकते हैं।कैसे जाएं : रायपुर तक रेल और बस सुविधा है। यहां से प्राइवेट ऑटो या टैक्सी से मंदिर जाया जा सकता है।
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